गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

उसके जाने का दुख....



वह बोली, चेहरा देखो अपना...मुझे तुम्हारा चेहरा देखकर टेंशन होता है...मैं ठीक से पढ़ाई नहीं कर पाती। तुम्हें देखकर लगता है जैसे तुम इस ग्रह की हो नहीं। उसकी ऐसी बातों की वजह नहीं समझ में आयी मुझे। 

पिछली रात को दो बजे कमरे का फैन ऑफ करके वह चाय बना रही थी...खट-पट की आवाज से मेरी नींद खुल गई। सुबह मैंने उसे समझाते हुए कहा कि जब दो लोग एक ही कमरे में रहते हों को हमें एक दूसरे के सुविधा-असुविधा का ख्याल करते हुए काम करना चाहिए। जिस वक्त तुम सोती हो मैं जग जाती हूं तो ऐसे रहा करो कि रात की नींद न खराब हो।
बहुत दिनों से शायद कोई गुबार भरा था उसके अंदर, सुबह उठते ही उसने मुझे मेरा कैरेक्टर सर्टिफिकेट थमा दिया, ऐसी कोई भी बात कहने को नहीं बची थी जिसकी मुझे कभी कल्पना भी नहीं थी।

चार महीने पहले जब वह दिल्ली के मुखर्जी नगर से सिविल सर्विसेज की अपनी कोचिंग पूरी करके इस हॉस्टल में तैयारी करने के मकसद से आयी थी तो लगा चलो एक अच्छा एनवॉयरमेंट मिलेगा। दो टाइम घंटे भर योगा मेडिटेशन करती थी वह...दूसरी लड़कियों से काफी अलग थी...काफी हद तक बुद्धजीवी जैसी...हर मुद्दे पर एक अलग ही तरह का ओपिनियन...मैं उसे दीदी कहती थी। एक रूम में रहते हुए भी हम लोग बातें बहुत कम करते...जब मैं सोकर उठती तो वह सोने चलती...बाकी समय में हम दोनों का पढ़ाई करने का अपना-अपना समय तय था तो किसी के पास फालतू की बात करने का इतना समय नहीं होता था। कुल चौबीस घंटों में कभी आधे या एक घंटे ही हम दोनों में बातें हो पाती। खाने-पीने की कोई चीज वो शेयर नहीं करती थी..और मैं उसके कहीं आने-जाने...कुछ नया पहनने ओढ़ने पर कोई रोका टोकी या कुछ भी पूछा नहीं करती थी। 

वह गैस पर कुकर चढाकर जब पढ़ाई करने बैठती तो ऐसे खो जाती कि उसका खाना जल जाता। उसे किसी चीज का होश नहीं रहता...जब मैं खाना बना रही होती तो वह फैन ऑन कर देती और फिर बाद में सॉरी बोलते हुए ऑफ कर देती कि उसने ध्यान नहीं दिया। पता नहीं किस दुनिया में रहती थी...चलते-चलते ही चीजों से टकराकर उसे गिरा देती..लोगों से टकरा जाती।

उसका ज्यादा पढ़ाई करना और रिजर्व रहना मुझे ज्यादा पसंद था लेकिन अपनी ही चीजों का होश न होना...मेरे बीमार होने पर कुछ न कहना ना पूछना ना बोलना। बॉलकनी से उसके कपड़े उड़ कर सीढियों पर गिर जाएं तो अगले दिन तक वहीं पड़े रहते। बहुत सारी एक्टिविटीज उसकी ऐसी थी जो एक नॉर्मल इंसान के नहीं होते।

खैर, जब मैंने उससे जब यह कहा कि एक कमरे में जब दो लोग रहते हों तो हमें एक दूसरे की सुविधा का ख्याल रखना चाहिए। देखो जब तुम सुबह देर तक सोती हो तो मैं कोई खट-पट नहीं करती जिससे की तुम्हारी नींद खुल जाए। ना तो मैं लाइट ऑन करती हूं ना फैन ऑफ करती हूं ना ही पानी गरम करने के लिए गैस जलाती हूं। सब कुछ तुम्हारे जगने के बाद ही होता है। ठीक वैसे ही रात में मैं सोती हूं तो तुम्हें उतना ही शोर करना चाहिए जिससे की सोने वाले की नींद न खराब हो।
बात तो सिर्फ इतनी ही थी न.. लेकिन वह जा रही है...यह हॉस्टल छोड़कर वह जा रही है...मैंने उसे समझाने की कोशिश की..बहुत कोशिश की...ये सब छोटी-छोटी बातें हैं... होती रहती हैं...सबके साथ होती हैं...इसपे बात करके शॉर्टआउट किया जा सकता है...यह समस्या इतनी बड़ी भी नहीं कि कमरा छोड़ने की नौबत आ जाए। लेकिन वह कुछ नहीं सुनी...मुझे घूरने के सिवाय।

