मोबाइल में बैलेंस और पास में इंटरनेट होना जीवन के कई सुखों में से एक सुख का
आभास कराता है। यह हमारी जरूरी जरूरतों से
भी शायद कहीं ज्यादा जरूरी हो गया है। यह ज्ञान मुझे आज ही प्राप्त हुआ।
कहानी थोड़ी जुल्मी है...दो दिन पहले मेरा इंटरनेट पैक खत्म हो गया। मोबाइल की
एक दूकान पर रिचार्ज कराने पहुंची तो नेटवर्क समस्या की वजह से रिचार्ज नहीं हो
पाया। अन्य दूकानों पर जाने पर वहीं समस्या आयी। मैं मायूस होकर हॉस्टल लौट आयी।
मेरे पास चौराहों या किराने की दूकान के बगल में रिचार्ज की दूकान खोलकर बैठे किसी
पप्पू भैया या छोटू भैया टाइप किसी भी भैया का नंबर भी नहीं था कि मैं उन्हें पैसे
देकर बोलती कि ट्राई करते रहिएगा शायद रिचार्ज हो जाए।
कमरे की खिड़की के पास खड़ी थी, मन कुछ बोझिल सा लग रहा था। रिचार्ज न होने के
दुख में डूबी ही थी कि रात में जाने कैसे मोबाइल का सारा बैलेंस कट गया। सुबह जगी
तो पता चला मोबाइल में पैसे के नाम पर फूटी कौड़ी भी नहीं है।
जीवन में कई बार ऐसा होता है कि चीजे अच्छी हों या बुरी, आती हैं तो छप्पर
फाड़ कर आती हैं। या तो आप खुशी के मारे मर जाए या फिर गम के मारे। मैं पता नहीं मर रही थी कि नहीं..हां उदास उतनी ही थी जैसे कि कोई मर गया हो।
मैं रिचार्ज करवाने के लिए शाम को निकली और हॉस्टल से करीब तीन-चार किलोमीटर
की दूरी नाप कर लौट आयी। रिचार्ज नहीं हो पाया। ज्यादातर मोबाइल की दूकानों पर
मेरे नेटवर्क का रिचार्ज खत्म हो गया था..कुछ दूकानदार उस नेटवर्क का कार्ड नहीं
बेचते थे...कुछ ने कहा रखे तो हैं लेकिन कार्ड मिल नहीं रहा..खोजना पड़ेगा, अभी
खाली नहीं हैं। दूकानें सिर्फ चार-पांच ही थीं।
हॉस्टल लौटने के बाद मैं पढ़ाई करने बैठी तो पढ़ने में मन नहीं लग रहा था। मैं
बार-बार अपना फोन उठाकर देख रही थी जैसे किसी भगवान जी ने मुझसे प्रॉमिस किया हो
कि दो घंटे के भीतर बैलेंस भेज पहुंच जाएगा।
उफ्फ.. इतनी उदासी...क्या पहाड़ टूट पड़ा है..क्या कोई दुर्घटना हो गई
है...दुख-वुख जैसा कुछ भी नहीं था...लेकिन उदासी थी कि चेहरे पर चिपक गई थी।
अरे..मुझे किसी को जरूरी या गैर जरूरी टाइप की कोई कॉल भी नहीं करनी थी। ना ही
फेसबुक चलाना था ना ही व्हाट्सएप की शौकीन हूं...और लिखने के प्रति तो मैं महाआलसी
हूं...मुझे कोई पोस्ट भी अपने ब्लॉग पर नहीं डालनी थी...फिर मेरा मुंह क्यों लटका
था...जाने क्यों।
मेरी हालत वैसी ही थी जैसे किसी बच्चे को तड़के सुबह परीक्षा देने जाना हो और
आधी रात को उसे याद आए कि उसने पेंसिल-पेन खरीदी ही नहीं। वह अपने कमरे के
कोने-कोने में ढूंढे और जो पेन मिले उसकी स्याही खत्म और जो पेंसिल मिले वह छीलने
पर टूट जाए।
मेरी मौसी कहा करती थीं जब अपने घड़े में पानी भरा हो तो दुनिया भी पानी के
लिए पूछती है। फोन में बैलेंस नहीं था तो घर से मां का भी कोई फोन नहीं आया। वैसे
तो वह रोजाना दिन में दो-दिन बार फोन टिनटिना दिया करतीं थी। मन उचट रहा था..दिमाग
में जाने कैसे-कैसे से खयाल आ रहे थे। उस समय-‘मुसीबत आने पर कोई साथ नहीं देता’ टाइप मुहावरे चरितार्थ हो
रहे थे।
फोन में पैसा न होना..पास में इंटरनेट न होना भी कोई दुख है.. है न साहब....मेरी
दादी कहती तो हैं-जिसके ऊपर बीतती है वही समझता है। आज बीती तो समझ में आया। फोन
में बैलेंस होना औऱ इंटरनेट होना अपने आप में एक बड़ा सुख है..खासतौर पर जब आप घर
से दूर किसी दूसरे शहर में अकेले रहते हों।
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