रविवार, 5 जनवरी 2014

मैं ऐसा करती नहीं..ऐसा हो जाता है...



कुछ आदतें ऐसी होती हैं जिन्हे हम जानबूझ कर नहीं करना चाहते फिर भी बार-बार करते हैं। मना करने के बावजूद करते हैं। और कभी-कभी ज़ेहन में रहते हुए भी कि-ऐसा नहीं करना है-कर देते हैं। ऐसा करते वक्त पता रहता है कि ऐसा कर रहे हैं लेकिन पता रहते हुए भी ऐसा कर ही डालते हैं।

ख़ैर... मेरे ख्याल से अब बता देना चाहिए कि मैं किस बारे में बात कर रही हूं। अगर ऐसी आदतें सिर्फ मेरी ही हैं.. तो हो सकता है मैं किसी दूसरे ग्रह की प्राणी हूं, लेकिन अगर आप भी ऐसा ही कुछ करते हैं तो ऐसा करने से खुद को कैसे आप रोकते हैं, मुझ भी बता सकते हैं।

जब मैं पढ़ाई करने बैठती हूं तो नमकीन या चना-लाई का डिब्बा लेकर बैठ जाती हूं। कुछ खाते हुए पढ़ने पर ज्यादा ध्यान लगता है..इस ध्यान के चक्कर में नमकीन खाकर डिब्बा कब खाली कर दी, इसका पता तब चलता है जब कुर्सी के नीचे खाली डिब्बे को लुढ़कते देख मेरी दादी भगवन् से शिकायत करते हुए यह कहती हैं कि हल्दीराम का एक पाकिट नमकीन एक ही दिन में भकोस गयी। अब मेहमानों को क्या देंगे।

एक दोस्त से उसकी एक नई किताब मांग लायी पढ़ने को। पढ़ने बैठी ही थी, उसी वक्त एक फोन आ गया। फोन पर बात करते हुए मैने एक पेन उठाया और उसकी किताब पर कमल का फूल और बत्तख बना डाला। सिर्फ बनायी ही नहीं बल्कि पेन की स्याही रगड़-रगड़ कर उसे अच्छी तरह सजा भी दी। जिससे स्याही दूसरे पन्ने पर भी फैल गई। फोन रखने के बाद ध्यान आया कि इस पिकासो को बना कर मैनें उसकी नई किताब खराब कर दी। हालांकि बनाते वक्त मैं देख रही थी कि मैं कुछ बना रही हूं, लेकिन एक किताब को बुरी तरह खराब कर रही हूं इस बात का इल्म उस वक्त तो मुझे नहीं था।


टीवी देखते हुए संतरा खा रही थी। एक खायी..फिर एक खायी..फिर एक के बाद एक....टीवी देखती गयी...संतरा खाती गयी। इस तरह एक किलो संतरा कैसे टोकरी भर छिलके में बदल गया इसका अंदाजा तब हुआ जब संतरे की खाली थैली उड़कर जमीन पर बैठ गयी। मां ने डांटा कि भाई-बहन के लिए एक भी न छोड़ी, सब खा गयी। मैं सिर्फ इतना कह पायी कि मैं खब्बू नहीं हूं। टीवी देखते हुए खाने में कब खत्म हो गया पता नहीं लगा।

किचन में सब्जी बनाते वक्त दिमाग में हालिया देखी एक फिल्म की कहानी चल रही थी। खाते वक्त भाई ने कहा कि नमक अभी प्याज के भाव नहीं बिक रहा, कि हमें इसके बिना खाने की आदत डालनी पड़े।

मेरी इन आदतों से परेशान लोगों ने बोलने की स्वतंत्रता का लाभ उठाते हुए बोल कर कई उपाधियों से नवाजा है। कभी-कभी मेरी इन हरकतों के लिए मुझे बहुत डांट भी खानी पड़ी है। लेकिन मैं सच्ची बता रही हूं, ऐसा हो जाता है...मैं ऐसा करती नहीं।

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