मंगलवार, 3 नवंबर 2015

जर्मनी के सपने और सिर दर्द



करीब दो साल पहले जर्मन रेडियो में काम करने वाले एक आदमी से मिलने का मौका मिला। बातचीत के दौरान उन्होंने जर्मन रेडियो, जर्मनी की संस्कृति, भाषा, लोग, रहन-सहन एवं पहनावे के बारे में बताया। इसके अलावा उन्होंने जर्मनी में अपने 25-30 साल के अनुभव भी बांटे।

उस दिन के बाद मुझ पर जर्मनी जाने और जर्मन रेडियो में काम करने का भूत कुछ इस कदर सवार हुआ कि वह आज भी बरकरार है।
मैं हर वक्त जर्मनी जाने के सपने देखने लगी। डॉयचे वेले (जर्मन रेडियो और ऑनलाइन वेबसाइट) जिसे मैं उन सज्जन से मिलने से पहले भी सुना एवं पढ़ा करती थी। लेकिन उनसे मिलने के बाद मुझे जर्मन भाषा सीखने का भी चस्का लग गया। 

जब मैं कॉलेज से पढ़कर हॉस्टल वापस लौटती उसके बाद इंटरनेट पर गूगल की मदद से जर्मन भाषा कैसे सीखें खोजा करती। कई दिनों की लगातार कोशिश के बाद विकिपीडिया समेत कई अन्य जगहों से अच्छा खासा जर्मन भाषा का व्याकरण इकट्ठा हो गया। इसी दौरान एक दिन बीबीसी की अंग्रेजी वेबसाइट पढ़ते समय यह पता चला कि यहां से अंग्रेजी समेत और भी कई भाषाएं सीखी जा सकती हैं।
बीबीसी से माध्यम से जर्मन सीखना मुझे काफी आसान लगा। मैं रोजाना खाली समय में पेन और कॉपी लेकर बैठ जाती और जर्मन भाषा की एक नोट्स तैयार करने लगी। उस दौरान मैं कई दिनों की काफी मेहनत से कम से कम जर्मन की एबीसीडी तो सीख ही गई थी। उसके बाद अपने कॉलेज की परीक्षाएं फिर छुट्टियों में घर आने की वजह से यह रूटीन गड़बड़ सी हो गई मैं कई हफ्तों तक जर्मन सीखने का अभ्यास नहीं कर पायी।

छुट्टियां खत्म होने के बाद जब हॉस्टल वापस लौटी तो भी मैं उस लगन से जर्मन सीखने का अभ्यास नहीं कर पाई जैसा कि मैंनें शुरूआत में कोशिश की थी। लेकिन जब भी मौका मिलता मैं अपने बनाए नोट्स (जर्मन भाषा की) उठाकर कभी खाना खाते वक्त तो कभी लेटकर पढ़ा करती थी। इस तरह छोटे-छोटे अंग्रेजी शब्दों के जर्मन अर्थ मुझे पता होते थे।

इसी दौरान फेसबुक पर एक-दो विदेशी मित्र बने, जिन्हें जर्मन भाषा का अच्छा ज्ञान था। मैं उनकी बातों का जवाब जो मुझे जर्मन भाषा में पता होता, दिया करती तो वे काफी सराहना करते मेरी।

कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने के बाद शहर बदला, उसके साथ ही तमाम समस्याओं से दो-चार होना पड़ा और समय के अभाव में जर्मन सीखने का चस्का कम होता गया। इसके साथ ही जितना कुछ सीखी थी वह भी सब धीरे-धीरे भूलता गया। लेकिन जर्मनी जाने का सपना उसी बुलंदी पर कायम रहा।

कल रात मैं अपने फोन पर पंजाबी टू हिन्दी ट्रांसलेटर डाउनलोड कर रही थी कि गलती से अंग्रेजी टू जर्मन ट्रांसलेटर डाउनलोड हो गया। वह तो मुझे तब पता चला जब एप डाउनलोड हो गया और अनुवाद करने के लिए मैंने उस एप को खोला।
खैर, जब गलती से जर्मन ट्रांसलेटर डाउनलोड हो ही गया था तो मैंने सोचा क्यों न एक बार फिर से जर्मन भाषा सीखने की कोशिश की जाए। उस समय रात के एक बज रहे थे, जब यह विचार मेरे दिमाग में चल रहा था। मैंने ट्रांसलेटर की मदद से अंग्रेजी के कुछ छोटे-छोटे शब्दों के अर्थ जर्मन में ढूंढे, उन्हें पढ़ा, याद किया और कुछ देर बाद फोन बंद करके सो गई।

सोई क्या थी सोने के बाद तो सपनों के माध्यम से सीधे जर्मनी पहुंच गई, वो भी डॉयचे वेले (जर्मन रेडियो)। वहां मैंने हिन्दी में एक कार्यक्रम पेश किया..अगले दिन पता चला कि वह कार्यक्रम दर्शकों को खूब पसंद आया। इसके बाद वहां काम करने वाले लोगों से जर्मन में खूब बातचीत की, रेडियो में काम करने के तौर-तरीके सीखी। पूरी जर्मनी घूमी..दो चार दोस्त बनाई, जो मुझे जर्मन में बात करते हुए सुनकर काफी प्रभावित हुए। जर्मन रेस्तरां में खाना खायी, वहां के वेटर से जर्मनी में बात की, उसे डंके (जर्मन में धन्यवाद) बोली और इतना बात की कि मुझे अपने पर पूरा आत्मविश्वास हो गया कि मैं जर्मन बिना अटके एकदम अच्छे से बोल सकती हूं। यह सब नींद में हो रहा था..लेकिन गहरी नींद में नहीं थी मैं। थोड़ी देर बाद रात के करीब तीन बजे मेरी नींद खुल गई। इसके बाद मैंने सोने की बहुत कोशिश की लेकिन गहरी नींद में नहीं सो पाई...जर्मन के वे सारे शब्द जो मैंने सीखे थे वो किसी ब्लैकबोर्ड पर लिखे हुए और उछल कूद मचाते हुए मेरे दिमाग में घूमते रहे। यहां तक की सपने में ही मैंने किसी हिन्दी अखबार के लिए जर्मन भाषा की एक खबर का ट्रांसलेशन भी कर दिया। अब तो हद हो गई थी। मैं पूरी तरह जग गई। सुबह के छह बज गए थे। मैं बिस्तर से उठ गई थी। अच्छी तरह नींद न आने की वजह से मेरा सिर जोरों से दर्द कर रहा था। मैं सोच रही थी कि आखिर मैं पूरी रात सोई क्यों नहीं। लेकिन याद आ रहा था तो सिर्फ एक शब्द डंके (जर्मन भाषा में धन्यवाद)।

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