शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

यादों के पन्ने...

कल
हां कल ही
तुम्हारी एक-एक याद उठायी
और पलकों से पोछकर
वापस रख दी
लेकिन
इतने से जी नहीं माना
हिम्मत करके पलटा मैनें
यादों के पन्ने को
और सीने से लगाकर देर तक
यूंही तन्हा बैठी रही
आंखो की बहती लोर से
यादों के पन्ने भीग गए


देखो..
भीगने का जिक्र आया तो
बर्बस ही वो बारिश याद आ गई
जिसमें तन और मन हमारा
साथ-साथ भीगा था
एक दूसरे के प्रेम में
और आंखों मे आंखे  डालकर
तुमने वादा किया था
कभी ना साथ छोड़ने का....

1 टिप्पणी:

हरीश सिंह ने कहा…

यह कविता है या जीवन की हकीकत जो भी है खूबसूरत है, चाँद शब्दों में ढेर सारी बाते है,