शनिवार, 23 जनवरी 2016

कोई चांद देखने वाला हो!



चांद और मेरे बीच क्या रिश्ता है यह मुझे नहीं मालूम। लेकिन हां..चांद अब रिश्ते में मेरा मामा नहीं लगता। अगर कोई चांद से हमारे रिश्ते के बारे में पूछे तो शायद चांद का जवाब यह हो कि मैं उसकी फैन हूं। सबसे बड़ी वाली फैन।

आसमान में जब भी गोल-मटोल चमकीला चांद देखती हूं तो मेरा मन तितली की तरह हो जाता है। पैर जमीन पर नहीं पड़ते लेकिन मैं किसी फूल पर नहीं बैठती। चांद देखकर इतनी खुशी होती है कि मैं इसे अपने मन में नहीं समाना चाहती। अपना फोन उठाकर फटाफट नंबर ढूंढने लगती हूं जिससे कह सकूं देखो न आसमान में कितना प्यारा चांद निकला है। कभी-कभी यह बताते वक्त मुझे वैसे ही खुशी होती है जैसे मैं किसी से यह बता रही हूं कि सुनो न! मेरे भाई को बेटी हुई है..मैं बुआ बन गई। लेकिन खुशी तो खुशी होती है न! चाहे वह खूबसूरत चांद देखने की ही क्यों न हो।

चांद आसमान में था और मैंने एक दोस्त को फोन किया। फोन उठाते ही उसने कहा कि कितनी तेज ठंड पड़ रही है यार। मैंने कहा-लेकिन इसी ठंड में तुम्हे एक कष्ट करना होगा। उसके बाद मैं खूब जोर-जोर से बोलने लगी... छत पर जाकर देखो न कितना प्यारा चांद निकला है..बहुत सुंदर लग रहा है देखने में। यह कहते हुए मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं उससे कह रही हूं छत पर जाकर देखो न किसी की बारात जा रही है..और दुल्हे को देखना कितना सुंदर दुल्हा है।
थोड़ी देर बाद चांद देखकर दोस्त ने कहा कि रोज कि तरह ही तो निकला है..मैंने सोचा कि चांद मेकअप करके निकला है क्या जो तुम्हे इतना सुंदर दिखने लगा। बात का मजाक बनाकर उसने फोन रख दिया।

मैंने दूसरे दोस्त को फोन किया और बोली-आसमान में देखो न चांद कितना सुंदर दिख रहा है। वह बोला-कोई कविता लिख रही थी कि क्या? तुम तो शायरों की तरह बातें कर रही हो।
मैंने कहा- सच में सुंदर है देखो तो जाकर।
वह बोला- चांद तो मैं देख लूंगा लेकिन तुम्हारी नजर कहां से लाऊंगा?
इस तरह वह भी चांद नहीं देखा। और मैं दुखी होकर यह लेख लिखने बैठ गई।

जिस वक्त मैं यह लेख लिख रही हूं, मेरे कमरे का दरवाजा खुला हुआ है और चांद मेरे कमरे में झांक रहा है...दरवाजे के ठीक सामने। मानो कह रहा हो मैं तुम्हारे आंखों के सामने हूं..मुझे देखो और लिख डालो। इस वक्त मुझे ऐसा लग रहा है जैसे कोई मेरे सामने बैठा हो और यह कह रहा हो मुझे देखकर बना दो मेरी खूबसूरत सी पेंटिंग।

चांद कॉलेज के दिनों से ही मेरा पीछा कर रहा है। जब मैं हॉस्टल में रहती थी उस वक्त मेरे कमरे की खिड़की से चांद दिखता था। मेरी रूममेट रात में अपने ब्वॉयफ्रेंड से फोन पर बातें करती और मैं खिड़की से चांद देखा करती। उस वक्त लैपटॉप पर आबिदा परवीन की गजल आंगन वाले नीम में आकर अटका होगा चांद, हम तो हैं परदेस में देश में निकला होगा चांद... ही बज रहा होता। उसके बाद जितने भी किराए के घरों में रही कमरे से ही चांद आसानी से दिख जाता। चांद तो दिख जाता लेकिन अब तक वह न मिला जिससे कहा जा सके..देखो न आसमान में चांद कितना प्यारा दिख रहा है।

