एक संयुक्त परिवार में अपने
भाईयों में सबसे छोटे व्यक्ति ने कल जमीन खरीदी। वह खाली जमीन उनके घर के ठीक बगल
में थी और बेचनेवाले से वह सिर्फ इसलिए खरीदना चाहते थे कि उनके घर से सटी वह जमीन
उस घर का एक हिस्सा बन जाएगी। उनके घर में अब तक जमीन खरीदने का काम उनके बड़े भाई
किया करते थे जब तक कि उन्हें उम्मीद थी कि एक ना एक दिन उन्हें पुत्र रत्न की
प्राप्ति होगी, हालांकि उनकी दो बेटियां हैं। व्यक्ति ने अपने भाई कि मनःस्थिति को
देखकर कुछ भी पूछना उचित नही समझा और जमीन हाथ से निकलती. इससे पहले खुद ही खरीद ली।
समाज में आजकल कुछ ऐसे लोग भी हैं जो घर में बेटा
न होने का कोई गम नहीं करते, बेटियों को मानते हैं, अच्छी शिक्षा देते हैं। लेकिन
अगर घर में बेटा होता तो शायद वह प्यार दुलार या सिर्फ अच्छी शिक्षा तक ही सीमित
ना होता। एक समय आता है जब बेटा बड़ा भी नहीं हुआ होता है और मां-बाप को अपना घर
बित्ते भर का लगने लगता है। और बेटे के नाम फ्लैट खरीदने की जुगत होने लगती है।
माता-पिता जीवन भर बेटे के लिए पर्याप्त जमीन एवं सुविधाएं खरीदने में परेशान रहते
हैं, और जितना खरीदते हैं वो सब उन्हें उतना ही कम लगता है। इस चक्कर में वे बेटे
की कई पीढ़ियों के लिए सुविधाएं जुटा जाते हैं।
बेटियां का जन्म तो घर से
सिर्फ विदा लेने के लिए होता है। मायके से ससुराल और ससुराल से मायके। बेटियों को
लेकर मां-बाप के अरमान जमीन या फ्लैट जैसे नहीं होते। लेकिन एक अच्छे वर के साथ
मोटे दहेज की चिन्ता जरूर रहती है। यह चिंता शायद बेटी के जन्म के बाद से ही हो जाती है। दो
बेटियों से भरे घर में सिर्फ एक बेटे के ना होने से मां-बाप को लगता है इतना बड़ा
घर और रहने वाला कोई नहीं। उस वक्त घर में बेटियों की गिनती न के बराबर होती
है।मां-बाप हमेशा मुरझाए रहते हैं जैसे जीवन में कोई रस ही नहीं। पड़ोसिन से बात करते
हुए मां अक्सर रो दिया करती जैसे एक बेटे के बिना वह कितनी बेबस कितनी लाचार है।
बेटा होता तो वह एक नहीं कई बार मुहल्ले की औरतों से पूछती कहां खरीदी नई जमीन,
कितने का लिय़ा नया फ्लैट।.क्या घर और जमीन की जरुरत बेटियों को नहीं पड़ती?