अपनी तो भाषा ऐसी ही है दीदी …तू जब हम लोग के साथ रहेगी तो तू भी हमारी तरह ही बोलेगी
….जब मैंनें उन तीन छोटी लड़कियों से पूछा कि तुम लोग जो बोलती हो क्या तुम्हारे मां-बाप
का सीखाया होता है…तब उसनें ऐसा जवाब दिया….चेहरे पर चंचलता उधम-कूद मचाते हुए हर आनें
जाने वाले से बस एक ही शब्द बोलती….
शनिवार, 19 जनवरी 2013
तू तो अमीर है दीदी....
गुरुवार, 17 जनवरी 2013
बन कर क्यों नहीं आयी...
काले रंग के बुर्के में ढ़की थी वह..किसी बुत्त की तरह बैठी
थी लेकिन उसकी नजरें हर तरफ दौड़ रही थीं..वह खुद को ऐसे लिबाज में लिपटा हुआ महसूस
कर रही थी जो रोके हुआ था…ताजे हवा पानी को…उसकी आंखे किसी झरोखे की आड़ से ही चीजों
को देख रही थी…शायद वह उतार फेंकना चाहती थी उस नकाब को जिससे अभी तक हम ये नहीं जान
पाए थे कि बुर्के के अंदर का चेहरा कौन और कैसा है…..जब वह हम कुछ लोगों को गपियाते
देखी तो उससे रहा नहीं गया..उसने आस-पास देखा औऱ नकाब उतार कर एक तरफ रख दी….
माशाअल्लाह..क्या
लग रही थी वह..जैसे वह घर से सालों बाद बाहर निकली हो…बिल्कुल पीला चेहरा…. काले बुर्के
नें उसके पीले चेहरे की खुबसूरती को और भी बढा दिया था… अब समझ में आया था हमारी उसके
नकाब का राज…
नकाब उतारते ही वह बोली देखिए आप लोगों में से कोई मुझे आंटी ना बोलिएगा…मेरी
शादी जरुर हो गई है लेकिन मैं आप लोगों कि उमर की या उससे भी छोटी हूं…..यह बातें उसनें
बिना किसी के कुछ कहे और बेबात बोली…. उसकी ऐसी बातें सुनकर उससे बात करने का मन हो
रहा था….औऱ कुछ देर में बातें शुरु भी हो गई……..वह
बिल्कुल देश-दुनिया के बातों से बेखबर थी..उसनें अपनें अरमानों का गला घोंटा था… उसे
तो यही बताया गया था जब पति कि तरक्की होती है…जब अपना बच्चा स्वस्थ रहे औऱ ससुराल
वाले खुश रहें इसी में औरत की सबसे बड़ी खुशी होती है..यही औरत का संसार है…
इस बार जब मायके जाकर अपनी
अम्मी के आगे वह रो रही थी तब अम्मी नें ऐसा कहा था ..शायद इसलिए उसे दूसरे किसी संसार
से मतलब नहीं था….लेकिन बार-बार उसके मन में यही टीस उठती कि वह बारहवीं के बाद पढ़
नहीं पायी..अम्मी ने कहा था अपनें असली घर
जाना तो जो मन में आए वो करना…अट्टारह साल की उम्र में उसे उसके असली घर भेज दिया गया…पति
के लाड़-दुलार से जब फुर्सत निकाल कर उसनें पढ़ कर कुछ करनें अपनें पैरों पर खड़े होनें
की बात कही तो पति ने दो टूक जवाब देते हुए यह कह दिया कि अपनें घर से ही अपनें पैरों
पर खड़ा होकर क्यों नहीं आयी…..वह रोनें लगी यह याद कर कि अम्मी नें यह कहकर भेजा था
कि असली घर में ख्वाहिसें पूरी होती है…लेकिन यहां तो……….वह अब तक यह नहीं समझ पायी
थी कि कौन सा घर उसका है..जिसे छोड़कर आयी है वो…या जिसमें रह रही है वह……
बीस साल की
उम्र पूरी करते बच्ची की तरह दिखने वाली एक लड़की की गोद में खुद एक बच्ची आ गई…जो
संपूर्ण औरत बन गई थी…लेकिन अभी भी वह लड़ रही थी अपनें ससुराल वालों से कि उसे पढ़ाया
जाये…पहले तो वह इसलिए पढ़ना चाहती थी ताकि
कुछ कर सके…लेकिन अब वह बेटी के लिए पढ़ना चाहती है ताकि कल को उसकी बेटी को उसका पति
ये जवाब ना दे कि अपनें घर से ही अपनें पैरों पर खड़ा होकर क्यों नहीं आयी…
(एक लड़की नाजिया
की दास्तां…जैसा उसने बताया)
रविवार, 6 जनवरी 2013
मानसिकता की जय हो......
