अगर इंसान को इंसान
के बाद जानवरों से प्यार होता है तो..हां मेरे पड़ोसी शंकर को उसकी भैंस बहुत प्यारी
थी..जिसे वह प्यार से चंपा बुलाता था…और कुछ दिनों में भैंस को भी इस बात का आभाष हो
गया था कि उसका खुद का नाम ही चम्पा है…

शंकर भैंस की सेवा में जुट गया…हरे-हरे चारे की कहीं ना कहीं
से व्यवस्था कर ही देता …खली-चूनी भूंसी गुड़
इत्यादि बाजार से लाकर रख दिया..जैसे औऱत के लिए किसमिस सुहारा औऱ मुनक्के की व्यवस्था
की जाती है…अब भैंस को नहलाने के बाद तेल भी लगाता…भैस के शरीर पर गोबर लगा दिखता ही
नहीं था…शाम को मच्छर लगनें पर उपली जलाकर धुआं करता..मच्छर भगाता….
एक दिन भैस को बाहर धूप में बांधकर शंकर शाम तक के लिए कहीं
बाहर चला गया…धूप में बंधी साफ सुथरी भैंस को अकेली पाकर कौवों का कुछ झुंड आकर उसकी पीठ पर बैठ गया… और
अपनी चोंच से भैंस की पीठ पर खोद-खोद कर एक घाव बना दिया….घाव इतना गहरा कि मांस के
लोथड़े दिखनें लगे..औऱ पीठ के रास्ते होकर खून टपकनें लगा…
शाम को जब शंकर वापस आया…औऱ भैंस को जब चारा डालनें गया तो
पीठ पर अचानक घाव में मांस के लोथड़े को देखकर घबरा गया…और इस डर से की घाव कहीं सड़नें
ना लगे…घर में पड़ा सब्जियों के लिए कीटनाशक के रुप में प्रयुक्त होने वाला मैलाथियान
भैंस के घाव पर छिड़क दिया….कुछ ही घंटों बाद भैस गश्त खाकर जमीन पर गिर पड़ी…
घरवालों नें घबराकर पास के अस्पताल से एक पशुओं के डाक्टर
को बुलाया…डाक्टर भैंस की दशा देखे औऱ कहे
कि मैलाथियान का जहर भैंस के पूरे शरीर में फैल गया है…इतना सुनते ही शंकर के चेहरे
का रंग ही उड़ गया…डाक्टर ने भैंस को तीन बोतल पानी चढ़ाया …और भैंस को जितना हो सके
ठण्डे पानी से नहलाने के लिए कहा…हैंडपंप से
पानी निकालकर भैंस को लगातार कई घंटों तक नहलाया गया….लगातार नहलानें के कुछ घंटों
बाद भैंस अपनी गर्दन झटकी औऱ आंख खोली….
शंकर को बहुत खुशी हुई…लेकिन
कुछ ही मिनटों बाद भैंस फिर गश्त खाकर गिरी औऱ अंतिम सांस ली….शंकर दहाड़े मारकर रोनें
लगा…उसनें गलती से एक ही नहीं दो प्यारे जानवरों की हत्या अपनें हाथों कर दी थी…भैंस
के पेट में पल रहा आठ महिनें का बच्चा भी मां
सहित मारा गया…शंकर के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे…बगल के ओसारे में
रखे बोरे में खली-चूनी भूंसी और गुड़ जो उसकी चम्पा के लिए आकर रखा था…सब उसी तरह पसरा
रह गया….शंकर सीना पीटकर रोए जा रहा था….अपने को अपनी चम्पा का कातिल समझकर