रविवार, 19 नवंबर 2017

मरे हुए लोग अच्छे नहीं लगते मुझे!



सुनो!
जैसा सभी कहते हैं कि समय नहीं मिल पा रहा है
चाहकर भी टाइम नहीं निकाल पा रहा हूं
तुम उनसे कुछ अलग नहीं कहते हो।
लेकिन अगर हो, तो होने जैसा महसूस होने दो।
जानती हूं!
फेसबुक और व्हाट्सएप रोज चलाते हो
लेकिन एक पुरानी फोटो एक हजार दिनों से लगाए रखे हो
उकता जाती हूं देखते-देखते, लगता है जैसे कोई कब्र देख रही हूं
अगर हो, तो थोड़ी हलचल रखो
पता है मुझे!
फोन करने पर उठाओगे नहीं
देखकर भी वापस कॉल नहीं करोगे
पूरे साल-साल खुद को बिजी बताते हो
अगर हो, तो अप्वाइंटमेंट दे दो
अगर हो, तो होने जैसा लगो
क्योंकि
चलते-फिरते मरे हुए लोग अच्छे नहीं लगते मुझे।

श को स नहीं लेकिन कॉमेडी को कामेडी कहने वाले लोग नहीं पसंद उसे!



क्या आप बता सकते हैं कि आपका दिमाग किन बातों से सबसे ज्यादा खराब होता है? कोई आपको गाली दे, आपका मजाक उड़ाएं, इससे.. या घर में कोई आपको आवारा, निकम्मा बोलकर आपकी इज्जत उतारे उस बात से?
 
वैसे मुझे नहीं लगता कि दिमाग खराब होने की किसी के पास कोई एक वजह होती है। दिमाग ही तो है जाने कब और किस बात पर खराब हो जाए...खुद को भी पता नहीं रहता।

अब उस लड़की को ही ले लीजिए...कल उसके पति का दोस्त उसके घर डिनर पर आया। बात-बात में वो कहने लगा कि उसके एक सीनियर आजकल लांगवेज सीख रहे हैं। वो अपने पति की थाली में आलू-टमाटर की रसेदार सब्जी में से आलू निकालकर डाल रही थी। 

लांगवेज?...ये क्या बोल रहे हैं आप...इतने पढ़े-लिखे हैं फिर भी लैंग्वेज को लांगवेज क्यों बोल रहे हैं? यहां तो बोल दिया आपने लेकिन आगे से किसी के सामने ऐसे गलत-सलत मत बोला कीजिए। अभी तो आपकी शादी भी नहीं हुई है...ऐसे बोलेंगे तो कोई लड़की पसंद नहीं करेगी।

अरे...इसमें गलत क्या है भाई?...हम लोग ऐसे ही बोलते हैं...

हम लोग....आप और कौन?... देखिए वैसे तो शब्दों के गलत उच्चारण से पर्सनली तो मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं होनी चाहिए। लेकिन होती है...इनफैक्ट बहुत ज्यादा होती है...दिमाग भन्ना जाता है मेरा। 

अंश के टीचर रोज शाम को उसे ट्यूशन पढ़ाने आते हैं...वो अंस..अंस चिल्लाए बिना घर के अंदर नहीं घुसते हैं...बताओ आप ही...नाम तो मेरे बेटे का अंश है लेकिन वो उसे अंस..अंस कहते हैं...मुझे सुनने में कंस..कंस सा लगता है...पहले दिन ही मुझे हंसी आ गई थी इसलिए श को स कहने का गुस्सा उसी वक्त उड़ गया था जो अब तक नहीं आया। लेकिन जब वो मेरे बेटे को कहते हैं कि क्या कामेडी कर रहे हो यार...पढ़ते क्यों नहीं.. तो मन करता है कि किचन से बेलन उठा कर ले जाऊं और उनका सर फोड़ दूं...अरे बच्चों से ऐसे टपोरी भाषा में बात करना है तो अच्छा है कि पढ़ाने ही न आएं। पढ़े-लिखे टीचर हैं वो और मुंह फाड़कर कामेडी बोलते हैं...अरे कॉमेडी भी तो बोल सकते हैं। वह गुस्सा नहीं करना चाहती..लेकिन जाने क्यों उसे गलत उच्चारण सुनकर उल्टी आने लगती है..ऐसा वह कहती है।

गुरुवार, 3 अगस्त 2017

टूथपेस्ट!!!



