शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

उदासी भरी बेला !!




जब सूरज अपना शिफ़्ट खत्म कर अस्त होता है उसी वक्त घर के पीछे से एक रेलगाड़ी हल्ला मचाते हुए सरक जाती है। चहचहाते हए परिंदों का झुंड तेजी से अपने घर भागता है। आसमान में सन्नाटा पसर जाता है। बादल जैसे मर जाता है। शाम की यह बेला बेहद बोझिल लगती है मुझे।

वही कमरा, वही चादर, वही तकिया...हर एक का रंग अपनी उम्र से भी ज्यादा पुराना मालूम पड़ता है। पसंदीदा गाने, जिन्हें एक बार सुनने से मन नहीं भरता था..बजकर कब बंद हो जाते हैं... कुछ पता नहीं चलता।

मोबाइल में पड़े 100-200 नंबर रद्दी मालूम होते हैं। चाय की एक घूंट से जान पर बन आती है।
किताब में लिखी बातें सिर के उपर से गुजर जाती हैं। बच्चों की आवाज मानों इसी वक्त कर्कस लगती है।

टीवी ढकोसले की दुनिया औऱ फेसबुक ट्विटर जैसे रैम्प ऊबाउ लगते हैं। नकारात्मक बातें क्या होती हैं शायद इस वक्त से पहले कभी पता ही नहीं होता।

जब कुछ ऐसा होता है...जब कुछ भी अच्छा नहीं लगता। जब कुछ ऐसा लगता है..जैसे वक्त थम गया।

 तब मन करता है, हाथ बांध कर समंदर के किनारे खड़े रहने का..बालों को हवा में आजाद छोड़ देने का...ठंडी हवा के तेज झोके को अपने में समा लेने का...समंदर की लहरों से अठखेलियां करने का..जो सूकुन दे..एक एहसास दे। लेकिन अफ़सोस...हर शहर में समंदर नहीं होता।

रविवार, 26 जनवरी 2014

कल आने से पहले...



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कदम आगे नहीं बढ़े मैं वहीं खड़ा रहा। उनमें शामिल होकर मैं भी वैसे ही रोता जैसे निशा रो रही थी, जैसे उसके भाई-बहन रो रहे थे। सफेद कपड़े से ढ़की जमीन पर एक लाश पड़ी थी, निशा के मां की लाश जो कल शाम ठीक इसी वक्त अपनी थाली से दो कौर मुझे खिलाकर खुद खायी थीं।
निशा अपने भाई-बहनों के साथ बिलख रही थी जैसे उसकी मम्मी की कहानियों में   बिलखने पर जंगल के पेड़ों की पत्तियां टूटकर गिर जाया करती थीं।

जमीन पर बिछी चारपाई पर एक और लाश पड़ी थी। जिन्दा लाश..निशा के पापा को लोग काफी देर से होश में लाने की कोशिश में लगे थे।  लेकिन वे दुख और पीड़ा की खाईं में गिरे थे..उनकी हमसफ़र अब इस दुनिया में नहीं थीं।

निशा के पास इकट्ठी औरतें एक साथ रो रही थीं जैसे वे कभी एक साथ गीत गाया करती थीं।
 कुछ बुदबुदाहट के साथ निशा के पापा को होश आय़ा और वह जमीन पर पड़ी लाश को एक टक देखने लगे। दो आदमी पकड़कर उन्हें लाश के पास लाए।

उन्हें हाथ में सिंदूर की डिबिया पकड़ायी गयी। वे सिंदूर को हाथ मे लेकर कुछ सोचते रहे...उस वक्त जो सिर्फ वही सोच सकते थे... उन्होंने पत्नी की मांग भरी... लाल चुनरी से माथा ढ़का..माथे पर बिंदिया सजायी औऱ उन्हे सीने से लगाकर फ़फक पड़े। यह उनके दुल्हन की विदाई थी..... उनके हससफर की विदाई.....इस दुनिया से विदाई।

 संयुक्त परिवार की जिम्मेदारियां ओढ़े निशा की मम्मी पति, बच्चों औऱ परिवार पर इतना प्यार लुटायीं कि खुद के लिए प्यार नहीं बचा। घर के जिन सदस्यों को खुश करने में वह लगी रहीं उन्हें इनके जानलेवा दर्द का जरा सा भी इल्म नहीं था।

एक सुबह वह कमरे से बाहर नहीं निकली। पेट में दर्द था..भयंकर दर्द। घर में इधर-उधर पड़ी दर्द की दवा खोजकर खिलायी गयी। आराम हुआ..थोड़ा आराम।
निशा की दादी ने यह कहते हुए डॉक्टर के पास न जाने दिया कि वह अपनी जिंदगी में बहुओं की बिमारी के बहानों से भली प्रकार वाक़िफ़ हैं।

