मैं देहाती संस्कृति में
पली-बढ़ी हूं और अपनी मां-दादी समेत तमाम देहाती औऱतों की जिंदगी से बहुत करीब से
वाकिफ हूं। वह अपने जीवन में चाहे कितना ही दुख क्यों न उठाती हों दूसरों को हमेशा
अपने से बेहतर जिंदगी देती हैं। वह ना तो आग हैं ना ही शबनम हैं लेकिन जो भी हैं
कहीं कमतर नहीं हैं।
पिछले दिनों पाकिस्तान के
प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भारत के प्रधान मंत्री को देहाती औऱत कहा। नवाज शरीफ
किस तरह की देहाती औरत से वाकिफ हैं वह देहाती औऱत जिसने अपना कलेजे पर पत्थर रखकर
अपने लाल को देश की रक्षा के लिए भेजा है, या वह देहाती औऱत जिसका बेटा आइएस
पीसीएस बन कहीं अपनी सेवा दे रहा है तो कही डॉक्टर इंजीनियर के रुप में मौजूद है।
देश के प्रधानमंत्री को
देहाती औरत की संज्ञा देना क्या उन महिलाओं
की अस्मिता पर चोट करने जैसा नहीं है, जो हर हाल में औऱ हर परिस्थिति में मौजूद
हैं किसी ना किसी रुप में।
अगर दशरथ मांझी किसी को याद
हैं तो ये भी मालूम होगा कि उनके पहाड़
जैसे हौसले के पीछे उनकी देहाती औऱत का हाथ था।
देहाती औरतें शरीर से
पसीना बहाती हैं, दिन भर घर के कामों में खटती हैं। कुएं से पानी निकालती है, जानवरों को
नहलाती हैं। खेत से घास भी काट लाती हैं, साथ में बच्चे को भी पालती हैं। भैंस का
दूध निकालती है, तो पड़ोसी की बेटी की शादी में नाच भी आती है।
ओखली चक्की में कुटाई-पिसाई
भी करती हैं, चूल्हा फूंकती हैं, धुएं में आंसू बहाकर भोजन भी पकाती हैं। देहाती
औरतें जब गाने बैठती हैं तब जानवर भी ठिठक जाते हैं, और जब रोती हैं तो पेड़ की
पत्तियां भी झड़ जाती हैं।
देहाती औरत खेत में काम कर
रहे मर्द के लिए खाना पहुंचाती है, तराजू पर मजदूरों की मजदूरी तौलकर देती
है। पति
के कोर्ट कचहरी के कागजात ना समझ
में आते हुए भी अपने किसी प्रिय गहने की भांति सहेज कर रखती है।
देहाती औऱत जितना जानती है
उसी ज्ञान को दूसरों में बांटकर मास्टर बना देती है। देहाती औरत दुनिया नहीं घूम पाती है लेकिन कुएं
का मेढ़क भी नहीं होती। देहाती औरत गांव में आशा का काम करती है तो बलात्कार के विरोध प्रदर्शन
में दिल्ली भी पहुंच जाती है। देहाती औऱत अपनी भागीदारी देती है हर हाल में, हर
परिस्थिति में।
देहाती औऱत शिक्षा के
मामले में भले ही थोड़ी कमतर हो लेकिन हर
एक चीज विधि से करना जानती है। वह गूंगी नहीं होती है, अवसर मिले तो विरोध करना
जानती है। देहाती औरत रद्दी नहीं एक बेसकीमती एहसास है।
देहाती औऱतों को पहचानना
सबकी औकात नहीं है ना ही सबके बस की बात है। जब ज्ञान की कमी हो तो जुबान ज्यादा तेज चलती है। ऐसे ही
ज्ञान के अभाव में प्रधानमंत्री को देहाती औऱत की
उपाधि से नवाजा गया है।