सोमवार, 24 दिसंबर 2012

यूं आयी याद.....

दिन भर घना कुहरा
कल कुछ ना दिखाई दिया
लेकिन
मेरे मन, मस्तिक पटल पर
चमकती रही तुम उजाले की तरह

रजाई में लेटे
अपलक निहारता रहा
तस्वीर तुम्हारी
और महसूस कर रहा था
हवा की चुभन को
कभी जो हमें छू कर गुजरी थी

सीने से चिपकी है मेरे
आज भी वो गर्माहट
जो तुम्हारे आगोश में आकर मिलती थी

लेकिन
ना जाने कहां से
आंखों से गिरने लगे
पानी के कुछ टुकड़े 
जो सारी यादें बहा ले गए

और दीवार पर लगी
तुम्हारी तस्वीर भी
धुंधली पड़ गई
दिन के घने कुहरे की तरह

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