आज सुबह मैं गहरी नींद में
थी, उन्होंने पास आकर मुझे हिलाया, यहां तक कि मेरे पूरे शरीर को झकझोर डाला,
लेकिन मेरी नींद नही खुली। वह झल्लाकर बोलीं-अगले साल यह सब खुद करना पड़ेगा, मैं
नहीं रहूंगी तब जगाने के लिए। उनकी यह बातें नींद में ही मुझे बेध गयीं औऱ मैं तुरंत
उठ गई लेकिन आंखों में नींद सवार ही थी..आखिर भोर की नींद जो थी।
दिवाली की अगली सुबह हमारे
य़हां घर से दलिद्दर निकालने का रिवाज है। मैं जब से अपने खुद के पैरों से चलना
शुरु की हूं तब से लेकर आज तक हर दिवाली की सुबह अपने नींद की बलि देकर दलिद्दर
भगाने के काम में दादी की मदद करती आयी हूं।
बाकी सालों की तरह इस साल भी
दादी के साथ मिलकर वही काम करना था। दादी
ज्यादा बिमार चल रही हैं और वह हर काम को ऐसे कर रही थी जैसे जिंदगी ने उन्हें
अंतिम अवसर बख्सा हो। इसलिए उन्होंने अगली दिवाली पर अपने ना होने की बात कहकर
मेरी नींद खुलवा दी।
दलिद्दर निकालने के लिए
बांस की बनी एक पुरानी टोकरी ऱखी गयी थी जिसे घर के हर कमरे में हसिया से बजाते
हुए “ईश्वर बैठें दलिद्दर निकलें” ऐसा बोलना होता था जो कि मेरा काम था। दादी मेरे पीछे तेल
से भरा एक मिट्टी का दीया लेकर चल रही थीं।
मैं हाथ में बांस की पुरानी
टोकरी और हसिया लेकर जम्हाई ले रही थी, बस कहीं लुढ़क जाने का मन कर रहा था। लेकिन
दलिद्दर को भी तो निकालना था सूर्य उदय होने से पहले। खैर मैं अपने काम पर लग गई,
लेकिन एक गलती हो गई शुरुआत में ही। घर के पहले चार कमरों में “ईश्वर निकले दलिद्दर बैठें” ऐसा उल्टा-पुल्टा बोल
दी...दादी ने पीछे से जोर की डांट लगायी..और कहा कि फिर से शुरु करो दलिद्दर तो
बैठा ही रह गया ईश्वर निकल गए..
मेरी शामत.... जहां से शुरु
की थी वहीं से फिर शुरु करना पड़ा यानि पहले कमरे से ठीक ठीक ईश्वर बैठें दलिद्दर
निकलें बोलते हुए टोकरी पीटना शुरु की। अभी पीछे चौदह कमरे बाकी थे।
सारे कमरों को निपटाते हुए
अब उस कमरे की बारी आयी जिसमें की भैंस अपने बच्चों के साथ सो रही थी। अब तक मैं
नींद से पूरी तरह बाहर आ गयी थी। जैसे ही मैं भैंस के कमरे में टोकरी पीटते हुए गई
भैंस भड़क उठी और खूंटे के चारो तरफ चक्कर लगाते हुए जोर-जोर से बें बें बें करने
लगी, लेकिन पीछे से दादी ने आकर उसे शांत कराया।
अब लगभग घर के कोने-कोने से दलिद्दर निकल चुका
था फिर हम खलिहान के पास नहर के किनारे जाकर उस टोकरी को रखकर और दीपक जलाकर रखे
औऱ दलिद्दर को बोले-अगर कहीं से सुन रहे हो तो सुनो अगले साल ऐसे ना छकाना,आसानी से
घर से निकल जाना, चाहे दादी रहें या ना रहें।
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