शनिवार, 14 मई 2016

हिटलर मकान मालकिन!



फर्स्ट फ्लोर पर नोटिस चिपकी- तुम लोग किराया एक से पांच तारीख के बीच दे दो नहीं तो सारा सामान नीचे उतरवा लूंगी। टंकी में पानी सिर्फ सुबह और शाम को भरा जाएगा..कोई भी नीचे न आये यह कहने के लिए की मोटर चला दीजिए पानी खत्म हो गया है।

50 लड़कियों वाले हॉस्टल की मकान मालकिन जैसा बोलती हैं वैसा ही उन्होंने नोटिस लिखकर फरमान जारी कर दिया। लेकिन नोटिस पर उन्होंने टर्म एण्ड कंडीशन नहीं लिखे।

आज सुबह से ही लाइट गोल थी। दोपहर होते-होते टंकी का पानी खत्म हो गया। हॉस्टल में त्राहि-त्राहि मच गया। लड़कियां एक-दूसरे से पूछ रही थी कि तुम्हारे पास थोड़ा पानी हो तो मुझे दे दो। कोई एक गिलास पानी मांग रहा था तो कोई एक मग। जो लड़कियां थोड़ा-बहुत पानी स्टोर करके रखी थीं वे ऐसे रौब में थीं जैसे भारी इंटरेस्ट पर कर्ज देने वाला सेठ।

अपन की कंडीशन भी अच्छी नहीं थी। रूम मेट पानी के बिना ऐसे तड़प रही थी जैसे गौरेया। इसी बीच लाइट आ गई। सारी लड़कियां ऐसे खुश हुईं जैसे गांव में लाइट आने पर पड़ोस के बच्चे हल्ला करते हुए खुशी का इजहार करते हैं।

लेकिन भाईसाब...फरमान तो फरमान होता है। मकानमालकिन को जब पानी चालू करने के लिए बोला गया तो मोटे फ्रेम के चश्मे से लड़कियों को घूरा और फर्स्ट फ्लोर पर लगी नोटिस को दुबारा-तिबारा पढ़ने की सलाह दी। लड़कियां मायूस हो गईं और लाइट आने की खुशी फुस्स हो गई।
आज अपन की स्थिति ये हो गई थी कि रुममेट ने गंगाजल में दाल पकायी। बगल वाले कमरे की लड़की बाथरूम से निकली तो उसे हाथ धोने के लिए हमलोगों ने कूलर से एक मग पानी निकालकर दिया।
रोजाना 
हम लोग बुंदेलखंड और लातूर जैसे जगहों पर पानी की कमी से जूझ रहे लोगों के बारे में अखबारों में पढ़ते थे लेकिन आज पूरे दिन वैसी ही स्थिति से दो-चार होना पड़ा तब उनका मर्म समझ में आया।

खैर... मालकिन मैडम ने पानी चालू कर दिया है। सभी बाथरूम के सभी नल खुले हुए हैं। मोटर चालू होते ही सभी नलों से इस तरह एक साथ पानी गिरने लगा मानों इसी से खेत की सिंचाई होने वाली हो। शुक्र है ऊपर वाले के साथ ही नीचे वाली मालकिन का भी।

बुधवार, 11 मई 2016

कितना मिनट लगता है सबकुछ बदलने में!



आज सिर्फ पंद्रह मिनट ही तो लेट हुई थी मॉर्निंग वॉक के लिए। पिछले पंद्रह दिनों से एक ही समय पर सुबह वॉक के लिए निकलती थी। लेकिन आज पूरे पंद्रह मिनट लेट थी।

हॉस्टल से बाहर सड़क पर निकली तो जाने कैसा-कैसा सा तो लग रहा था। उस पंद्रह मिनट में बिखरा वह उजाला बर्दाश्त नहीं हो रहा था। बार-बार मन कर रहा था वापस लौट जाऊं। लेकिन मन में यह भी खयाल आ रहा था कि सिर्फ पंद्रह मिनट ही तो लेट हूं। अगर वापस लौट गई तो मन दिनभर उदास सा रहेगा। जैसे सुबह का कोई बड़ा वाला काम मिस कर दिया हो।

