वह हमारे बीच रहती है,
हमारी तरह पढ़ती है, खाती है, सोती और खेलती है। लेकिन वह हमारी तरह बातें नहीं
करती। उसकी शादी को दस महिने हुए है। तब से लेकर अब तक वह अपने मायके नहीं गयी।
उसके ससुरालवालों ने उसे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए इलाहाबाद भेजा है।
एक फॉर्म में मैने उसे माता
के नाम की जगह सास का नाम तथा पिता के नाम
की जगह ससुर का नाम, घर के पते में ससुराल का पता भरते देखा। तब मैने उससे कहा कि
पते मे ससुराल का पता भरना तो समझ में आता है, लेकिन माता की जगह सास का नाम, पिता
की जगह ससुर का नाम भरना मुझे समझ में नही आया।
वह बोली-अब मेरे सब कुछ तो
वही लोग है। मैने कहा- अच्छा, अब माता-पिता से इतना भी रिश्ता नहीं बचा, जो हमारे
जन्मदाता है, जिनके नाम से हमारी पहचान है, जिनके नाम पर हमारा अब तक का
प्रमाणपत्र है, कम से कम वह पहचान तो कोई सास-ससुर को नही देता। वह बोली- नहीं,
हमारे सास-ससुर ही सब कुछ हैं।
वह ऐसा क्यों बोल रही थी,
मेरी समझ में नहीं आया। उसके मायके में भी सब ठीक है। लोग हमेशा उसे याद करते हैं
और बुलाते हैं, लेकिन वहां जाने का उसका मन नही होता।
वह हॉस्टल की हर एक लड़की
को सलाह देती है कि शादी जल्दी करना। शादी के बाद जीवन बहुत हसीन हो जाता है। जब
वह ऐसा बोल रही होती है, सारी लड़कियां उसे एक टक देखती रहती हैं।
लड़कियां जब अपने भाई-बहनों
की बाते करती है, मेरे भाई-बहन पढ़ने में ऐसे हैं, वैसे हैं। वह अपने देवर औऱ ननद
की बातें करती है, मेरा देवर ऐसा है, मेरी ननद वैसी है।
वह किसी भी वक्त अपने
माता-पिता या भाई-बहन का जिक्र ही नही करती, चाहे उनकी याद आने के बहाने ही सही।
मायके तथा माता-पिता से
मोहभंग, ससुराल वालों पर अटूट प्यार, यह किस तरह का बदलाव है? कम से कम मेरी समझ में तो
नहीं ही आ रहा।
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