मुहल्ले में किसी के घर कोई छोटा बच्चा ना होने की वजह से
3 साल की भतीजी घर-घऱ की चहेती और उसकी तोतली जुबान लोगों के मनोरंजन का साधन है….और
उन औरतों को भी प्यारी है जो मुहल्ले मे कूटनीति करती हैं और घर के किसी एक सदस्य से
झगड़ा हो जाने पर उसके घर के बच्चे बच्चे पर नफरत की ज्वाला उगलती हैं……श्रेया ने ममी(मम्मी)
पापा कहना तो दांत आने के बाद ही सीख लिया लेकिन दद्दी (दादी) ताता (चाचा) रानी(नानी)
कहना अपने तीन साल की उमर पूरी करते हुए सीखा….
तेजी से बड़ी हो रही इस बच्ची को फुर्सत
के क्षणों मे मुहल्ले वाले गिनती, पहाड़ा, और कविताएं सिखाते है….कविताओ का नाम आते
ही जेहन में बस एक ही कविता याद आती है..मछली जल की रानी है…जो शहर के बच्चों के पूर्वजों की विरासत भले ही ना हो…लेकिन
गांव में ये हमारे पूर्वजों के जमाने से चला आ रहा है…कि जब हम चलना सीख जाते थे और
मुंह मे एक- दो दांत उग आते थे..तब कभी स्कूल का मुंह भी ना देखने वाली हमारी दादी
को यह कविता मुहजबानी याद रहती थी…और वे हमें राजा-रानी की कहानियां सुनाते-सुनाते
ऐसी दो-चार कविताएं हमारे जेहन में ऐसे चिपका देती थीं जो बचपन के दिन गुजार देने के
बाद अभी भी हमारे दिमाग में तैरते हैं……लेकिन गांव में ही बचपन के खेल खेल रही भतीजी
को पहले ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार सिखाया गया फिर ए बी सी डी और अब वन टू थ्री….हमें
क ख ग घ पढ़ाकर पाला गया हम एक, दो तीन चार सीखे….फिर कई सालों बाद जाकर इसे अंगरेजी
में वन टू थ्री कहना सीखे………मतलब जो अंगरेजी की बयार बही हैं..इसनें गांव को चपेट में
ले लिया है……
गांव में अब दूरदर्शन और डीडी न्यूज देखने वाले लोग गए तेल लेने…..लोग
सैकड़ो चैनल का मजा नोच रहे हैं……और उसी मिट्टी में सानकर अब बच्चों को गढ़ रहे हैं….
मतलब गांव के बच्चे को गांव में ही शहरी बाबू के रंग में रंगा जा रहा है…बच्चे को चम्मच
से खाना सीखा रहे हैं…..पैर छूना भुलवाकर नमस्ते बोलना सीखा रहे हैं……गांव की एक अलग-थलग
महक चैन-सुकून, सोंधी खुशबू टाइप जिस संस्कृति
पर हमें गूरूर है ना उसे हमारे अपने ही कुचल रहे हैं…धरासाई हो रही है हमारी विरासत…
1 टिप्पणी:
बच्चो का जीवन जिस तरह परिवर्तित हो रहा है, उसकी खूबसूरत अभिव्यक्ति है, सरल शब्दों में उत्तम भाव
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