दिल्ली में एक लड़की के साथ बलात्कार हुआ…पुरा देश विरोध प्रदर्शन में सड़कों
पर निकला…लोगों नें किस्म किस्म के अपनें विचार परोसे…ये होना चाहिए..ये नहीं होना
चाहिए…सरकार जिम्मेदार है… बलात्कार की सजा फांसी होनी चाहिए….लोगों को महिलाओं के
प्रति अपनी मानसिकता बदलनी होगी…ब्ला ब्ला ब्ला….
सबनें ये सोचा मानसिकता बदलने को लेकर चिल्लाहट मचाएंगे तो
मानसिकता बदल जाएगी…एक ही दिन में पूरे देश की ....महिलाओं के प्रति गंदी मानसिकता सिर्फ हम और आप बदलकर ये नही गा
सकते कि हम चले तो हिन्दुस्तान चले…मानसिकता तो उनकी भी बदलनी चाहिए जो आपके घर में
मजदूर है..मानसिकता उनकी भी बदलनी चाहिए जो हमारे भाई और बाप हैं..और हमारे घर में बर्तन
माजने वाली नौकरानी जिनसे असुरक्षा महसूस करती है….
मानसिकता सिर्फ मध्यमवर्गीय परिवारों का अपनी लड़कियों को
शिक्षा दिलाने से नहीं बदलेगी…हमें हर वर्ग और तबके के बारे में सोचना होगा…जिस तरह
से हम सरकार से ये मांग कर रहे हैं कि बलात्कार की सजा मौत होनी चाहिए….उसी तरह से
हमें अपनें उन भाईयों बहनों और मांओ के लिए भी एक मांग करनी पड़ेगी जो गरीब हैं जिनकी जिंदगी का मालिक कोई और है...जिनका जीवन बिना पढ़े लिखे ही गुजर जाता है........... कि इन लोगों को
भी शिक्षित करनें में आगे बढ़ानें मे सरकार कोई कदम उठाए….आज भी हमारे घर में बर्तन
मांजने खाना पकाने वाली महिलाओं की बेटियां भी बड़ी होकर वही काम करेंगी…हमारे दिये
हुए पुराने फटे कपड़ों से ही अपना तन ढ़कती है….
शहरों गांवों में चलनें वाले बस आटो पर गरीबों के बच्चे कंडक्टरी
करते हैं…इस दौरान वे दारु पीना सीखते हैं फूहड़ और भद्दे भोजपुरी गानें सुनकर जवान
होते हैं…अपनें मालिकों की अश्लील बातें सुनते हैं…अश्लील काम को देखते है…फिर इनको
इतना तजुर्बा हासिल हो जाता है कि…बलात्कार जैसी घटना को अंजाम देना इनके बाएं हाथ
का खेल हो जाता है….और मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चे कैसे उत्तेजित होते हैं ये हर
वो मध्यमवर्गीय परिवार जानता है जो सिर्फ मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की का बलात्कार
होनें पर मामले को हवा देता हैं…वरना रोज ही दलितों की बेटियां किसी ना किसी मालिक
के हवस का शिकार बनती हैं…..पहले के समय में किसी का बेटा पुलिस दरोगा बन जाता तो बेटी
का बाप अपनी बेटी के लिए वर के रुप में उसे लालटेन लेकर खोजता था……अब पुलिस दरोगा जिस तरह से बाप
की बेटी को देख रहे हैं…पूरा देश जानता हैं
दिल्ली में लड़की के साथ
बलात्कार करनें वाले बलात्कारी झोपड़-पट्टियों में रहनें वाले थे…अनपढ़ और देश दुनिया
के समाचारों से कोसों दूर रहनें वाले….बलात्कार के दूसरे दिन दिल्ली में ही फिर किसी
महिला के साथ ऐसे ही कुछ लोगों ने बलात्कार किया…हम कैसे इनकी मानसिकता बदलेंगे….जो
