गुरुवार, 10 मार्च 2016

हॉस्टल की लड़कियां !



वह दो कमरों के बीच गैलरी में जमीन पर सोया था। टेबल फैन जमीन पर रखा हुआ था उसके सिर के ठीक पीछे। यदि हाथ-पैर की तरह सिर भी मारा जा सकता तो अब तक वह फैन उसका तकिया बन चुका होता। पंखे के बगल में गुलाबी रंग की बोतल में पानी भरकर रखा था। लुसेंट की किताब खुली पड़ी थी। यह बात सिर्फ उसे ही पता थी कि वह विज्ञान पढ़ते हुए सो गया था या फिर राजनीति शास्त्र या भूगोल।

किराए का वह घर दो गर्ल्स हॉस्टलों के बीच था, जिसमें वह रहता था। ऐसी जगहों पर किराए का कमरा मिलने पर लड़के अक्सर अपने को भाग्यशाली समझा करते थे। पहला हॉस्टल उस घर की गेट से दिखता था जबकि दूसरा घर के पीछे की छत से सटा हुआ था।

छत पर गैलरी में वह चादर तानकर सोया हुआ था। चादर की बाहर की दुनिया में सूरज ने रौशनी बिखेर दी थी। चिड़ियां दाने की तलाश में उसके छत पर चहलकदमी कर रही थीं। थोड़ी देर में वह उठ गया। बच्चों की तरह आंख मलते हुए उसने अपनी तरह की अंगड़ाई ली और उठकर चादर समेटने लगा। उसने पूरे बिस्तर को समेटा और चटाई सहित मोड़कर दीवार के किनारे लगा दिया। गुलाबी बोतल से वह पानी गटका और लुसेंट की किताब लेकर कहीं अदृश्य हो गया।

दोपहर में हॉस्टल की छत पर लड़कियों के कपड़े लटक रहे थे। सड़क से गुजरने वाले लोग उन कपड़ों को कुछ यूं देख रहे थे मानो इनकी नीलामी होने वाली हो। छत पर रखी सिंटेक्स की चार टंकियां ओवरफ्लो हो रही थी। पानी छत पर गिर रहा था और उसपर सूखी काई खुद को तरोताजा महसूस कर रही थी। उस हॉस्टल की एक लड़की दुपट्टे से सिर ढक कर तुलसी को दीया दिखा रही थी इसके बाद उसने अर्घ्य भी दिया।

उसके बिस्तर दीवार के किनारे ही पड़े दिख रहे थे। वह मोड़े गए बिस्तर के ऊपर बैठा था और अपने घुटनों पर थाली रखकर दोपहर का भोजन कर रहा था।

वह लड़की अर्घ्य देकर छत से नीचे उतरी और दूसरी लड़की से बोली- बिना घर वाले भैया जी छत पर बैठकर खाना खा रहे हैं। दूसरी लड़की खिलखिलाते हुए छत पर उसे देखने के लिए भागी।
शाम ढल गई थी। सूरज पलाश के पेड़ों के बीच से गुजरते हुए अंधेरा छोड़ गया था। उसके छत पर गैलरी में पीली रोशनी वाला एक बल्ब लटक रहा था। टेबल फैन जमीन पर हनहना रहा था। गुलाबी रंग की पानी की बोतल सीन से गायब दिखी। बिस्तर सुबह की तरह बिछे हुए थे। वह बैठकर पढ़ रहा था। उसके हाथ में एक नोटबुक थी।

वह स्पोर्ट्स का हॉफ टी-शर्ट और पैंट पहना था। पढ़ाई से ज्यादा वह मच्छरों को मारने में मेहनत कर रहा था। हॉस्टल की छत पर म्यूजिक की पढ़ाई करने वाली एक लड़की तबला बजाने का अभ्यास कर रही थी। सीन में तबले की धुन पर ही वह अपने हाथों से अपने शरीर को पीटते दिखाई दे रहा था। वह मच्छर मार रहा था।

रात के नौ बज चुके थे। वह पढ़ाई में लीन हो गया था। ठंडी हवा आलस के साथ बह रही थी। हॉस्टल की लड़कियां खाना खाकर छत पर टहलने के लिए आ गई थीं। ज्यादातर लड़कियां छत पर टहल-टहल कर फोन पर बातें कर रही थीं जबकि कुछ लड़कियों को उनके ब्वॉयफ्रेंड ने कब कौन सा तोहफा दिया था इसका हिसाब लगा रही थीं।

छत पर वैसे ही कोलाहल था जैसे चिड़ियों का झुंड दाना चुगते हुए करता है। उसकी निगाह लड़कियों की तरफ थी। इतनी सारी लड़कियों में से वो जाने कौन सी लड़की को देख रहा था या एक साथ सभी को देख रहा था। हवा में उसके नोटबुक का पन्ना फड़फड़ाता हुआ आखिरी पेज पर पहुंच गया था। वह होश में नहीं था। हॉस्टल की लड़कियां मिनी स्कर्ट्स और शार्ट्स में थीं। वह उन्हें बर्दाश्त करने की हद तक देख रहा था। वह कभी अपना फोन देखता तो कभी उन लड़कियों को। 

अचानक वह तेजी से अपना गर्दन झटका और आंखों को मसला। जैसे नींद से जाग गया हो। वह अपनी नोटबुक लेकर उठा, गैलरी की पीली रोशनी को बुझाया और फिर कहीं अदृश्य हो गया।

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