शुक्रवार, 8 जनवरी 2016

दो चूहों की मौत

अपनी जिंदगी में मैंने किसी भी इंसान को मरते हुए नहीं देखा, जब भी देखा मरने के बाद ही देखा। ठीक ऐसे ही मैंने किसी जानवर को भी मरते हुए नहीं देखा बल्कि मरने के बाद ही देखा। लेकिन मेरा ऐसा कोई अरमान कभी नहीं रहा कि मैं किसी को मरते हुए देखूं।

जैसा कि चूहों से तंग आकर इनका बखान मैं पहले भी कर चुकी हूं सो इनके बारे में ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं। चूहों से तो सभी परेशान रहते हैं लेकिन ऐसा लगता है कि मुझे कोई विशेष श्राप मिला है जैसे राम को चौदह वर्ष का वनवास मिला था ठीक वैसे ही मुझे भी दो सालों तक चूहों द्वारा प्रताड़ित किए जाने का श्राप किसी ने दिया है शायद। 

चूहे मारने की जितनी भी दवाइयां इस्तेमाल की मैंने चूहों की उम्र उतनी ही बढ़ती गई। मैं हरदम लोगों से चूहे मारने का उपाय पूछती रहती जैसे कोई मरीज छत्तीस डॉक्टरों के पास से अपने मर्ज का इलाज कराने में नाकाम होने पर किसी न किसी से बड़े और अच्छे डॉक्टर का पता पूछता फिरता है। आधी रात को जब चूहे कभी मेरे पेट पर कभी चादर से ढके मुंह के ऊपर गिरते तो मेरे प्राण सूख जाते थे। मैंने चूहों के मरने की उम्मीद छोड़ दी थी। लेकिन मुझे यह यकीन जरूर था कि इनके दहशत से एक दिन मैं जरूर मर जाऊंगी।

पिछले दिनों छुट्टियों में घर गई थी। तब मां ने चूहे मारने की एक दवा दी। उस दवा को देखकर मेरी हंसी छूट गई। मां ने मुझे आश्चर्य से देखते हुए पूछा- हंस क्यों रही हो। मैंने कहा मेरे कमरे में जो चूहे आते हैं तुम्हारे घर की चूहों की तरह नहीं हैं। मालगोदाम के चूहे आते हैं मेरे कमरे में, एकदम खाते-पीते घर के, और साथ में किसी ने उन्हें अमरत्व का वरदान भी दे रखा है। कोई भी दवा खिलाओ मरते ही नहीं, सैलरी के कुछ पैसे तो इन्हें मारने की दवा खरीदने में ही खत्म हो जाते हैं। मां बोली-इस दवा से तुम्हारे कमरे के चूहे जरूर मर जाएंगे। लेकिन मुझे यकीन नहीं हुआ।

घर से वापस लौटने पर मैंने बिस्किट के छोटे-छोटे टुकड़ों में नील पाउडर की तरह दिखने वाली चूहे मारने की दवा लगाकर कमरे में जगह-जगह रख दिया औऱ कमरा बंद कर ऑफिस चली गई। जब वहां से लौटी और कमरा खोली तो काफी निराश हो गई। बिस्किट के सभी टुकड़े उसी तरह उसी जगह पर पड़े हुए थे। रात में एक बार मेरी नींद खुली तो मैंने लाइट जलाकर देखा, बिस्किट के कुछ टुकड़े गायब थे। थोड़ी उम्मीद जगी कि शायद दवा काम कर जाए।

सुबह उठने के बाद मैं अखबार पढ़ रही थी कि अचानक मेरी नजर एक चूहे पर पड़ी। वो लड़खड़ाते हुए दीवार का किनारा पकड़कर चल रहा था। कभी लुढ़क कर गिर जाता कभी रूक जाता। उसकी आंखें कभी खुलती तो कभी बंद हो जाती। उस वक्त वह चूहा मुझे ठीक वैसे ही दिख रहा था जैसे कोई शराबी हाथ में दारू की बोतल लिए सड़क पर झूमते हुए और लड़खड़ाते हुए चलता है। मैंने कमरे का मुआयना किया तो देखा कि दूसरा चूहा बेड के नीचे मेरी चप्पल के पास लुढ़क रहा था जैसे देवदास पारो के घर की चौखट पर दारू पीकर लुढ़का हो। देखते ही देखते कुछ ही मिनट में दोनों चूहों के प्राण-पखेरू उड़ गए। यह देख मेरे आंखों से आंसू निकलने लगे (खुशी के नहीं गम के) और मैं अपने आप को सबसे बड़ी पापी समझने लगी। 

