..और अन्त में दम तोड़ दी दामिनी…..पिछले 12 दिनों से अपनी सांसों से जंग लड़ रही बेटी नें आज अंतिम सांस ली….इन दिनों में उन बलात्कारियों
के साथ कुछ भी नहीं किया गया…जिससे दामिनी की आत्मा को शांति मिले …. विरोध प्रदर्शन
हुआ…लोगों ने उसके जीवन की दुआएं मांगी..लेकिन किसी की दुआ काम ना आयी और दम तोड़ दी
दामिनी..
जब अचानक खबर मिली…दामिनी के बेहतर इलाज के लिए उसे सिंगापुर ले जाया गया है…तभी दिमाग में तमाम तरह के प्रश्न तैर
रहे थे…कि उसे वेंटिलेटर पर रखा गया है…हालत बेहद नाजुक है फिर हवाई जहाज द्वारा सिंगापुर
ले जाना??…..एक डर सा उठा था मन में ….ऐसा लग रहा था भारत में वो किसी के सिर का दर्द
बनी हो और इससे निजात पाने के लिए उसे यहां से खिसकाया जा रहा है…जैसे विरोध प्रदर्शन
से सरकार उकता गयी हो और उसे यहां से हटाना ही उचित समझा…..रात में खबर आयी उसे सिंगापुर
ले जाने का कारण मेडिकल नहीं राजनैतिक था….आखिर सिंगापुर में दुसरे दिन उसने दम तोड़
ही दिया….दिल्ली के डाक्टरों का दावा था कि पहले हालत में सुधार लाना जरुरी है..फिर
महिनों बाद आंत प्रत्यारोपण के बारे में सोचा जाएगा….यही नहीं भारत में लगभग 9 दिन
चले इलाज के दौरान एकबार भी इस बात की खबर नहीं मिली कि उसका मष्तिक भी घायल है लेकिन सिंगापुर पहुंचते ही
ये खबर आयी की उसका मष्तिक भी इंजर्ड है….क्या 9 दिनों के इलाज के दौरान भारतीय डाक्टरों
को ये चोट दिखी नहीं या सिंगापुर पहुंचते ही मष्तिक इंजर्ड हो गया…अगर हुआ तो कैसे
हुआ??….इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा??…एकाएक उसे सिंगापुर भेजनें वाली सरकार या डाक्टर?….क्या
आपको नहीं लगता कि अंतिम तीन दिंनों से उसकी जिंदगी राजनैतिक दांव पेंच में उलझी थी…भारत
में आंत प्रत्यारोपण के जनक माने जाने वाले डाक्टर समीरन नें कहा…कि सिंगापुर ले जानें
की कोई जरुरत नहीं थी….पहले उसकी हालत में सुधार लाना जरूरी था ना कि आंत प्रत्यारोपण……
इन बारह दिनों में भारत में क्या नहीं हुआ….जनता विरोध प्रदर्शन
करने सड़कों पर उतरी …महिलाएं अपने हक की लड़ाई के लिए सड़कों पर उतरी …..
दिल्ली की मुख्यमंत्री की हिम्मत नहीं हुई अस्पताल जाकर उस
लड़की को देखनें की….ये नौटंकी नहीं था…..उन्होंने कहा मैं समझ सकती हूं मेरी भी बहू-बेटी
है…जब आप समझ सकती हैं तो आपने अब तक कुछ किया क्यों नहीं …..प्रधानमंत्री राष्ट्रपति
जैसे तमाम नेता इस घटना के बाद मिडिया के सामने अपनी बेटियों की संख्या गिना रहे हैं…कि
हमारी भी इतनी इतनी बेटियां हैं और हम समझ सकते हैं……बेटियों का हवाला देकर इन्हें
गंदी सहानुभूति जताते हुए शर्म नहीं आती….अरे क्या इनकी बेटियां नहीं रहेंगी तो इन्हें
बलात्कार, बलात्कार पीड़ीता का दर्द समझ में नहीं आएगा…घिन आती है देश को चलाने वाली
ऐसी सरकार पर….
