कुछ दिनों पहले मैं पुस्तक मेले में गई थी। वहां से चार किताबें लेकर जब घर
लौटी तो खुशी के मारे पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे मेरे।
हुआ यूं कि पुस्तक मेले में किताबों के एक स्टॉल पर मैं हिन्दी-उर्दू डिक्शनरी
लेने पहुंची। वहां दूकानदार ने कहा कि उसके पास डिक्शनरी तो नहीं है लेकिन कुछ ऐसी
किताबें हैं जिसमें कुछ हिन्दी में और फिर वही बात उर्दू में लिखी गई है। उसने
मुझे गौर से देखा और बोला कि लेकिन यह किताब वही लोग पढ़ सकते हैं जिन्हें
थोड़ी-बहुत उर्दू का ज्ञान हो।
किताब बेचने वाला मुझसे यह जानना चाह रहा था कि मैं हिन्दू हूं या मुस्लिम। मैंने
उसे बताया कि मैं हिन्दू हूं लेकिन चूंकि मैंने दो महीने तक उर्दू सीखने का ट्यूशन
पढ़ा है और मुझे उर्दू में लिखे कुछ हर्फ समझ में आते हैं इसलिए मैं यह किताब
खरीदना चाहती हूं। मैंने उसकी दूकान से दो किताबें उठायी और पैसे देने लगी। पहले
तो उस किताब बेचने वाले ने पैसे ले लिए लेकिन थोड़ी ही देर बाद सारे पैसे मुझे
वापस कर दिए। यह देखकर मुझे बहुत ताज्जुब हुआ। मैंने कहा- अरे भैया किताब के पैसे
तो ले लीजिए। इस पर वह बोला- नहीं यह किताब मैं फ्री में ही आपको दूंगा।
मैं व्हाट्सएप के आंख फाड़कर देखने वाले इमोजी की तरह उस किताब बेचने वाले को देख
रही थी। थोड़ी देर बाद वह बोला कि मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि आप हिन्दू होते
हुए भी उर्दू सीखने की इतनी ज्यादा इच्छुक हैं। हम अपनी तरफ से यह किताब आपको देकर
आपकी मदद करना चाहते हैं। अल्लाहताला जरूर आपकी इच्छा पूरी करेगा। मुझे भी उसकी
बातें बहुत अच्छी लगी।
पुस्तक मेले से मैंने हजरत मुहम्मद की जीवनी और पवित्र कुरआन शरीफ खरीदा और घर
लौट आई। इसी खुशी में मेरे पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। मैंने दो-चार लोगों से पुस्तक
मेले वाला किस्सा शेयर किया। लेकिन लोगों की प्रतिक्रिया यह रही कि फ्री की किताब
ही तो मिली है कौन सा बड़ा खजाना हाथ लग गया है। उनकी यह बात सुनकर मेरा मुंह लटक
गया।
सच कहूं तो किताबों की अहमियत सभी को नहीं मालूम होती है। किसी से लिए यह
रद्दी तो किसी से लिए नमक की पुड़िया बनाने वाले कागज से कम नहीं होता। मेरे लिए
तो किताबें सोना से कम नहीं। मैं तो इसी से मालामाल होना चाहती हूं।