जमीन पर पड़े चूहों की लाश को मैं वैसे ही देख रही थी जैसे मैंने अपने दादा जी के शव को देखा था। मुझे बहुत रोना आ रहा था लेकिन सांत्वना देने वाला कोई भी नहीं था उस वक्त। मैंने दोनों चूहों को एक कागज पर उठाया। ठीक उसी वक्त मुझे अपनी दादी की एक बात याद आयी। उन्होंने जाने क्या सोच के एक बार बोला था कि जब वो मर जाएं तो उनकी फोटो खींच कर रख ली जाए। इन चूहों को भी याद करने के लिए मैंने उनकी फोटो खींच कर रख ली। उस दिन के बाद से कमरे में काफी सन्नाटा है। कूदने-फुदकने वाले दुनिया को अलविदा कह गए। जब भी कोई छूछूंदर मेरे कमरे में दिखती है मैं उससे ही पूछ लेती हूं कि इतना सन्नाटा क्यों है भाई।

बुधवार, 6 जनवरी 2016

जब बोरियत हो जाए!



यह लेख मैं अपने बोरियत के उन क्षणों में लिख रही हूं जिसे सिर्फ बुरी तरह से (घायल नहीं) बोर होने वाला व्यक्ति ही समझ सकता है। मुझे लगता है कि कभी- कभी हम ऐसी बोरियत के जिम्मेदार खुद ही होते हैं। लेकिन यह बात जब औरों को भी पता हो और आप उनसे दो-चार बातें करके अपना जी बहलाने की कोशिश करना चाहें तो वे आपको ऐसी बातें याद दिलाएंगे मानों आपने दुनिया का सबसे बड़ा पाप किया हो और कई तीर्थ स्थलों की यात्रा के बाद भी शायद आपका यह पाप थोड़ा कम हो। 

बहरहाल, इस परिस्थिति में ऐसे लोगों से बात करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। वक्त कोई भी हो बुरा या फिर बोरियत वाला, घरवालों की याद सबसे ज्यादा आती है। सुबह से चार बार हम मां को भले ही फोन कर चुके हों लेकिन बोरियत के समय जब पांचवीं बार फोन करके यह पूछते हैं कि बताओ न मां किस चीज का अचार बना रही हो तो उस समय मां भी हमारी एंटी हो जाती है और यह कहते हुए कि तुम्हारी हड्डियों का अचार बना रही हूं, थोड़ा टाइम लगेगा गलने में। छुट्टी मिले तो आकर ले जाना। नालायक कहीं की, सुबह से पांच बार फोन कर चुकी है, अरे ज्यादा पैसा हो गया है क्या फोन में। नौकरी छोड़कर मजा आ रहा है ना। अब बोर हो या फिर महफिल सजाओ, फोन पटक देती है जैसे उस समय फोन पटकना ही उनका सबसे सही निर्णय हो।

जब हम घर से दूर किसी शहर में अकेले रहते हैं और बोर होते हैं उस समय सिर्फ मन ही नहीं दिल-दिमाग, आंख-कान सब कुछ बोर होने लगता है। सनी लियोनी की फिल्में देखना भी चुकंदर खाने के बराबर लगता है (चुकंदर मैं आंख बंद करके खाती हूं, जैसे जहर खाते हैं)। हां उस वक्त संजीव कपूर का खाना-खजाना देखना जरूर अच्छा लगता है। बोरियत के क्षणों में यह शो देखते हुए कुछ इस कदर भूख लगती है जैसे इस वक्त कोई हड्डी भी परोस दे तो हम चबा जाएं यह वक्त काटने की खातिर।

हम किचन में रखा एक-एक डिब्बा टटोलते हैं कि किसमें सूजी, किसमें बेसन वगैरह वगैरह रखा है। लेकिन आपको मालूम हो की ठीक उसी वक्त हम दुनिया के सबसे बड़े कंगाल भी होते हैं। डिब्बे में बेसन एक चम्मच तो सूजी सिर्फ दो चम्मच बची होती है। जिससे कुछ भी तैयार किया जाए तो घर के कुत्ते का भी पेट ना भर पाए।