हम जब कोई भी काम रोजाना एक ही समय पर करते हैं तो उस काम की हमें आदत हो जाती है। जैसे मुझे आदत पड़ गई है रोजाना उस बूढ़े अंकल को देखने की, उस नानी जैसी बुढ़िया को लंगड़ाते हुए वॉक करते हुए देखकर कुछ सीखने की। अमलताश के ताजे फूल जो सुबह सड़क पर बिखरे होते हैं उनपर पैर रखकर माता सीता की तरह महसूस करने की।

हॉस्टल से निकलकर जब सड़क पर आई तो वह मोटी लड़की आज वहीं मिल गई जो रोजाना मुझे यूनिवर्सिटी के सामने वाले एटीएम के पास मिलती थी। चाय वाले अंकल अब तक जाने कितने कुल्हड़ चाय बेच चुके थे। एटीएम मशीन की निगरानी करने वाला गार्ड जग चुका था और सड़क किनारे ब्रश कर रहा था (बाकी दिनों वह गार्ड सोया रहता था)।

लल्ला चुंगी चौराहे पर दो ऑटो सवारियों के इंतजार में खड़े थे। रोजाना जब मैं पंद्रह मिनट लेट नहीं होती थी तो इन जगहों पर सन्नाटा रहता था। मैं बार-बार अपनी घड़ी देख रही थी..मुझे कॉन्फिडेंस नहीं आ रहा था...मन में बार-बार यही चल रहा था कि मैं लेट क्यों हो गई। कितना अजीब लग रहा है सबकुछ। उस पंद्रह मिनट के बीच फैले उजाले में यह सब देखने की आदत नहीं थी मुझे। मैं हवा और फूलों की खूशबू को महसूस करते हुए रोजाना मीना कुमारी वाले मूड में निकलती थी। लेकिन आज मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था।

प्रयाग स्टेशन से आगे आईआरटी वाली रोड पर आ गई थी अब। बॉटनिकल गॉर्डन के एक पेड़ पर बैठा वह मोर जो रोजाना मेरे वहां पहुंचते ही बोला करता था शायद आज पहले ही कुछ बोल चुका था । गार्डन के पास पहुंचते ही मैंने कई मोर देखे..लेकिन कोई भी मोर कुछ नहीं बोला। मैं मायूस हो गई। मैंने मन ही मन कहा..मोर मोर बोलो न...आगे कुछ और बोलती तो बच्चों के पढ़ने लायक मोर पर कोई कविता ही बन जाती।

रास्ते में आनंद (राजेश खन्ना) टाइप एक अंकल दो-चार बूढ़े अंकल से गले मिल रहे थे। तीन दिन पहले उन्होंने रास्ते में मुझे नमस्ते बेटा बोला तो मैंने भी नमस्ते बोल दिया था। फिर यह सिलसिला जारी हो गया। वह बिल्कुल हंसमुंह और जिंदादिल पात्र हैं, किसी भी अजनबी से बात करके हंसा देना उनके स्वभाव में शामिल है। वह मुझे फिल्म आनंद के आनंद की तरह लगे। जिस दिन उन्होंने मुझे नमस्ते बोला..मैं उन्हें नहीं जानती थी..लेकिन अब जानती हूं आनंद के नाम से।
आगे की सड़कें और सुंदर थी। दोनों तरफ सुंदर से पेड़ और पाथ-वे पर बैठने के लिए सुंदर सी सीटें। सड़क के किनारे एक रामदेव अपनी गर्लफ्रेंड को योगा सीखा रहे थे। गर्लफ्रेंड बोल रही थी..यह क्या सीखा रहे हो। हाथ झनझना जा रहा है। रामदेव जवाब दे रहे थे..यह वाला योगा करने से ब्लड सर्कुलेशन तेजी से होता है। रामदेव नंगे बदन नहीं थे। हॉफ टीशर्ट और बरमूडा पहने हुए थे।
आज वॉक करते हुए मैं किसी को पीछे नहीं छोड़ पा रही थी। पीली साड़ी और स्पोर्ट्स का शूज पहने एक बुढ़िया भी मुझसे आगे निकल गई। मुझे अपने पर तरस आ रहा था..बेटा बेमन कोई काम ऐसे ही होता है।

