खुली आंखों के सपने |
देखो..वैसे कुत्ते को तो कुत्ता ही बोला जाता है..लेकिन तुम उसे कुत्ता नहीं डफी कहना। उसके डफी को कोई कुत्ता कह देता है तो वह तुरंत बुरा मान जाती है। हालांकि पहले उसे कुत्ते पसंद नही थे, बिल्कुल भी नही। लेकिन अचानक ही वह उन पर इतना ज्यादा प्यार उड़ेलने लगी है..उसके दुलार से वह कुत्ता ..ओह सॉरी..वह डफी इतना बदमाश हो गया है कि मैं क्या कहूं।
दोपहर में डफी जब दादी पर भौंककर उन्हें अजनबी होने का एहसास दिलाया तब दादी ने यह जिक्र छेड़ा।
दस दिन पहले जब आंटी मुझे स्टेशन से लेकर अपने घर आयीं तब डफी के भौंकने पर मैं उसी तरह उछली जैसे वह खुश होने पर उछलता है। मैनें सुना था जानवरोें से बेहद प्रेम करने वाले लोगों का इंसानों से कम लगाव होता है, लेकिन यहां आकर यह बात मिथ्या साबित हुई और पता लगा इंसान पर जान छिड़कने वाले लोग ही जानवर को सच्चा प्यार करने की कूबत रखते हैं।
अब..जब बात डफी की चली है तो उसके बारे में थोड़ा और बता दूं.....अगर वह कुत्ता ना होता (यह कहते हुए मुझे दादी की बात याद आ रही है, उन्होनें उसे कुत्ता कहने को मना किया है) तो मैं कहती कि वह इस घर का सबसे छोटा और मासूम बच्चा है जिसे लोग अपने प्यार से सूखने ही नही देते।
डफी का ठाठ किसी नवाब से कमतर नही। अगर हम कहें कि वह वफादार है तो यह बेमानी होगी...क्योंकि घरवालों से पहले यह घर उसका खुद का है। यह डफी का निर्णय या यूं कहें कि मर्जी होती है कि घर में कौन आ सकता है..कौन नही।
डफी भौंकने के अलावा औऱ कोई हर्फ जानता तो वह रात में सोते वक्त लोरी और कहानियां जरुर सुनता। मिठाई पर मर मिटने वाला डफी फोन पर पप्पा से जरुर जिद्द करता कि शाम को ऑफिस से आते वक्त हाथ में मिठाई का डिब्बा जरुर होना चाहिए। उसका बस चलता तो वह कभी नही नहाता या अपनी मर्जी की साबुन से नहाता। किचन में उसके लिए स्पेशल डिश(गाजर का हलवा) बना रही माया दीदी से कहता..दीदी हो सके तो शक्कर थोड़ा बढ़ा कर डाला करो..हलवा फीका लगता है।
खैर...वह बोलता नही तो क्या हुआ..उसे प्यार करने वाले उसकी पसंद नापसंद का ख्याल अच्छे से रखते हैं। जादू की ना सही लेकिन प्यार की झप्पी जरुर देते है...उसकी भाषा में ना सही लेकिन लोरी जरुर सुनाते हैं। प्यार के रस में डुबा यह कुत्ता (कहने को मना है) जरूर सोचता होगा, इस घर में बच्चे की तोतली जुबान में जिद्द करना।
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