बारिश होने पर जैसे मोर
झूमता है, उसका भी मन वैसे ही झूमता है जब वह पलाश के फूलों को देखती है। लहरतारा
पुल से गुजरने पर पुल के नीचे फूलों से लदे पलाश के पेड़ उसकी एक नजर के आतुर
दिखते हैं। पुल से गुजरते वक्त वह पलाश के फूलों को वह जी भरकर निहारती है और अपनी
आंखों में कहीं छुपा लेती है। उसे उस रात सिर्फ पलाश के ही सपने आते हैं। वह
उन्हें महसूस करती है, आधी रात को जब उसे सपना आता है कि वह पलाश के पेड़ के नीचे
उसके नर्म फूलों के बिस्तर पर लेटकर कोई प्रेम कहानी पढ़ रही है।
वह शहर भर के रास्तों को जब
नापती है तो उसे इस बात का गुमान होता है कि आगे न सही लेकिन उसके आगे पलाश का
पेड़ जरूर दिखेगा। लेकिन मानो शहर ने पलाश को पलायन का रास्ता दिखा दिया हो। वह
निराश हो जाती है। वह रास्ते में जहां कहीं भी छह-सात पेड़ों का झुंड देखती है,
देखती ही जाती है, मुड़-मुड़ कर देखती है कि उन पेड़ों के बीच से कहीं पलाश न
झांककर उसे देखे। वह दीदार करना चाहती है तो सिर्फ पलाश के फूलों का। वह उन फूलों
को अपने में समा लेना चाहती है। वह दीवानी है तो बस पलाश के फूलों की।
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