मेरी ट्रेन तुम्हारे शहर से होकर गुजरेगी। कुछ चहिए तो बता
देना घर से लेते आऊंगा...हां.. तुम्हें जहमत इतना भर उठाना पड़ेगा कि स्टेशन पर
आना होगा...वो भी बिल्कुल समय पर या समय से पहले...ट्रेन उस स्टेशन पर सिर्फ दो
मिनट ही रूकती है।
रात को उससे बात करते हुए यह तय हुआ कि वो घर से गोभी का
अचार लाएगा...और मैं समय से पहले स्टेशन पर पहुंच जाऊंगी।
लेकिन अगली सुबह ठंड ने ऐसे दबोचे रखा कि मेरी नींद ही नहीं
खुली....कई बार उसका फोन आया...और मैं यह सोचकर फोन नहीं उठा सकी कि चलो..अचार ही
तो है..अगर समय पर स्टेशन नहीं पहुंच पाई तो वह अचार लेकर चला जाएगा..थोड़ा नाराज
भी होगा...लेकिन इतनी भारी चीज तो है नहीं...अगर मैं नहीं ले सकी तो उसके काम आ
जाएगा
खैर...उसकी ट्रेन लेट थी...और मेरे उठने का समय भी हो चुका
था.... लेकिन जब मैंने उसे फोन किया तो वह काशी (सिटी स्टेशन) तक पहुंच चुका था।
अगला स्टेशन कैंट था...ट्रेन वहां दस मिनट रुकने वाली थी...इसके बाद मडुआडीह स्टेशन..जहां
मुझे जाकर अचार लेना था...
मेरे घर से निकलने तक वह कैंट स्टेशन पहुंच चुका था.... और
मैं मडुआडीह क्रासिंग पर भयंकर जाम में फंस गई। मैं उसे फोन पर सिर्फ एक ही बात
कहती रही..अगर मैं समय पर नहीं पहुंच पायी..तो तुम ट्रेन से उतर जाना...अगली ट्रेन
पकड़ कर चले जाना... लेकिन अचार देकर जाना....
मैं पैंतालिस मिनट तक जाम में फंसी रही...और उसकी ट्रेन
कहीं आउटर पर खड़ी रही। फिर भी मन में यह आशंका जरूर थी कि मैं समय पर स्टेशन नहीं
पहुंच पाउंगी....अब तक मैं अचार के भयंकर मोह में जकड़ चुकी थी।
जाम में अन्य गाड़ियों से टकराते हुए रिक्शे वाले ने जाने
कैसे-कैसे रिक्शा निकाला...औऱ उसैन वोल्ट वाली रफ्तार से रिक्शा दौड़ाकर मुझे तीन
मिनट के अंदर स्टेशन पर पहुंचा दिया।
लेकिन हाय राम...ट्रेन का वहां कुछ अता-पता नहीं था...कोई
अनाउंसमेंट नहीं...ना जाने निकल गई या आने वाली है....कुछ पता नहीं चल रहा था।
मैंने फोन किया तो उसने बताया कि उसकी ट्रेन निकल चुकी
है...थोड़ी ही देर में पहुंच जाएगी। मैं प्लेटफार्म नंबर दो पर पहुंच गई...कुछ देर
बाद उसकी ट्रेन रुकी...और वह हीरो की तरह एक थैला हाथ में लिए उतरा....उसने मुझे
थैला पकड़ाया ही था कि ट्रेन के जाने का सिग्नल हो गया और वह चला गया।
गोभी का अचार खाने के लिए
दिन में दो बार खाना खाने लगी...और चार दिन के भीतर सिर्फ खाली डिब्बा बचा..अचार
खतम हो चुका था।
कभी-कभी दोस्त शहर से
गुजरते हुए अचार का थैला पकड़ा जाते हैं.... चार दिन तक चाटने के बाद अचार भले ही
खत्म हो जाए...लेकिन सुगंध दिमाग में रोज बनी रहती है....खाली डिब्बा जो पड़ा है
घर में..
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