मुझे बार-बार कुछ खटक रहा था...मैंने फिर उसे समझाने की कोशिश की...मत जाओ...मैं एडजस्ट कर लूंगी...तुम रात के तीन बजे कमरे में पूड़ियां भी तलोगी तब भी मैं सो लूंगी। लेकिन वह नहीं मानी..बोली मैं अब और नहीं रह सकती तुम्हारे साथ। मैंने उसे फिर समझाया कि तुम सिविल सर्विसेज की एक कैंडिडेट हो...जब इस तरह की छोटी बातों को बिना समझे उसे सुलझाने की बजाय उसे छोड़कर जा रही हो तो बड़ी-बड़ी समस्याएं कैसे हल करोगी...फिर भी उसपे जाने की धुन सवार थी...आज सब कुछ इस तरह से हुआ जैसे उसने कोई प्लानिंग कर रखी हो और उसे निर्णय सुनाने के लिए बस इसी दिन का इंतजार हो।

मैं फिर भी उसे समझाने में लगी रही कि एक छोटी सी बात को वह समझे औऱ हॉस्टल न छोड़े....मैं पिछले चार महीने से उसकी समझदारी की कायल थी...लेकिन आज ऐसा लग रहा है जैसे मैं चार महीनों में उसे समझ ही नहीं पायी। अंततः वह जा रही है।

रविवार, 2 अप्रैल 2017

ओह्ह चांद.....



-सुनो..कहां हो अभी
रूम में हूं..क्यों क्या हुआ?
-कमरे की खिड़की खोलो..या फिर छत पे आकर देखो चांद निकला है
रोज निकलता है..नया क्या है इसमें?
-नहीं..आज कुछ खास है..तुम देखो..जब भी चांद निकले तुम देख लिया करो
हां बाबा..मुझे याद रहता है...मैं चांद नहीं देखूंगा तो तुम जान ले लोगी मेरी..वैसे तुम्हारे कहने से पहले ही मैंने देख लिया था।
-हां..अच्छा किया तुमने...जब भी चांद निकले देख लिया करो..क्यों कि मुझे पसंद है चांद देखना...तुम पास होते तो हम साथ बैठकर चांद देखते और बातें करते।
पगली हो तुम
-हां जो भी हूं...और मैं रहूं या ना रहूं...जब भी चांद निकले देख लेना
(वह छत पर बैठी हुई चाय की चुस्की लेते हुए यह सोच रही थी वह नहीं है तो चांद क्यों निकलता है)

जी आंटी....



अच्छा बेटा जी..तो आप पतंजलि के शैंपू से हेयर वॉश करती हो
-जी आंटी
लेकिन इसपे तो मिल्क प्रोटीन लिखा है..मिल्क वही न जिसका मतलब दूध होता है
-जी
तो ये बताओ बेटा..इस शैंपू में अगर दूध मिला है तो ये मेरे जैसे लंबे बालों को तो लिसलिसा कर देगा न
-नहीं आंटी, ये बालों को लिसलिसा नहीं करेगा।
अच्छा बताओ तो हम भी ले लें इस शैंपू को
-जी अगर आपका मन हो तो ले लीजिए
वो क्या है न कि तुम्हारे अंकल को मेरे लंबे, घुघराले बाल ज्यादा पसंद हैं..कहीं मेरे बाल टूटने लगे तो वो मुझसे खिसिया जाएंगे
-अगर आपके बाल नहीं टूट रहे तो शैंपू बदलने की जरूरत ही नहीं है..जो लगाती हैं वही लगाइये फिर तो
नहीं बेटा..एक ही शैंपू लगाते-लगाते ऊब गई हूं...बड़ा नाम सुना है पतंजलि का..सोच रही हूं खरीद ही लूं।
-जी आंटी..जरूर खरीद लीजिए फिर तो।

उस अनजान लड़के ने जब 'अबे' कहा....