अपनी दुनिया के ख्वाब केवल टीवी देखकर पूरा करते हैं….सुनी-सुनाई खबरों से दुनिया की
तस्वीर गढ़ते है और सड़क पर साक्षात लड़की देखकर उसके कपड़े उतारनें की सोचते हैं……देखा
होगा आपनें भी जब एक नाबालिक लड़का सड़क पर रिक्शा खींचता है तो कैसे लड़कियों को देखता
है….एक लड़का जब होटल में खाना परोसता है तो कैसे बड़े लोगों के बीच उसकी जवानी से
पहले ही उसे बड़ा बना दिया जाता है…और कल को यही लड़का एक घटना को अंजाम देता है…और हम जो अपनें को मध्यमवर्गीय मानते हैं..जिसे ये नहीं दिखाई दिया कि सोनी सोरी के साथ क्या हुआ…हरियाणा में कितनी दलित बेटियां अपनी अस्मत लुटाई…..नौकरानी के साथ होने वाले बलात्कार पर सिर्फ यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि हम समझ सकते हैं…..जाति धर्म का भेदभाव रखते हैं....सच में कभी नहीं ये समझ पाएंगे कि बेटी की इज्जत इज्जत होती है चाहे वो हिन्दू हो मुस्लिम हो दलित हो या कोई और हो...और हर एक बलात्कार के बाद खुद चिल्लाएंगे मानसिकता बदलो....बेटी बचाओ..ब्ला ब्ला...
बलात्कार की बतकही...
बनारस की एक सहेली के घर से बुलावा था। मैं 31 दिसम्बर को
बनारस जाने के लिए प्रयाग स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रही थी…ट्रेन लेट थी…मैं वहीं
प्लेटफार्म पर बैठ गई..तभी कुछ लड़के दौड़ते-हांफते हुए आये…और स्टेशन पर खड़े होकर
एक दूसरे को डांटने लगे…
सुनने में बात पूरी
और अच्छे से समझ में आ रही थी…कि वे लोग किसी लड़की को छेड़े थे और पुलिस उन्हें दौड़ायी
थी….उनमें से एक लड़का जोर से अपनें दोस्तों
पर चिल्ला रहा था…और कह रहा था.."साल्ले मना किया था तुझे न….अभी दिल्ली वाली लड़की
के साथ बलात्कार हुआ है और सुना है मर भी गई है वो…कुछ दिन में सब शान्त हो जावेगा
साल्ले तब तक के लिेए शरीफ बन जा बेटा आयी बात समझ में….और ये पुलिस भोंसड़ी के ना
अप्पन का पहले कुछ उखाड़ी है ना ही आज उखाड़ती…अगर लड़की वाला बलात्कार का मामला
पूरे देशवा में ना फैला होता..ये पुलिस वाले साले खुद रोज लड़कियां छेड़ते हैं और भोंसड़ी
के आज हमीं को दौड़ाये हैं"….
घंटे भर इंतजार के बाद ट्रेन आयी...मैं ट्रेन में बैठ गई…ट्रेन में
अधिकतर यात्रियों के बीच यही चर्चो चल रही
थी….दिल्ली में लड़की के साथ बलात्कार हुआ..फिर वह मर गई….हर तरफ हर जगह बलात्कार वाली बातें सुनकर ऐसा लग रहा था..कि
लोग कितने चिंतित हैं…मानों इस बलात्कार के बाद लोग क्षण भर में जागरुक हो गए हों…और ऐसी घटनाएं आगे अब कभी ना होंगी...
भदोही स्टेशन पर ट्रेन रुकी काफी...यात्री उतर चुके थे…मैं उस बोगी में अकेली लड़की
बची थी…बाकी की कुछ बुजुर्ग महिलाएं थी…..बाकी
के 6-7 अंकल-दादा टाईप के लोग बैठे थे…उनके बीच एक साधु बैठा था..जो जयपुर का रहनें
वाला था…..ट्रेन थोड़ी खाली हुई तो इन लोगों की बतकही थोड़ी जोर की शुरु हुई….
