-कहां हो बे..कब से फोन कर
रहा हूं..फोन नहीं उठा रहा है तू।
बॉथरूम में था भाई...हां
बोल कोई जरूरी काम था क्या।
-रूचि भाग जाएगी...पक्का वो
कहीं भाग जाएगी।
मतलब?...क्या हुआ सब ठीक तो है?...क्या अंट-संट बके जा रहा
है।
-सच कह रहा हूं...रूचि भाग
जाएगी कहीं..घर छोड़ कर चली जाएगी वो...मां बिना बताए चाचा के साथ यहां दिल्ली आ
गई हैं। स्टेशन पहुंचकर उन्होंने मुझे फोन किया...ऑफिस में काम कर रहा था
मैं...दिमाग फिर गया मेरा सुनके कि वह बिना बताए दिल्ली आ गई हैं...अब समझ में
नहीं आ रहा है कि मां को लेकर कहां जाऊं।
कहां लेकर जाऊंगा...क्या
मतलब?...फ्लैट में लेकर जा अपने और क्या...अबे मां हैं वो तेरी...इतने बड़े शहर में
अपने घर नहीं तो और कहां रखेगा उनको।
-वही सोच-सोचकर सिर फटने
लगा था तो दारू पी ली यार मैंने… अभी मां स्टेशन पर बैठी है और मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा
कि क्या कहूं उन्हें....स्टेशन से उन्हें कहां ले जाऊं।
अबे...बेवकूफी मत कर....देख
कहीं इधर-उधर मत छोड़ देना उनको...सीधे घर लेकर जाना।
-हां यार...मां को रूचि से
कोई दिक्कत नहीं हैं...रुचि ही मां को देखकर भन्ना जाती है...अगर मैं उसे फोन करके
बता दूं कि मां को लेकर घर आ रहा हूं तो मेरे पहुंचने से पहले ही वह कहीं भाग
जाएगी...समझ में नहीं आ रहा है क्या करूं....वो मेरी बात नहीं सुनेगी...और मां को
मैं कहीं और नहीं ले जा सकता।
अबे...पहले ये दारू का नशा
खत्म कर...स्टेशन जाकर मां को रिसीव कर फिर ठंडे दिमाग से सोच क्या करना ठीक है
क्या नहीं....और हां...मां को कहीं इधर-ऊधर मत छोड़ना भाई प्लीज।