शनिवार, 22 अगस्त 2015

चलो स्कूल-स्कूल खेलें

हम अपने बचपन में बड़े मूढ़ टाइप के थे...घरवाले कुछ कहते तो जल्दी समझ में ही नहीं आता कि कौन सा काम करने के लिए कहा जा रहा है।

लेकिन आजकल के छोटे बच्चों की उम्र में एक बड़ी उम्र छिपी होती है...सीखने की शक्ति इतनी तीव्र होती है कि बस आप आंखें फाड़ कर देख ही सकते हैं...

मोबाइल हो या कंप्यूटर का कीबोर्ड...बच्चों की अंगुलियां ऐसे चलती हैं कि बड़े देखकर अपने ऊपर ही तंज कसने लगे।

मेरे मकान मालकिन की चार साल की बेटी इस बरस से स्कूल जाने लगी है। जो कुछ स्कूल में देखती-सीखती है घर आकर अपने दो साल के भाई को खेल-खेल में सब बताती और सीखाती है।

कल दोपहर नीम के पेड़ के नीचे दोनों खेल रहे थे। लड़की अपने भाई से बोली चलो अब स्कूल-स्कूल खेलते हैं।
उसका भाई घर में से कुछ अखबार और कापियां उठा लाया।
खेल शुरू हुआ...दोनों ने कापी पर हाथ पैर मुंह नाक आंख वाला कोई आदमी या जानवर बनाया फिर उसमें रंग भरने लगे।

लड़की उठी और अपना दांया हाथ आगे कर अपने भाई से बोली, 'मे आइ गो टू टॉयलेट मैम'?

उसका दो साल का भाई बोला- जाओ...अरे जाओ...जल्दी जाओ...
चड्ढी में ही टॉयलेट कर दोगी तो मम्मी आएगी और तुम्हें डंडे से मारेगी..खूब मारेगी।

बहन बोली- अरे पगलू हम लोग तो स्कूल-स्कूल खेल रहे हैं... स्कूल में जब टॉयलेट लगती है तो मैम से ऐसे ही पूछना पड़ता है।

 

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