उनमें से एक आदमी नें कहा…दिल्ली बस में लड़की के
साथ जो बलात्कार हुआ उसमें लड़की की गलती थी…ब्वायफ्रेंड को लेकर आधी रात को घूम रही
थी…और इससे भी ज्यादा गलती इनके मां-बाप की है…चुपचाप अपनें पास रख कर पढ़ाना चाहिए
था तो भेज दिए बाहर पढ़नें को….अब भुगतें…लड़की जान से हाथ धोकर गई…..दूसरे महाशय बोले
हमको तो लग रहा है..सबसे ज्यादा गलती उस बस के ड्राइवर की है…जब लड़की के साथ बलात्कार
हो रहा था तो उसे बस को किसी थाने पर ले जाकर खड़ा कर देना चाहिए था….फिर कोई टप से बीच में बोला…अरे
लड़किया के 100 नंबर पर फोन करे के चाहत रहल
ह…तुरंत पुलिस आवत….लड़की खुद् सौंप दी अपनें को…….कपड़ा भी तो ये लोग उत्तेजक ही
पहनती हैं…जब एक बार गाना निकला था…चोली के
पीछे क्या है…तो उस समय बनारस में इस गानें को लेकर कितना बवाल हुआ था…लेकिन अब की
लड़कियां वही कपड़े खुद पहन रहीं हैं…..अभी उनके बीच बैठे साधु का बोलना बाकी रह गया
था….बोले..रावण भी सीता के चुरा के ले गयल रहल…स्त्री के साथ छेड़छाड़ की परंपरा प्राचीन
काल से चली आ रही है..ये बिल्कुल बंद नहीं होगी…उस बाबा जी की बातें सुनने में ऐसी
लग रहीं थी…मानो बाबा कोई बात नहीं कह रहें हैं..बल्कि कोई प्रतिज्ञा कर रहें हैं कि
छेड़खानी कभी बन्द नहीं करेंगे…
मन उकता गया था...उनकी ऐसी बातें सुनकर.....ट्रेन बनारस स्टेशन पर आ गई थी....और मैं उतर गई...
शनिवार, 29 दिसंबर 2012
रेस्ट इन पीस..
..और अन्त में दम तोड़ दी दामिनी…..पिछले 12 दिनों से अपनी सांसों से जंग लड़ रही बेटी नें आज अंतिम सांस ली….इन दिनों में उन बलात्कारियों
के साथ कुछ भी नहीं किया गया…जिससे दामिनी की आत्मा को शांति मिले …. विरोध प्रदर्शन
हुआ…लोगों ने उसके जीवन की दुआएं मांगी..लेकिन किसी की दुआ काम ना आयी और दम तोड़ दी
दामिनी..
जब अचानक खबर मिली…दामिनी के बेहतर इलाज के लिए उसे सिंगापुर ले जाया गया है…तभी दिमाग में तमाम तरह के प्रश्न तैर
रहे थे…कि उसे वेंटिलेटर पर रखा गया है…हालत बेहद नाजुक है फिर हवाई जहाज द्वारा सिंगापुर
ले जाना??…..एक डर सा उठा था मन में ….ऐसा लग रहा था भारत में वो किसी के सिर का दर्द
बनी हो और इससे निजात पाने के लिए उसे यहां से खिसकाया जा रहा है…जैसे विरोध प्रदर्शन
से सरकार उकता गयी हो और उसे यहां से हटाना ही उचित समझा…..रात में खबर आयी उसे सिंगापुर
ले जाने का कारण मेडिकल नहीं राजनैतिक था….आखिर सिंगापुर में दुसरे दिन उसने दम तोड़
ही दिया….दिल्ली के डाक्टरों का दावा था कि पहले हालत में सुधार लाना जरुरी है..फिर
महिनों बाद आंत प्रत्यारोपण के बारे में सोचा जाएगा….यही नहीं भारत में लगभग 9 दिन
चले इलाज के दौरान एकबार भी इस बात की खबर नहीं मिली कि उसका मष्तिक भी घायल है लेकिन सिंगापुर पहुंचते ही
ये खबर आयी की उसका मष्तिक भी इंजर्ड है….क्या 9 दिनों के इलाज के दौरान भारतीय डाक्टरों
को ये चोट दिखी नहीं या सिंगापुर पहुंचते ही मष्तिक इंजर्ड हो गया…अगर हुआ तो कैसे
हुआ??….इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा??…एकाएक उसे सिंगापुर भेजनें वाली सरकार या डाक्टर?….क्या
आपको नहीं लगता कि अंतिम तीन दिंनों से उसकी जिंदगी राजनैतिक दांव पेंच में उलझी थी…भारत
में आंत प्रत्यारोपण के जनक माने जाने वाले डाक्टर समीरन नें कहा…कि सिंगापुर ले जानें
की कोई जरुरत नहीं थी….पहले उसकी हालत में सुधार लाना जरूरी था ना कि आंत प्रत्यारोपण……
इन बारह दिनों में भारत में क्या नहीं हुआ….जनता विरोध प्रदर्शन
करने सड़कों पर उतरी …महिलाएं अपने हक की लड़ाई के लिए सड़कों पर उतरी …..