इन नेताओं में से किसी एक की भी लड़की के साथ बलात्कार हुआ होता तो आप
अनुमान लगा सकते हैं कि फिर सिस्टम किस तरह काम करता…..रातों रात बलात्कारी को सूली
पर चढ़ा दिया जाता….पहले ही दिन विदेशी इलाज पाकर इनकी लड़की अगले दिन टनाटन हो जाती….
लेकिन ये राजनेता हैं..इनकी लड़कियों के लिए हम इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते……हम
इनकी सुविधाओं को बस अंगुलियों पर गिन सकते हैं…..प्रदर्शन कर रही महिलाओं पर प्रणव
दा के सुपुत्र ने छींटाकसी की….
बलात्कार पीड़िता की मौत के बाद मेनका गांधी नें कहा कि ये
सरकार की चाल लगती है…हो सकता है लड़की की
मौत भारत में ही हो गयी हो…और उसके बाद उसके बेहतर इलाज का हवाला देकर
उसे सिंगापुर ले जाया गया हो….हमें मेनका गांधी के बातों में कोई संशय नहीं दिखता और सरकार पर यह इल्जाम लगाते हुए जरा भी डर
नहीं लगता कि ये मौत सरकारी दांवपेच में हुई है……
हम किस-किस पर इल्जाम लगाते फिरें
की मौत का कारण ये नहीं ये है…हम तो केवल इस बात की फरियाद कर सकते हैं कि बलात्कारियों
को एक ऐसी सजा दी जाय..जिससे इस तरह के जघन्य अपराध पर अंकुश लगे…हम कब तक एक के बाद
एक बेटियों के जिस्म के साथ खिलवाड़ होनें दे…और अन्त में उसे दम तोड़ते देखेंगे
..कब तक औरत होनें पर आंसू बहाएं और कैंडल लेकर सड़क पर निकले…आज दामिनी गयी है कल
को कोई दूसरी बेटी जाएगी…सरकार उचित कारवाई का ढ़ाढस बंधाती रहेगी…बलात्कार पीड़ीता
के प्रति अपनी संवेदना दिखाती रहेगी…हम सड़क पर विरोध प्रदर्शन में निकलेंगे..राजनेता
हम पर लाठियां बरसाएंगे….महिलाओं पर छींटाकसी करेंगे….और उनके भरोसे कल हमारी एक और
बेटी हलाल की जाएगी
4 टिप्पणियां:
बिलकुल सही कहा है आपने .सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
आपकी बातों से सहमत हूँ मगर मुझे ऐसा लगता है कि कोई भी क्रांति एक दम से नहीं आती, उसे लाने के लिए सामाजिक परिवर्तन ज़रूरी होता है। जिसकी शुरुआत हमे सबसे पहले अपने ही घर-परिवार से करनी होती है। इस मामले में भी हमें ऐसा ही कुछ करना होगा। सबसे पहले अपनी बेटियों को आत्म निर्भर बनाने के साथ-साथ आत्म सुरक्षा कि भी शिक्षा दिलवानी होगी, दूजा उसे सीता नहीं चंडी बनाना होगा। तीसरा अपने बेटों को यह बचपन से ही सीखना होगा कि लड़की भी एक इंसान है तुम्हारी ही तरह कोई खिलौना नहीं। इसी तरह जब धीरे-धीरे परिवार सुधरेंगे तो समाज अपने आप सुधारने लगेगा तो हो सकता है हमारे देश के नेता भी सुधार जायें क्यूंकि आखिर वह जैसे भी हैं,हैं तो हमें से ही एक इस बात से भी तो इंकार नहीं किया जा सकता ना बूंद-बूंद करके ही सागर बनता है उसी तरह बूंद करके ही समाज सुधर सकता है मगर यह तभी संभव है जब पूरी ईमानदारी के साथ लोग इस प्रयास का हिसा बने।
@pallavi ma'am....bilkul sahi kaha aapne
फ़िर से अफ़सोस हुआ इस दुर्घटना पर!
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