जैसा कि होता तो बहुते कुछ
है, लेकिन हम हर चीज लिखते नहीं हैं ना...दिमाग तो वैसे ही भन्नाया था लेकिन एक
जाने बोले कि लिख दो परेशानी कम हो जावेगी। एही खातिर हम लिख रहे हैं--
का है कि हम अपने रुम मेट
से बड़ा पर्सान रहते हैं..काहें कि वह शादीशुदा है, उसके चूड़ियों और पायलों की
खनक “उनकी” जगह हम सुनते हैं, श्रृंगार हम निहारते हैं.... और बस यही नहीं कमरे में एक
बेड होने के कारण एक साथ सोते भी हैं। अब आगे का बतायें... शायद इन्ने से ही मेरी
पर्सानी लोगों की समझ में आ जाए।
हां तो बात ये है कि हम
दूसरी मंजिल पर रहते हैं, पहली मंजिल पर एक कमरा खाली हुआ, तो मैनें सोचा कि क्यों
न उसी में शिफ्ट हो जाऊं..कम से कम अलग बेड पर सोने को तो मिलेगा।
मकान मालकिन से बात की तो
एक दो बार मुझे गौर से देखने के बाद तैयार हो गयीं और कमरे की चाभी मुझे पकड़ा दी।
हम सोचे कि आज अत्तवार है, छुट्टी है, सामान रखवाने में कोई ना कोई तो मदद कर ही
देगा। दो तीन लड़कियों से थोड़ी मदद करने को बोली तो जवाब मिला- बाल में तेल लगाकर
गुनगुनी धूप ले रही हूं, किसी और को ले लो...
जब कौनों नहीं आयीं तो “अपना काम खुद करना चाहिए” का जज्बा मन में लेकर हम
चौबीस सीढियों का सफर तय करके नीचे उतरे और दस बारह दफे सीढ़ियों को खांचने के बाद
कुल सामान नीचे के रुम में लाकर पटक दिए।
इसी बीच फोन भी बजा, बड़ी
बहन का फोन था, मैनें बताया कि ऊपर का कमरा छोड़कर नीचे वाले कमरे में शिफ्ट हो
गयी...बहन बोलीं अच्छा नया कमरा है, एक काम करना, एक ठो नारियल जरुर फोट देना।
मैने कहा- घर नहीं खरीदा है जो नारियल फोड़ू?... लेकिन हुकुम मिला- नारियल जरुर फोड़ देना।
एक ठो लड़के को रुपया देकर
नारियल मंगायी...कमरे की एक-एक आलमारी साफ की। किताबों औऱ बाकी सामानों को करीने
से सजायी। मन खुश था कि अब चैन से रहूंगी। सिर्फ नारियल फोड़ना बाकी था कि एक आफत
आ गयी।
मेरे अदद मकान मालिक अपनी
इकलौती बीबी को डांटते हुए मेरे पास आए औऱ बोले कि आप ऐसा करिए, जिस कमरे में आप
रहती हैं आप उसी में रहिए। मैने कहा -अंकल मैनें तो अब सारा सामान शिफ्त कर लिया।
वे बोले कि ये कमरा पहले से ही बुक हो गया था लेकिन मेरी मिसेज को पता नही था
इसलिए आपको फिर उसी कमरे में जाना पड़ेगा। मकान मालिक का मकान था मेरे पड़ोसी का
तो था नहीं की जबरदस्ती बतियाते।
हम तो कपार पकड़ कर बैठ गए।
सामान नीचे शिफ्ट करवाने में किसी ने कोई मदद नहीं की तो पुनः जहां से आया वहां
पहुचाने में कोई मदद करे सवाल ही नहीं उठता था।
उफ्फ..आगे की लाइन लिखने
में बड़ा दर्द का एहसास हो रहा है, सारा सामान बांध कर फिर से चौबीस सीढ़ियों को
बारह बार रौंद कर सारा सामान जहां का तहां पटके....गिलास, प्लेट और चम्मच नीचे से
दोबारा ऊपर आने को बिल्कुल तैयार नहीं थे..लाते वक्त सीढ़ियों पर ऐसा गिरे कि फिर
चौबीस सीढ़ी नीचे पहुंच गए। खैर सारा सामान तो आ गया लेकिन उसे करीने से सजाने की
हिम्मत नहीं हुई।
आज तक मैहर देवी नहीं गयीं हूं
लेकिन आज पचास दफे चौबीस सीढ़ियां चढ़ने उतरने से यह बात गर्व से कह सकती हूं कि
जब कभी भी वहां जाऊंगी सीढ़ियां आसानी से चढ़ जाऊंगी। और हां....कमरे के एक कोने
में पड़ा नारियल मेरा मुंह ताक रहा है, उसका क्या करुं समझ में नहीं आ रहा। भगवान
को तो नहीं ही चढ़ाउंगी। उसका औऱ कुछ किया जा सकता है तो कोई बताए??