दिल्ली की मुख्यमंत्री की हिम्मत नहीं हुई अस्पताल जाकर उस
लड़की को देखनें की….ये नौटंकी नहीं था…..उन्होंने कहा मैं समझ सकती हूं मेरी भी बहू-बेटी
है…जब आप समझ सकती हैं तो आपने अब तक कुछ किया क्यों नहीं …..प्रधानमंत्री राष्ट्रपति
जैसे तमाम नेता इस घटना के बाद मिडिया के सामने अपनी बेटियों की संख्या गिना रहे हैं…कि
हमारी भी इतनी इतनी बेटियां हैं और हम समझ सकते हैं……बेटियों का हवाला देकर इन्हें
गंदी सहानुभूति जताते हुए शर्म नहीं आती….अरे क्या इनकी बेटियां नहीं रहेंगी तो इन्हें
बलात्कार, बलात्कार पीड़ीता का दर्द समझ में नहीं आएगा…घिन आती है देश को चलाने वाली
ऐसी सरकार पर….
इन नेताओं में से किसी एक की भी लड़की के साथ बलात्कार हुआ होता तो आप
अनुमान लगा सकते हैं कि फिर सिस्टम किस तरह काम करता…..रातों रात बलात्कारी को सूली
पर चढ़ा दिया जाता….पहले ही दिन विदेशी इलाज पाकर इनकी लड़की अगले दिन टनाटन हो जाती….
लेकिन ये राजनेता हैं..इनकी लड़कियों के लिए हम इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते……हम
इनकी सुविधाओं को बस अंगुलियों पर गिन सकते हैं…..प्रदर्शन कर रही महिलाओं पर प्रणव
दा के सुपुत्र ने छींटाकसी की….
बलात्कार पीड़िता की मौत के बाद मेनका गांधी नें कहा कि ये
सरकार की चाल लगती है…हो सकता है लड़की की
मौत भारत में ही हो गयी हो…और उसके बाद उसके बेहतर इलाज का हवाला देकर
उसे सिंगापुर ले जाया गया हो….हमें मेनका गांधी के बातों में कोई संशय नहीं दिखता और सरकार पर यह इल्जाम लगाते हुए जरा भी डर
नहीं लगता कि ये मौत सरकारी दांवपेच में हुई है……
हम किस-किस पर इल्जाम लगाते फिरें
की मौत का कारण ये नहीं ये है…हम तो केवल इस बात की फरियाद कर सकते हैं कि बलात्कारियों
को एक ऐसी सजा दी जाय..जिससे इस तरह के जघन्य अपराध पर अंकुश लगे…हम कब तक एक के बाद
एक बेटियों के जिस्म के साथ खिलवाड़ होनें दे…और अन्त में उसे दम तोड़ते देखेंगे
..कब तक औरत होनें पर आंसू बहाएं और कैंडल लेकर सड़क पर निकले…आज दामिनी गयी है कल
को कोई दूसरी बेटी जाएगी…सरकार उचित कारवाई का ढ़ाढस बंधाती रहेगी…बलात्कार पीड़ीता
के प्रति अपनी संवेदना दिखाती रहेगी…हम सड़क पर विरोध प्रदर्शन में निकलेंगे..राजनेता
हम पर लाठियां बरसाएंगे….महिलाओं पर छींटाकसी करेंगे….और उनके भरोसे कल हमारी एक और
बेटी हलाल की जाएगी
शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012
एक रूपए दे दो भईया...