अबे पैर जमीन पर सीधे रख अपना..ऐसे टेक लिया है तूने जैसे तेरा पैर सहजन का पेड़ हो और दबाते ही चरक जाएगा। मैंने पीछे पलट कर देखा..अगल-बगल देखा..कोई नहीं था। फिर वह यह बातें बोल किसको रहा था..शायद उसे पता चल गया था कि मैं कनफ्यूज हो रही हूं। वह मेरे पास आया और बोला..मैडम थोड़ा लटका करो आप। हाइट कम है आपकी इसलिए स्कूटी चलाने में दिक्कत आ रही है आपको। मैंने मन ही मन सोचा..हाय रे कितना फ्रैंक है ये लड़का..अजनबी लड़की से बात भी किया तो अबे..कहकर।
मैं सुबह-सुबह उस ग्राउंड में अपनी स्कूटी लेकर गयी थी और ठीक से चलाने की प्रैक्टिस कर रही थी। जैसे ही मैं ग्राउंड में पहुंची एक कोने में एक लड़की अपनी स्कूटी लेकर गिर गई थी। वह उसी लड़के की भांजी थी। मैंने जब लड़के से कहा- जाओ..उठाओ उसे...तो वह तुरंत बोला..कोई और होता तो उठा देता...वो भांजी है मेरी...गिरकर खुद नहीं उठेगी तो चलाना कैसे सीखेगी। डॉयलॉग तो दमदार था। मुझे एक साल पहले ऐसा गुरू मिला होता तो मैं भी अब तक अपनी स्कूटी उड़ा रही होती।
लड़का बात करने में काफी दिलचस्पी ले रहा था...बोला मैडम..मैं तो सबकी मदद करता हूं..आपको भी अच्छे से सीखा दूंगा। मैं कुछ नहीं बोली और खुद से ही सीखने की कोशिश करने लगी। वह गोल-गोल घूमकर मुझे देख रहा था जैसे कल से वह मेरा गुरू द्रोणाचार्य बनने वाला हो।
जब मैं वापस आने लगी तो वह बोला-कल भी आना...एक दिन में कोई चीज नहीं सीखी जाती। मुझे तो अगले दिन भी जाना ही था लेकिन मैं उसे बिना कुछ कहे वापस लौट आयी।
अगली सुबह जब मैं वहां पहुंची तो ग्राउंड में कोई भी नहीं था। मैं अपने काम में जुट गई। थोड़ी ही देर बाद तेज हॉर्न बजाते हुए अपनी भांजी को स्कूटी पर पीछे बिठाए वह लड़का आकर मेरे पास रूका और बोला-मैडम, आज तो देर हो गई अपन को..नींद नहीं खुली।
उसकी भांजी स्कूटी चलाते हुए कहीं दूर निकल गई थी...वह मेरे पास आया और बोला ऐसे नहीं ऐसे चलाइये। फिर कुछ सोचकर बोला-आप पंडित हैं ना। मतलब..आप कास्ट से पंडित हैं न। मैंने कहा-नहीं।
ओह---आपने हाथ में यह कड़ा पहन रखा है तो मैंने सोचा कि आप पंडित हैं।
उफ्फ अजीब लोग हैं...कुछ पहनने-ओढ़ने भर से जाति का भी पता लगा लेते हैं।
लड़का बोला-मैडम आप कार सीखना चाहेंगी?
- सोचा तो है..भविष्य में जरूर सीखूंगी।
अरे भविष्य में क्यों..मेरे पास कार है आप कहें तो कल से ही सीखाना शुरू कर दें आपको।
-नहीं सर जी...मुझे अभी जरूरत नहीं है।
मैडम आप बुरा न मानें तो एक बात बोलूं?
-जी बोलिए
आप ना मुझसे दोस्ती कर लीजिए..फायदे में रहेंगी।
-कैसा फायदा
वो आप नहीं समझेंगी।
उफ्फ लड़कों की एक ही कैटेगरी होती है...दुनियाभर के लड़कों में कोई विषमताएं नहीं होती हैं।
खैर, मैं हॉस्टल वापस चली आयी..अगली सुबह जब फिर से उस ग्राउंड में पहुंची तो उस लड़के की भांजी स्कूटी लेकर गिरी पड़ी थी और वह इयरफोन पर गाने सुन रहा था। अपनी भांजी को उठाने की बजाय वह मेरे पास आया और बोला- मैडम..मैडम..आप व्हाट्सएप पर हैं क्या?
-नहीं
नहीं..मैं इस बात को मान ही नहीं सकता।
-क्यों नहीं मान सकते..व्हाट्सएप पर होना जरूरी होता है
नहीं जरूरी तो नहीं होता है लेकिन.......
मैंने उसे गौर से देखा..दो दिन तक वह ट्राउजर और टीशर्ट पहनकर आया था...लेकिन आज जींस और शर्ट में था...परफ्यूम इतना हैवी था कि उसके पीछे चलने वाले लोग भी चार घंटे तक महकते रहें। चेहरे पर पावडर लगा था..जैसे घर से निकलते वक्त किसी ने जबरदस्ती लगा दिया हो। वह मेरा कॉनटैक्ट नंबर लेने की जिद कर रहा था।
-तो आप यह चाहते हैं कि मैं अपने लिए कोई और ग्राउंड तलाश करूं
अरे नहीं मैडम..आप बेफिक्र होकर आओ..मैं अब कुछ नहीं कहूंगा।
अगले दिन से वह लड़का बगल वाले ग्राउंड में अपनी भांजी को लेकर जाने लगा।