पंत हॉस्टल के पास आज कुछ अधेड़ जवान योगा कर रहे थे। लाल पैंट और हाथ में कड़ा पहना वह पतला लड़का जो वहां रोज कूदा करता था आज स्थान बदल दिया था।
स्कूल बसें सड़क को कुचलते हुए आगे निकल जा रही थी। वह आंटी जिनके चेहरे पर हमेशा बारह बजे रहते हैं वो तो आज यहीं मिल गईं। रोजाना वह एनसीसी वाले रोड पर मिलती थी। अब मुझे अंदाजा लग रहा था कि मैं कितनी देर से निकली हूं...दुनिया समय पर थी।

मैं अब एनसीसी वाली रोड पर आ चुकी थी। सड़क किनारे कामता देव मंदिर का पुजारी आरती कर चुका था और सड़क पर खड़ा होकर अंगड़ाई ले रहा था।

आर्मी से रिटायर्ड वह अंकल जो रोजाना उस सड़क पर मुझे पछाड़ते हुए उसैल वोल्ट की रफ्तार से आगे निकल जा रहे थे...वे आज इतने आगे निकल चुके थे कि अपन को खुद में दूरदृष्टि दोष की आशंका हो रही थी। छोटे-छोटे किसान साइकिल पर सब्जी बांधे मंडी जा रहे थे। वह बूढ़ा आदमी जो रोजाना मोबाइल फोन को जेब में रखकर हनुमान चालीसा सुनते हुए वॉक करते थे आज मोबाइल नहीं दिखी उनकी।

प्रवेश भवन के पास से जूही-और चंपा जैसे फूलों की खुशबू भी नहीं आ रही थी आज। मानों मुझसे पहले ही कोई आकर इन फूलों की सारी खुशबू चुरा ले गया हो। वह लड़का जो नहा नोकर सिर में ऑलमंड्स ऑयल लगाकर साइकिल के पीछे की सीट पर अपने पापा को बिठाकर रोजाना कहीं जाता था शायद आज निकल चुका था। मैं बैंक रोड पर आ चुकी थी। वहां काफी भीड़ दिख रही थी। कई लोग वॉक करके लौट रहे थे। हॉस्टल पहुंची तो गार्ड अंकल अपने लिए नाश्ता बना रहे थे...मुझे देखकर बोले—लगता है आज देर से निकली थी...मैंने कहा...सब कुछ बदल गया था आज।

सोमवार, 9 मई 2016

सुबह की कोचिंग



सुबह उठने से लेकर रात को सोने से पहले तक वह छह बार चाय पीती है। चाय बनाने के लिए कमरे का पंखा बंद करना पड़ता है इस तरह पंखे को थोड़ी देर की राहत मिलती है।
थोड़ी देर पहले सुबह के साढ़े सात बजे थे। वह चादर तान कर सो रही थी। कूलर की हवा से उसे ठंड लग रही थी। मैंने उसे जगाया कि उसके कोचिंग का टाइम हो रहा है। वह एक आंख खोलकर मुझे देखी (जैसे दोनों आंखें खोलने पर आंखों से नींद चली जाती हो) और फिर सो गई। थोड़ी देर बाद उठी और दोनों आंखें खोलकर बैठ गई। कभी पैर में खुजली करती तो कभी सिर में.. और मुझे घूर कर देख रही थी। उस वक्त शायद मैं उसकी मम्मी थी जिसने सुबह स्कूल भेजने के लिए उसे जगाने की जुर्रत कर ली थी।

जब वह सुबह जग जाती है तब से लेकर रात को सोने तक कमरे की शांति भंग रहती है। वह उठी, सबसे पहले कूलर और पंखा बंद की। सिर में खुजली करते और मुंह फुलाए हुए(सोकर उठने के बाद उसका चेहरा सूजा हुआ दिखता है) पानी गरम करने लगी। गिलास उठाने की जहमत उठाए बिना वह भगौने से ही गमर पानी गटक गई। अब मेरा चेहरा उसे साफ-साफ दिखाई दे रहा था। वह बोली-दीदू मुझे कोचिंग नहीं जाना आज...लेकिन तुमने जगा दिया तो तुम्हारा नाम रोशन कर आती हूं..जाती हूं और पढ़ ही आती हूं। जब मैं यह पोस्ट लिख रही हूं कमरे में खटर-पटर मची हुई है।
वह बेड के नीचे से बाल्टी और साबुन उठायी। कोने में रखी मेज से उसका पैर टकरा गया। उसपर रखी पानी की दो बोतलें जमीन पर आ गिरी। वह उन्हें उसी हाल में छोड़ बाथरूम में घुस गई।