मैनें बड़े भाई को फोन लगाया..और कहीं घूमने चलनें को
बोला…पहले तो उन्होंने मुझे डांटा और मना कर दिया…लेकिन काफी मनौती और मेरी बुखार वाली दास्तां सुनकर उन्होंने
चलने के लिए हामी भर दी…
इलाहाबाद में रहते हुए मुझे एक साल हो गए थे लेकिन मै अभी तक
नैनी ब्रिज नहीं देखी थी------इसलिए हम नैनी गए…नैनी का कैंटोंमेंट एरिया जवानों की
चौकड़ी है…साफ सुथरी चौड़ी और ऊंची सड़कें.. दोनों तरफ घने पेड़ -पौधे…बगल में बहती
गंगा नदी…उसको सलाम करता नैनी ब्रिज ..हनुमान जी का छोटा सा मंदिर और बड़ी सी भीड़…बंदर
लंगूर..भांति-भांति के पक्षी…अद्भुत नजारा था…ऐसा लग रहा था कि मैं घर मे टंगी कोई
सिनरी देख रही हू…जिसमें ये सारे नजारे मुझे एक साथ दिख रहे हैं….
नौजवान लड़के-लड़कियां
एक दूसरे का हाथ पकड़े टहल रहे थे…..कुछ लोगों की भीड़ मंदिरों मे थी…घुमते-घूमते हमलोगों
ने चिप्स का एक पैकेट खरीदा…और वहीं के एक पार्क में बैठकर खाने लगे…तभी 3-4 लड़के
हमारे बगल से गुजरे..उनमें से एक ने मेरे पर छींटाकसी की…."मैडम मियां जी के साथ मजे
ले रही हैं..और हम तन्हा घूम रहे हैं"….
कसम से इतना सुनते ही दिमाग भन्ना गया….लेकिन
भईया ने मुझे कुछ बोलने नहीं दिया….वे जैसे ही उठे उन लड़कों ने तेज की दौड़ लगाई और
भाग गए….मैने आस-पास देखा कि कई लड़कियां लड़कों के कंधे पर सिर टेके बैठी थी…तब मुझे
लड़कों के छींटाकसी की वजह समझ मे आयी….
शाम हो चली थी और हम हनुमान मंदिर से गुजरते
हुए आगे बढ़ रहे थे…तभी दो छोटी-छोटी लड़कियों ने हमे घेर लिया….हाथ मे कटोरी पकड़े
और सिर खुजलाते हुए रटी जा रही थी…दीदी एक रूपया दे दो…भईया दे दो…बिस्कुट ही दे दो….हमारे
पास उस वक्त बिस्कुट तो था नहीं लेकिन उनको ना जानें कहां दिखा…
.मैनें पर्स खोला लेकिन
मेरे पास फुटकर पैसे नहीं थे…भईया के पास भी खुल्ले नहीं थे….इन लड़कियों ने हमें जकड़
लिया…और मेरे पैर पर मत्था टेककर रिरियाने लगी….."एक रुपया दे दो ….तोहर जोड़ी बनी रही…घर
में सुन्दर ललना आयी…..ललना झुनझुना खेली….खूब पढ़ी और बड़ा होई"…ब्ला ब्ला ब्ला…. उस वक्त भईया के सामने उनकी ऐसी बातें सुनकर मैं
बहुत जोर से हंसी…क्यों कि उन लड़कों की छींटाकसी से हमारा पाला पड़ चुका था…और ये
तो बच्चियां हैं जो सीखाए और रटे-रटाये शब्दों के बाण से हमें छेद रही हैं…एक रुपए
की खातिर…
अपनी बातों पर मुझे हंसते हुए देखकर
उनमें से एक ने कहा…जाने दो दीदी तुम्हारे पास फुटकर पैसे नहीं हैं तो…लेकिन हमारी
एक फोटो ले लो….अम्मा जाती हैं…एक बड्डे से साहब के घर बर्तन माजने…उन्होंने अपनी लड़की
का फ्राक मेरे लिए दिया है..आज वही पहिने हूं….तो हमार फोटो ले लो…..
उनकी बातें सुनकर
ना जाने मुझे किस तरह का दुख हो रहा था…उसे कोई शब्द देकर मैं नहीं बयां कर सकती….मैं उन्हें
दस रुपए दी और वहां से चल दी….लेकिन दिमाग मे उन बच्चियों की खनकती हुई आवाज शोर मचा
रही थी….एक रुपया दे दो दीदी…एक रुपया दे दो भैया…
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