नजरअंदाजी यूं ही चलती रही..और एक रात निशा की मम्मी की रुलाई सुनकर घरवालों के साथ पूरा मुहल्ला जगा। वही दर्द था..भयंकर दर्द..जो असहनीय था। आधी रात को डॉक्टर के पास ले जाया गया।
 सुबह अल्ट्रासाउण्ड हुआ। डॉक्टर ने यह कहते हुए जल्द से जल्द ऑपरेशन कराने की सलाह दी कि बिमारी को छिपाकर बढ़ाया गया है..यह जान के लिए ख़तरा बन गया है।

निशा की मम्मी अल्सर से जूझ रही थीं। कल उन्हें ऑपरेशन के लिए जाना था। और आज... उनकी विदाई थी...दुनिया से विदाई।

शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

शब्द की खोज...


भगाओ बेटा बिल्ली को..नहीं तो भगौने का सारा दूध साफ कर जाएगी.

क्या बोलूं मम्मा बिल्ली को??

बोलो- बिल बिल बिल..!!

बिल बिल??

हां

मम्मा यह तो इंगलिश वर्ड है, जिसके हिंदी अर्थ से भी बिल्ली को कोई लेना-देना नहीं.

बेटा..यही शब्द यूज होता है बिल्ली को भगाने के लिए..इससे बिल्ली भाग जाएगी!!

मम्मा मुझे बड़ा अजीब लग रहा है इस शब्द को बोलने में!

लेकिन बेटा..यह पुस्तैनी शब्द है..हमें विरासत में मिला है..तुम्हारे दादा जी घर में छिपी बिल्ली को इसी शब्द से भगाते थे...और पापा भी ऐसे ही भगाते है।

मम्मा..मैं बड़ा होकर किसी ऐसे इंगलिश वर्ड की खोज करुंगा...जो बिल्ली से रिलेटेड होगा..जिसे लोग बिल्ली भगाने के लिए यूज करेंगे।

हम्म्म...बेटा!


हम अर्ज़ करेंगे तो शिकायत होगी !!



कुछ दिन पहले अपनी सहेली के साथ एक समारोह में जाने का मौका मिला। वहां बहुत सारे लोग आए हुए थे, जिनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा थी। महिलाएं तरह-तरह के लिबास में थी।

कुछ स्वेटर शॉल अपने हाथ पर टांगे घूम रही थीं...कुछ दूसरों से पूछ रही थीं कि बताओ-जैकेट के उपर से क्या उनका हार दिख रहा है?

जवाब में नहीं सुनने पर वे वहीं अपना जैकेट उतारकर साड़ी का पल्लू ठीक करते हुए जनता-जनार्दन के दर्शन के लिए अपना हार को साड़ी के उपर लटका  रही थीं।

यह सब दिखना-दिखाना चल ही रहा था कि सबके बीच एक अप्सरा उतरी। गहरे सांवले रंग की महिला। होठों पर लिपस्टिक की मोटी परत जो मोम की भांति जमी हुई दिख रही थी, शायद महिला को इस बात का इल्म था और बिना शीशे के उसे ठीक करने की कोशिश में लिपस्टिक इधर-उधर फैल गई थी.. जो खराब लगने के साथ बहुत भद्दी नजर आ रही थी।

महिला डीप नेक की ब्लाउज के साथ हरी चमचमाती साड़ी में थी। डीप नेक होने के कारण उसके पीठ पर सर्दी की मार पड़ी थी जिससे रोएं उग आए थे। महिला सिर्फ एक पतली साड़ी में थी।

मेरी सहेली ने कहा- यह परम सत्य है!!!
मैने कहा- क्या?
उसने कहा- यही कि महिला को ठण्ड लग रही है!
मैने कहा- इतनी ठण्ड में गर्मी तो लगेगी नहीं!
उसने कहा- कम से कम लोगों को इतना पता होना चाहिए कि उन पर क्या अच्छा लगता है...क्या नहीं। और अगर ना फ़बते हुए भी कोई पहनने की जुर्रत करे तो उसे सलीके से पहनना चाहिए।
महिला के पीठ पर ब्लाउज की पट्टी देखो..जूते का रिबन भी शरमा जाए...इतनी पतली कि गलती से किसी की अंगुली फंस जाए तो तार-तार हो जाए..

तभी महिला अपनी सहेली से पूछी-बता ना..कैसी लग रही हूं?
महिला की सहेली ने कहा- झक्कास, सुंदर...गजब की लग रही हो.

मेरी सहेली ने मुझसे पूछा- मैं भी जाकर कुछ कहूं??
मैने कहा- क्या?
उसने कहा- यही कि………..मोहतरमा

आप खुद ही अपनी अदाओं पर ज़रा ग़ौर फ़रमाइए

    हम अर्ज़ करेंगे तो शिकायत होगी