हम एक प्याज औऱ टमाटर, मिर्च काटते हैं और सूजी, बेसन को उसमें मिला कर पेस्ट बना लेते हैं। फिर भी यह पेस्ट कटोरी में इतना कम दिखता है कि वह अपने को अपमानित महसूस करती है। हम पेस्ट को और बढ़ाने के लिए उसमें थोड़ा आटा मिलाते हैं एक आलू भी काट लेते हैं, थोड़ा मैदा भी मिला लेते हैं। कान खुजाते हुए किचन में घूमते हैं और जो भी खाने में ठीक लगे मिलाकर एक कटोरी पेस्ट तैयार कर लेते हैं। इसके बाद उस पेस्ट को तवे पर ऑयल लगाकर रोटी की तरह फैला लेते हैं। एक-दो बार इसे उलटते-पलटते हैं और प्लेट में लेकर टीवी के सामने खाने बैठ जाते हैं। कुछ देर बाद अचानक ऐसा लगता है कि टीवी में से संजीव कपूर अपन से पूछता है कि यह कौन सी रेसिपी खा रही हो बहन। मुझे भी बनाना सीखा दो। हमें अपने पर गर्व महसूस होता है कि इन बोरियत के क्षणों में हमने नई रेसिपी ईजाद कर ली। कभी-कभी घर में कुछ भी नहीं होता। हम सिर्फ डिब्बा खंगालते और पटकते रह जाते हैं। अगर किचन की टोकरी में टमाटर और मटर भी दिख गई तो हम उसे छत पर बैठकर नमक के साथ पैर हिलाते हुए खाते हैं, जैसे छोटे बच्चे खाते हैं, जो कभी बोर भी नहीं होते हैं। बोरियत के क्षणों को काटने का एक तरीका यह भी तो है ना, कि नहीं?

उम्मीद और कुछ नहीं!



जब वह मॉर्निंग वॉक पर निकली उस समय थोड़ा अंधेरा था। कुछ औरतें कारखानों के आसपास चौड़ी सड़कों पर टहलने के लिए निकलीं थी। कुछ पुरुष भी आपस में बात करते हुए जा रहे थे। थोड़ा अंधेरा जरूर था लेकिन उसे डर नहीं लग रहा था। अगर वह पांच मिनट भी कहीं रूक जाती तो उसी रास्ते पर अंधेरा छंट जाता औऱ सुबह हो जाती। लेकिन उसे पता था कि यह सुबह ही है, बस थोड़ा सा अंधेरा है।

वह कान में इयरफोन लगाए भक्ति गाने सुनते हुए जा रही थी। कुछ आगे बढ़ी तो उसे दूर से ही रास्ते में कोई खड़ा दिखाई दिया। वह जब उसके पास पहुंची तो देखा कि वो वही लड़का है जो रोज उसे टहलते हुए देखा करता है। कभी अपने कुत्ते को टहलाते हुए मिलता है तो कभी किसी दोस्त के साथ टहलते हुए दिख जाता है। वह कई दिनों से उस लड़के को देख रही थी, लेकिन सिर्फ दूर से ही।

वह जैसे ही आगे बढ़ी लड़का उसके पीछे-पीछे चल दिया। अब सुबह हो गई थी और उसे डर नहीं लग रहा था। उस दिन वह एक सुनसान रास्ते पर अकेले टहल रही थी, जिधर अमूमन कोई नहीं जाता था। जब वह सड़क पर टहलते हुए एक मोड़ पर आकर रूकी तो लड़का अचानक उसके सामने आ गया। वह बेहद गोरा था और उसके होंठ लड़कियों की तरह गुलाबी थे। यह ठीक वैसा ही था जैसे मैट्रीमोनियल में वर/वधू चाहिए के लक्षण लिखे होते हैं। इस तरह से अपने सामने अचानक उसको देखकर उसका दिल धक धक करने लगा लेकिन वह डरी नहीं।

अब वह उस रास्ते पर टहलने लगी थी जिधर काफी लोग टहल रहे थे और व्यायाम कर रहे थे। लेकिन उस लड़के का चेहरा और गुलाबी होठ उसके दिमाग में बस गया था। वह किसी राजा के पुत्र के जैसे दिख रहा था। अद्भुत था उसका चेहरा। अलग-अलग रास्तों पर टहलते हुए वह उससे किसी न किसी मोड़ पर उससे टकरा जा रही थी। लड़का उसे पहले एकटक देखता और बिना कुछ बोले आगे निकल जाता। कई दिन पहले भी उसके साथ ऐसा हो चुका था लेकिन आज वाला कांड कुछ ज्यादा ही रोमांचक और फिल्मी था।

रास्ते में उसने पीले कनेर का एक फूल तोड़ा और उसे अपनी मुट्ठी में बंद कर टहलने लगी। वह सोच रही थी कि इस बार अगले मोड़ पर वह लड़का मिला तो उसे वह पीले कनेर का फूल जरूर देगी। यह सोचते हुए वह आगे बढ़ रही थी कि वह लड़का फिर से उसे मिल गया। लड़के ने उसे देखा और उसैन वोल्ट वाली रफ्तार से आगे बढ़ गया।

