वह शहर भर के रास्तों को जब
नापती है तो उसे इस बात का गुमान होता है कि आगे न सही लेकिन उसके आगे पलाश का
पेड़ जरूर दिखेगा। लेकिन मानो शहर ने पलाश को पलायन का रास्ता दिखा दिया हो। वह
निराश हो जाती है। वह रास्ते में जहां कहीं भी छह-सात पेड़ों का झुंड देखती है,
देखती ही जाती है, मुड़-मुड़ कर देखती है कि उन पेड़ों के बीच से कहीं पलाश न
झांककर उसे देखे। वह दीदार करना चाहती है तो सिर्फ पलाश के फूलों का। वह उन फूलों
को अपने में समा लेना चाहती है। वह दीवानी है तो बस पलाश के फूलों की।