कुछ साल पहले मेरी एक भैंस को जाने कौन सा बीमारी हो गई थी। दिन भर वह बेचारी
मुंह से गोबर की उल्टी करती और बेचैन रहती। उसके दोनों आंखों से खूब आंसू भी
निकलते। जितने दिन भैंस ने गोबर की उल्टी की उसकी चिंता में मेरी दादी की हालत
खराब होने लगी। एक दिन रात में दूरदर्शन पर घर के सभी लोग फिल्म देख रहे थे तभी दादी
के जोर-जोर से रोने की आवाज आयी। दादी घर के बरामदे में जमीन पर बैठी दहाड़े मारकर
रो रही थीं। उनके ठीक बगल में भैंस गिरकर मर गई थी। उसकी जीभ बाहर निकल गई थी।
मेरी दादी अपने सिर के बाल नोंच नोंचकर पागलों की तरह रो रही थीं और लगातार यह कह
रही थीं कि तुम लोगों के दादा जब इसे खरीद कर लाए थे तब 15 दिन का बच्चा था ये।
इतना गोरा-चिट्ठा(ज्यादातर भैंस काली होती हैं लेकिन मेरी वो भैंस भूरी या गोरी
थी) थी। ठीक से खड़ी भी नहीं हो पाती थी..इसकी मां मर गयी थी तो मैंने इसे गिलास
से दूध पिलाकर पाला। दादी के आंसू नहीं रूक रहे थे उस भैंस से उनको बहुत प्यार था।
दादी को घर के सभी भैंसों से उतनी ही ममता है अब। कुछ दिन पहले मैं घर गयी थी
तो देखा कि भैंस के गले में मोटी रस्सी डालते-डालते उसकी गर्दन पर घाव के निशान आ
गए थे। भैंस घर के बाहर बंधी थी और कौवे आकर उसके घाव को इतना कुरेद दिए कि वहां
से बहुत तेजी से खून निकलने लगा। घर के बाकी लोगों ने भी यह देखा लेकिन सभी भैंस
को दवा लगाने के नाम पर टाल-मटोल कर गए। लेकिन दादी ऐसे तिलमिला उठीं जैसे वह
उन्हीं का घाव हो। उन्होंने भैंस के घाव पर मरहम लगाकर चौड़ी पट्टी बांध दी और
भाभी की दो साल की बेटी को यह देखने के लिए लगा दीं कि जब भैंस के ऊपर कौवा बैठे
तो वह तुरंत डंडा दिखाकर उसे उड़ाए या उन्हें फौरन बुलाए। मेरे पड़ोस के लोग जब
भैंस दूध देना बंद कर देती है तो उसे बेचकर नई भैंस ले आते हैं लेकिन मेरी दादी
मेरे घर की भैंस जब दूध देना बंद कर देती है तो उसे बेचने नहीं देतीं और नए बच्चे
के इंतजार में उसकी सेवा करती हैं। ऐसी हैं मेरी दादी..पशुओं से बहुत लगाव है
उन्हें।