 उफ्फ...वह कमरे में मिनट भर भी नहीं रहती है तो कितना सुकून सा लगता है। कोचिंग के लिए देर तो उसे वैसे ही हो रही थी। कुल सात मिनट में वह नहा कर आ गई। कुल एक मिनट लगा उसे गीले कपड़े फैलाने में। वह बॉलकनी से उसैन वोल्ट की रफ्तार में कमरे में आयी और बाल्टी, साबुन बेड के नीचे पटक दी। थोड़ी देर बाद वह कमरे में बरसाती मेंढक की तरह उछलने लगी ओहो—बहुत देर हो रहा है...जाऊं कि न जाऊं...जाऊं कि न जाऊं। 

एक बार फिर से कमरे का पंखा बंद हो गया। भगवान जी की आरती और अगरबत्ती करनी थी। पूजा के बाद वह मेरे हाथों पर पांच किशमिश रखी औऱ बोली माथे चढ़ाकर खा जाओ। कमरे का पंखा अभी तक बंद था। वह गैस पर भगौना चढ़ायी थी चाय बनाने के लिए। उधर चाय उबल रही थी और इधर मैडम रामदेव का योगा कर रही थीं। उसका एक पैर मेरे सिर के ऊपर से गुजरता तो दूसरा मेरे थोबड़े के ठीक सामने तना रहता। चाय भी फुर्सत में उबल रही थी। 

योगा पूरा हो चुका था। चाय छानकर कप में रखी जा चुकी थी। वह आंखों में काजल लगा रही थी। उसने एक बार अपने बालों को संवारा..ठीक से नहीं संवरे..तीन –चार बार की कोशिशों के बाद उसके मनमुताबिक बाल संवर गए। वह चेहरे पर क्रीम लगाई फिर एक और क्रीम लगाई। हाथ में घड़ी पहनी। इसके बाद चाय पीने बैठ गई। 

दीदू..मुझे कोचिंग जाना चाहिए कि नहीं जाना चाहिए?
मर्जी तुम्हारी..नहीं जाने की कोई खास वजह है क्या।
नींद आ रही है। लेकिन फिर भी जाती हूं।
सब कुछ कंपलीट हो गया था। वह टेबल से परफ्यूम की शीशी उठाई और साथ ही डर्मी कूल, नवरत्न तेल और आंवला जूस का डिब्बा जमीन पर गिरा दी। कमरा स्पिंज की महज से भर गया था..वह बैग में दो –चार किताबें रखी और मुझे टाटा की स्टाइल में हाथ दिखाते हुए कमरे से खिसक गई।
शांति..शांति..शांति

गुरुवार, 10 मार्च 2016

हॉस्टल की लड़कियां !



वह दो कमरों के बीच गैलरी में जमीन पर सोया था। टेबल फैन जमीन पर रखा हुआ था उसके सिर के ठीक पीछे। यदि हाथ-पैर की तरह सिर भी मारा जा सकता तो अब तक वह फैन उसका तकिया बन चुका होता। पंखे के बगल में गुलाबी रंग की बोतल में पानी भरकर रखा था। लुसेंट की किताब खुली पड़ी थी। यह बात सिर्फ उसे ही पता थी कि वह विज्ञान पढ़ते हुए सो गया था या फिर राजनीति शास्त्र या भूगोल।

किराए का वह घर दो गर्ल्स हॉस्टलों के बीच था, जिसमें वह रहता था। ऐसी जगहों पर किराए का कमरा मिलने पर लड़के अक्सर अपने को भाग्यशाली समझा करते थे। पहला हॉस्टल उस घर की गेट से दिखता था जबकि दूसरा घर के पीछे की छत से सटा हुआ था।