याद है..उस दिन सुबह जब शॉप पर टूथपेस्ट लेने पहुंची तो शॉप बंद थी...फिर तुम्हारे ही कमरे से पतंजलि का जो दंत कांति टूथपेस्ट उठा लायी थी वो आज खत्म हो गया। उस दिन आते-आते तुमने कहा था कि जब शॉप खुलेगी तो तुम खरीद लेना और इधर आना तो मेरा टूथपेस्ट वापस कर देना। जबकि तुम्हें था कि ये लड़की टूथपेस्ट वापस नहीं करने वाली।

बाकी सामानों की तरह खत्म होने से पहले टूथपेस्ट खरीदने की चिंता कभी नहीं रहती है। लेकिन जब अचानक से टूथपेस्ट खत्म हो जाता है तो सबसे जरूरी सामान वही लगता है। 

हां...तो मैं कह रही थी एक महीने पहले तुम्हारे कमरे से जो टूथपेस्ट उठाकर लायी थी मैं वह खत्म हो गया है। वैसे तो टूथपेस्ट जब भी खत्म होता है मैं उसका ट्यूब काटकर उसमें से भरपूर पेस्ट निकाल लेती हूं...लेकिन देखो न...ये वाला पेस्ट रात में खत्म हुआ है....रात को ब्रश किए बिना मैं सो नहीं सकती और अगर मैंने ट्यूब को काटकर पेस्ट निकाला तो बचा-खुचा पेस्ट सुबह तक सूखकर पपड़ी हो जाएगा....और फिर एक महीने पहले वाली कहानी फिर से दोहरानी पड़ेगी।

अब तुम समझ गए होगे कि मैं क्या कहना चाहती हूं....जी हां....सुबह पांच बजे उठने के बाद दस बजे ब्रश कौन करता है भला....शॉप तो दस बजे ही खुलेगी...फिर इतनी सुबह पेस्ट कहां से आएगा.....मैं फिर से तुम्हारे कमरे से टूथपेस्ट उठाऊंगी तो तुम इस बार चालीस की जगह अस्सी रूपए वसूलोगे मुझसे....चलो इस बार बख्श देती हूं तुम्हें.....आज रात बिना ब्रश किए ही सो जाती हूं....सुबह उठकर उस ट्यूब को काटकर भरपूर पेस्ट निकालूंगी...तब मेरी पड़ोसन मुझे बोलेगी...सामान का पैसा वसूल यूज करना कोई इनसे सीखे।

शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

वो पक्का भाग जाएगी!



-कहां हो बे..कब से फोन कर रहा हूं..फोन नहीं उठा रहा है तू।
बॉथरूम में था भाई...हां बोल कोई जरूरी काम था क्या।
-रूचि भाग जाएगी...पक्का वो कहीं भाग जाएगी।
मतलब?...क्या हुआ सब ठीक तो है?...क्या अंट-संट बके जा रहा है।
-सच कह रहा हूं...रूचि भाग जाएगी कहीं..घर छोड़ कर चली जाएगी वो...मां बिना बताए चाचा के साथ यहां दिल्ली आ गई हैं। स्टेशन पहुंचकर उन्होंने मुझे फोन किया...ऑफिस में काम कर रहा था मैं...दिमाग फिर गया मेरा सुनके कि वह बिना बताए दिल्ली आ गई हैं...अब समझ में नहीं आ रहा है कि मां को लेकर कहां जाऊं।
कहां लेकर जाऊंगा...क्या मतलब?...फ्लैट में लेकर जा अपने और क्या...अबे मां हैं वो तेरी...इतने बड़े शहर में अपने घर नहीं तो और कहां रखेगा उनको।
-वही सोच-सोचकर सिर फटने लगा था तो दारू पी ली यार मैंने अभी मां स्टेशन पर बैठी है और मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा कि क्या कहूं उन्हें....स्टेशन से उन्हें कहां ले जाऊं।
अबे...बेवकूफी मत कर....देख कहीं इधर-उधर मत छोड़ देना उनको...सीधे घर लेकर जाना।
-हां यार...मां को रूचि से कोई दिक्कत नहीं हैं...रुचि ही मां को देखकर भन्ना जाती है...अगर मैं उसे फोन करके बता दूं कि मां को लेकर घर आ रहा हूं तो मेरे पहुंचने से पहले ही वह कहीं भाग जाएगी...समझ में नहीं आ रहा है क्या करूं....वो मेरी बात नहीं सुनेगी...और मां को मैं कहीं और नहीं ले जा सकता।
अबे...पहले ये दारू का नशा खत्म कर...स्टेशन जाकर मां को रिसीव कर फिर ठंडे दिमाग से सोच क्या करना ठीक है क्या नहीं....और हां...मां को कहीं इधर-ऊधर मत छोड़ना भाई प्लीज।