टैक्सी कैंट से मुगलसराय के लिए जा रही थी। ड्राइवर ने
यात्रियों को जितना जल्दी चलने का आश्वासन देकर टैक्सी में बिठाया, बाद में उतना
ही झेलाया। एक आदमी काला चादर ओढे हुए आया और टैक्सी में बैठ गया। देखने में उस
टैक्सी ड्राइवर के भाई माफिक लगता था। लेकिन ड्राइवर होश में था जबकि टैक्सी में
बैठा आदमी नशे में। सबसे बड़ी बात यह थी कि वह ड्राइवर का भाई नहीं था..महज एक
यात्री था।
यात्रियों के हो-हल्ला के बाद ड्राइवर ने टैक्सी स्टार्ट
की। लेकिन कैंट से चलकर चौकाघाट पर ही रोक दिया। सभी यात्री परेशान। किसी को
मुगलसराय से ट्रेन पकड़नी थी तो किसी को अपने काम पर जाने की जल्दी थी। सभी लोग
ड्राइवर को जल्दी चलने के लिए बोल रहे थे। लेकिन वो किसी की न सुनता। कुछ दूर चलकर
पान खाने के लिए टैक्सी रोक देता तो कहीं चाय पीने के लिए।
वह आदमी जो काला चादर लपेटे नशे में बैठा था..वह भी काफी
उकता गया और टैक्सी में ही आंदोलन छेड़ दिया। उसने सभी यात्रियों से बारी-बारी से पूछा
कि किसको कहां तक जाना है...इसके बाद ड्राइवर को सुनाते हुए जोर से बोला..फलाने
भाई आप जहां उतरना दस रुपये कम किराया देना..बहन जी आप जहां उतरना आप भी पूरा
किराया मत देना।
उसकी यह बातें सुनकर ड्राइवर के सीने में आग धधकने लगी और
वह गाड़ी की रफ्तार को तेज कर दिया मानो अब सीधे जाकर मुगलसराय के प्लेटफॉर्म नंबर
एक पर ही रोकेगा।
नशे में धुत वह आदमी मन ही मन मुस्कुरा रहा था जैसे उसने
नशे में होने के बाद भी कोई नेकी वाला काम कर दिया हो।
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