छत पर गैलरी में वह चादर तानकर सोया हुआ था। चादर की बाहर की दुनिया में सूरज ने रौशनी बिखेर दी थी। चिड़ियां दाने की तलाश में उसके छत पर चहलकदमी कर रही थीं। थोड़ी देर में वह उठ गया। बच्चों की तरह आंख मलते हुए उसने अपनी तरह की अंगड़ाई ली और उठकर चादर समेटने लगा। उसने पूरे बिस्तर को समेटा और चटाई सहित मोड़कर दीवार के किनारे लगा दिया। गुलाबी बोतल से वह पानी गटका और लुसेंट की किताब लेकर कहीं अदृश्य हो गया।

दोपहर में हॉस्टल की छत पर लड़कियों के कपड़े लटक रहे थे। सड़क से गुजरने वाले लोग उन कपड़ों को कुछ यूं देख रहे थे मानो इनकी नीलामी होने वाली हो। छत पर रखी सिंटेक्स की चार टंकियां ओवरफ्लो हो रही थी। पानी छत पर गिर रहा था और उसपर सूखी काई खुद को तरोताजा महसूस कर रही थी। उस हॉस्टल की एक लड़की दुपट्टे से सिर ढक कर तुलसी को दीया दिखा रही थी इसके बाद उसने अर्घ्य भी दिया।

उसके बिस्तर दीवार के किनारे ही पड़े दिख रहे थे। वह मोड़े गए बिस्तर के ऊपर बैठा था और अपने घुटनों पर थाली रखकर दोपहर का भोजन कर रहा था।

वह लड़की अर्घ्य देकर छत से नीचे उतरी और दूसरी लड़की से बोली- बिना घर वाले भैया जी छत पर बैठकर खाना खा रहे हैं। दूसरी लड़की खिलखिलाते हुए छत पर उसे देखने के लिए भागी।
शाम ढल गई थी। सूरज पलाश के पेड़ों के बीच से गुजरते हुए अंधेरा छोड़ गया था। उसके छत पर गैलरी में पीली रोशनी वाला एक बल्ब लटक रहा था। टेबल फैन जमीन पर हनहना रहा था। गुलाबी रंग की पानी की बोतल सीन से गायब दिखी। बिस्तर सुबह की तरह बिछे हुए थे। वह बैठकर पढ़ रहा था। उसके हाथ में एक नोटबुक थी।

वह स्पोर्ट्स का हॉफ टी-शर्ट और पैंट पहना था। पढ़ाई से ज्यादा वह मच्छरों को मारने में मेहनत कर रहा था। हॉस्टल की छत पर म्यूजिक की पढ़ाई करने वाली एक लड़की तबला बजाने का अभ्यास कर रही थी। सीन में तबले की धुन पर ही वह अपने हाथों से अपने शरीर को पीटते दिखाई दे रहा था। वह मच्छर मार रहा था।

रात के नौ बज चुके थे। वह पढ़ाई में लीन हो गया था। ठंडी हवा आलस के साथ बह रही थी। हॉस्टल की लड़कियां खाना खाकर छत पर टहलने के लिए आ गई थीं। ज्यादातर लड़कियां छत पर टहल-टहल कर फोन पर बातें कर रही थीं जबकि कुछ लड़कियों को उनके ब्वॉयफ्रेंड ने कब कौन सा तोहफा दिया था इसका हिसाब लगा रही थीं।

छत पर वैसे ही कोलाहल था जैसे चिड़ियों का झुंड दाना चुगते हुए करता है। उसकी निगाह लड़कियों की तरफ थी। इतनी सारी लड़कियों में से वो जाने कौन सी लड़की को देख रहा था या एक साथ सभी को देख रहा था। हवा में उसके नोटबुक का पन्ना फड़फड़ाता हुआ आखिरी पेज पर पहुंच गया था। वह होश में नहीं था। हॉस्टल की लड़कियां मिनी स्कर्ट्स और शार्ट्स में थीं। वह उन्हें बर्दाश्त करने की हद तक देख रहा था। वह कभी अपना फोन देखता तो कभी उन लड़कियों को। 

अचानक वह तेजी से अपना गर्दन झटका और आंखों को मसला। जैसे नींद से जाग गया हो। वह अपनी नोटबुक लेकर उठा, गैलरी की पीली रोशनी को बुझाया और फिर कहीं अदृश्य हो गया।