पीला कनेर उसके हाथ में ही रह गया। वह सोचती रही कि जब उसे पीला कनेर देगी तो कहेगी देखो इस फूल में मेरी हथेली की गर्माहट है। इसे जरूर महसूस करना। लेकिन यह मौका वह चूक गई थी। पीला कनेर अपनी मुट्ठी में दबाए वह इस उम्मीद से लौट आयी कि कल वह उस लड़के को एक फूल जरूर देगी। जो राजा के पुत्र जैसा दिखता है, लड़कियों के जैसा गोरा है और जिसके होंठ गुलाबी हैं।

सोमवार, 4 जनवरी 2016

इश्क जहर है?



जिंदगी में प्यार कितने दफा होता है उसे नहीं मालूम था। उसका मानना था कि उसकी तरह यह किसी को भी नहीं मालूम होता। प्यार के नाम पर दो-तीन लड़कों ने उसे धोखा दिया था। उसका बदला लेने के लिए उसने दो लड़कों से प्यार का नाटक किया लेकिन नाटक-नाटक में ही सच्चा प्यार हो गया उसे। इस बार जब दोनों लड़कों ने धोखा दिया उसे तो वह अगम कुमार निगम के बेवफाई वाले गाने सुनकर आंसू बहाने लगी। इस दौरान उसने अल्ताफ रजा के भी दुख भरे गाने सुने। गाने की एक-एक लाइन पर उसने इस कदर आसूं बहाए मानों सारे गाने उसके लिए ही लिखे गए हों।
उस शहर से उसका मन ऊब गया था। वो पूरा शहर उसे उन लड़कों की तरह ही बेवफा दिखने लगा। उसे लगा अब एक दिन भी उस शहर में रुकेगी तो वह जीते जी मर जाएगी। उसने उस शहर को छोड़ने का फैसला किया और नए शहर में जा बसी।
इस शहर में रहते हुए उसे सिर्फ इस बात का डर था कि वहां उसे किसी से प्यार ना हो जाए। वह जब भी किसी काम से बाहर निकलती तो किसी लड़के की तरफ देखती न थी। प्यार में जो धोखा उसे मिला था वह अब उसे हर लड़के के चरित्र में दिखने लगा था। वह इन सब चीजों से बाहर निकलना चाहती थी। एक रात उसने अपनी डायरी में मोटे अक्षरों में लिखा इश्क जहर है, उसने इसे खाया लेकिन पूरी तरह से मरी ना ही अब जिंदा है। जब भी वह अपनी डायरी में कुछ लिखने बैठती प्यार, मोहब्बत में धोखा, बेवफाई के अलावा उसकी कलम कुछ और नहीं लिख पाती थी। उसकी मां फोन पर उसे समझाया करतीं कि वह ध्यान किया करे।
मां की बातों से थककर उसने सुबह जल्दी उठकर खुली हवा में टहलने का निर्णय लिया। पहले दिन जब वह टहलने निकली तो रास्ते में एक लड़का अपने घर के गेट पर खड़ा दिखा। उसने लड़के को देखा लेकिन उसका चेहरा नहीं देखा। वह अपना ध्यान तनिक भी उधर लगाए आगे बढ़ गई। अगले दिन सुबह जब वह टहलने निकली तो लड़का फिर से अपनी गेट पर खड़ा दिखा। इस बार उसका चेहरा भी दिख रहा था। उसने उसे किसी सपने की तरह देखा और आगे चल पड़ी। अब सिलसिला शुरू हो चुका था। जब वह सुबह टहलने निकलती तो लड़का कभी गेट पर खड़ा मिलता तो कभी दूसरी तरफ से दौड़ लगाता हुआ उसकी बगल से गुजरता। वह कभी उसे देखकर मुस्कुरा देता।
अब उसे सुबह टहलना ज्यादा अच्छा लगने लगा था और वह शहर भी। उस दिन सुबह जब वह टहलने निकली तो वह लड़का नहीं दिखा। अगले दिन और कई दिन तक नहीं दिखा। वह उसके लिए परेशान थी, हद से ज्यादा परेशान थी। एक सुबह टहलते हुए उसके दिमाग में ख्याल आ रहा था कि क्या वह उस इश्क के लिए परेशान है जो जहर है।