उस दिन लाइब्रेरी बंद रहती थी। उसे यह बात मालूम नहीं थी। वह रोज की तरह पीठ
पर अपना झोला टांगे हॉस्टल से निकली और करीब दो किलोमीटर रास्ता नापते हुए
लाइब्रेरी पहुंच गई।
राजकीय पब्लिक लाइब्रेरी की गेट पर ताला लटका था। उसे लाइब्रेरी के कैंपस में
एक लड़का बैठा दिखा। उसने लड़के से पूछा-लाइब्रेरी बंद क्यों है? गेट पर तो ताला लटका है
फिर आप अंदर कैसे गए?
लड़का अपने कानों में इयरफोन लगाए हुए था। वह उसकी तरफ ऐसे देख रहा था जैसे
उसकी आवाज भी वह इयरफोन के जरिए ही सुनना चाह रहा हो। अंदर से ही वह जोर से
बोला-लाइब्रेरी नहीं खुली है। उसने पूछा- आज तो संडे भी नहीं है फिर बंद क्यों है? इस बार लड़का जवाब देने के
मूड में नहीं था।
वह लाइब्रेरी के पास ही पेड़ की छाया में बैठ गई। उसने पिछले दो दिनों में
लाइब्रेरी में जो नोट्स बनाए थे, उसे झोले से निकाली और पढने लगी। लाइब्रेरी के
दोनों तरफ बड़े-बड़े मैदान थे। वहां पेड़ों की छांव में बैठकर बहुत सारे लोग पढ़ाई
कर रहे थे।
उन बहुत सारे लोगों में सिर्फ वही एक लड़की थी। पढ़ाई करने वाले लड़के पहले
उसने मिनटों घूरते रहे और फिर जल्द ही स्वीकार कर लिया कि इस जगह पर पढ़ाई करने का
सबको समान अधिकार है।
कुछ ही देर बाद लाइब्रेरी के कैंपस से दो लड़के गेट के पास आए। एक ने गेट पर
लगे ताले पर बिना चाभी के अपनी उंगलियां चलाई और ताला खुल गया। लड़कों के पीछे एक बुजुर्ग
हाथ में दूध का डिब्बा लिए आ रहे थे। गेट पर पहले से खड़ा एक लड़का गेट खुलते ही
अंदर जाने लगा। लेकिन बुजुर्ग ने उसे जोर से डांटा और अंदर जाने से रोक दिया।
उन्होंने ताले में चाभी लगायी और गेट में ताला लटका दिया।
वह पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई कर रही थी। बीच-बीच में उसे कुछ लड़कियां दिखाई
पड़ रही थीं जो किसी लड़के का हाथ पकड़कर और चेहरे को दुपट्टे से ढककर आ रही थीं।
थोड़ी देर बाद पीठ पर बैग टांगे लाइब्रेरी की गेट पर एक लड़का आया। वो वही था,
जिसने लाइब्रेरी के अंदर कल उसे दो बार मुड़कर देखा था। उसके चेहरे पर एक प्यारी
मुस्कुराहट थी। वह उसके पास आया और पूछा- लाइब्रेरी क्यों बंद है? उसने कहा- शायद गुरुवार को
बंद रहती है। वह अपने बैग से पानी की बोतल निकाला, एक घूंट पानी पिया और वापस लौट
गया।
अब उसे भूख लगने लगी थी। वह अपने बैग से टिफिन और चम्मच निकाली और हलवा खाने
लगी। इसी दौरान नल से बोतल में पानी भरकर तीन लड़के उसके बगल से गुजरे। एक ने
दूसरे से कहा-सोच रहा हूं इस बार गांव जाऊं तो शादी करके पत्नी को साथ ले आऊं। जब
मैं लाइब्रेरी पढ़ने के लिए आऊंगा तो कम से कम वह टिफिन बनाकर तो देगी। शायद उसे
भूख लगी थी। वह उसे अपना हलवा देना चाह रही थी। लेकिन उसे खुद नहीं पता चला कि
उसका टिफिन कब खाली हो चुका था। उसने पानी पिया और फिर से पढ़ाई करने में जुट गई।
लोग लगातार आ रहे थे और लाइब्रेरी की गेट पर ताला लटका देखकर वापस लौट जा रहे
थे। कुछ लोग लाइब्रेरी की बाऊंड्री फांदकर अंदर जा रहे थे और जमीन पर चादर बिछाकर
पढ़ाई कर रहे थे।
लाइब्रेरी के ठीक सामने पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ना उसे काफी अच्छा लग रहा था।
अचानक उसे पीछे से पांच लड़के आते हुए दिखाई दिए। चार लड़के कद में छोटे और लगभग एक बराबर कद के थे लेकिन पांचवा लड़का कद
में उन चारों से बड़ा था। उसकी शर्ट पर रंग-बिरंगे फूल-पत्तियां बनी थी। उसने अपनी
दोनों आंखे काले चश्में से ढक रखी थी। वह लड़का उसके बगल से गुजरा और उन चारों
लड़कों में से जाने किससे बोला-नंबर मांग लो मैडम का, तभी तो पटा पाओगे। यह कहते
हुए वे पांचों एक साथ हंसे जैसे वह दुनिया की सबसे आनंदमयी बात रही हो, और वहां से
आगे बढ़ गए।
इस बीच घूमकर चाय बेचने वाला उससे चार बार चाय के लिए पूछ चुका था और वह दस
बार मना कर चुकी थी।
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