गुरुवार, 17 जनवरी 2013

बन कर क्यों नहीं आयी...


काले रंग के बुर्के में ढ़की थी वह..किसी बुत्त की तरह बैठी थी लेकिन उसकी नजरें हर तरफ दौड़ रही थीं..वह खुद को ऐसे लिबाज में लिपटा हुआ महसूस कर रही थी जो रोके हुआ था…ताजे हवा पानी को…उसकी आंखे किसी झरोखे की आड़ से ही चीजों को देख रही थी…शायद वह उतार फेंकना चाहती थी उस नकाब को जिससे अभी तक हम ये नहीं जान पाए थे कि बुर्के के अंदर का चेहरा कौन और कैसा है…..जब वह हम कुछ लोगों को गपियाते देखी तो उससे रहा नहीं गया..उसने आस-पास देखा औऱ नकाब उतार कर एक तरफ रख दी….
माशाअल्लाह..क्या लग रही थी वह..जैसे वह घर से सालों बाद बाहर निकली हो…बिल्कुल पीला चेहरा…. काले बुर्के नें उसके पीले चेहरे की खुबसूरती को और भी बढा दिया था… अब समझ में आया था हमारी उसके नकाब का राज…
नकाब उतारते ही वह बोली देखिए आप लोगों में से कोई मुझे आंटी ना बोलिएगा…मेरी शादी जरुर हो गई है लेकिन मैं आप लोगों कि उमर की या उससे भी छोटी हूं…..यह बातें उसनें बिना किसी के कुछ कहे और बेबात बोली…. उसकी ऐसी बातें सुनकर उससे बात करने का मन हो रहा था….औऱ  कुछ देर में बातें शुरु भी हो गई……..वह बिल्कुल देश-दुनिया के बातों से बेखबर थी..उसनें अपनें अरमानों का गला घोंटा था… उसे तो यही बताया गया था जब पति कि तरक्की होती है…जब अपना बच्चा स्वस्थ रहे औऱ ससुराल वाले खुश रहें इसी में औरत की सबसे बड़ी खुशी होती है..यही औरत का संसार है…
इस बार जब मायके जाकर अपनी अम्मी के आगे वह रो रही थी तब अम्मी नें ऐसा कहा था ..शायद इसलिए उसे दूसरे किसी संसार से मतलब नहीं था….लेकिन बार-बार उसके मन में यही टीस उठती कि वह बारहवीं के बाद पढ़ नहीं पायी..अम्मी  ने कहा था अपनें असली घर जाना तो जो मन में आए वो करना…अट्टारह साल की उम्र में उसे उसके असली घर भेज दिया गया…पति के लाड़-दुलार से जब फुर्सत निकाल कर उसनें पढ़ कर कुछ करनें अपनें पैरों पर खड़े होनें की बात कही तो पति ने दो टूक जवाब देते हुए यह कह दिया कि अपनें घर से ही अपनें पैरों पर खड़ा होकर क्यों नहीं आयी…..वह रोनें लगी यह याद कर कि अम्मी नें यह कहकर भेजा था कि असली घर में ख्वाहिसें पूरी होती है…लेकिन यहां तो……….वह अब तक यह नहीं समझ पायी थी कि कौन सा घर उसका है..जिसे छोड़कर आयी है वो…या जिसमें रह रही है वह……
बीस साल की उम्र पूरी करते बच्ची की तरह दिखने वाली एक लड़की की गोद में खुद एक बच्ची आ गई…जो संपूर्ण औरत बन गई थी…लेकिन अभी भी वह लड़ रही थी अपनें ससुराल वालों से कि उसे पढ़ाया जाये…पहले तो वह इसलिए पढ़ना चाहती थी ताकि कुछ कर सके…लेकिन अब वह बेटी के लिए पढ़ना चाहती है ताकि कल को उसकी बेटी को उसका पति ये जवाब ना दे कि अपनें घर से ही अपनें पैरों पर खड़ा होकर क्यों नहीं आयी…

 (एक लड़की नाजिया की दास्तां…जैसा उसने बताया)

5 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
vandana gupta ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (19-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!

rajiv ने कहा…

bahut sunder rachna.

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

अपने आप से वादा कीजिए कि आप सच में अपने लक्ष्य को पाना चाहती हैं तभी परिणाम बेहतर होंगे।
1.अपने लक्ष्य की सूची बनाइए व लिखिए।
2. समझने की कोशिश कीजिए कि आप अपने से क्या और कैसे चाहती हैं।
3. अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए जो कारगर उपाय हैं उनकी भी सूची बनाइए।
4.कुछ सामान्य नकारात्मक चीजों को अपने से दूर कर दीजिए ताकि आपकी राह आसान हो सके जैसे यह कहना कि डाइट बहुत अधिक सहायक नहीं होती वजन नियंत्रण में।
5.प्राथमिकताएं तय कीजिए और उन्हें समय सीमा में बांधिए।
6.अपने से पूछिए कि लक्ष्य पाने के बाद आप अपने को क्या ईनाम देंगी।
7.अपने दिमाग में एक पिक्चर तैयार कीजिए कि जब आप अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेंगी तो कैसा महसूस करेंगी।
8.एक समय में एक ही लक्ष्य रखिए, होता यह है कि एकसाथ कई काम लेकर चलने से ही सफलता दूर हो जाती है।
http://auratkihaqiqat.blogspot.in/

अनूप शुक्ल ने कहा…

संवेदनशील पोस्ट!मैत्रेयी पुष्पा की आत्मकथा याद आ गयी।