रविवार, 2 अप्रैल 2017

ओह्ह चांद.....



-सुनो..कहां हो अभी
रूम में हूं..क्यों क्या हुआ?
-कमरे की खिड़की खोलो..या फिर छत पे आकर देखो चांद निकला है
रोज निकलता है..नया क्या है इसमें?
-नहीं..आज कुछ खास है..तुम देखो..जब भी चांद निकले तुम देख लिया करो
हां बाबा..मुझे याद रहता है...मैं चांद नहीं देखूंगा तो तुम जान ले लोगी मेरी..वैसे तुम्हारे कहने से पहले ही मैंने देख लिया था।
-हां..अच्छा किया तुमने...जब भी चांद निकले देख लिया करो..क्यों कि मुझे पसंद है चांद देखना...तुम पास होते तो हम साथ बैठकर चांद देखते और बातें करते।
पगली हो तुम
-हां जो भी हूं...और मैं रहूं या ना रहूं...जब भी चांद निकले देख लेना
(वह छत पर बैठी हुई चाय की चुस्की लेते हुए यह सोच रही थी वह नहीं है तो चांद क्यों निकलता है)

जी आंटी....



अच्छा बेटा जी..तो आप पतंजलि के शैंपू से हेयर वॉश करती हो
-जी आंटी
लेकिन इसपे तो मिल्क प्रोटीन लिखा है..मिल्क वही न जिसका मतलब दूध होता है
-जी
तो ये बताओ बेटा..इस शैंपू में अगर दूध मिला है तो ये मेरे जैसे लंबे बालों को तो लिसलिसा कर देगा न
-नहीं आंटी, ये बालों को लिसलिसा नहीं करेगा।
अच्छा बताओ तो हम भी ले लें इस शैंपू को
-जी अगर आपका मन हो तो ले लीजिए
वो क्या है न कि तुम्हारे अंकल को मेरे लंबे, घुघराले बाल ज्यादा पसंद हैं..कहीं मेरे बाल टूटने लगे तो वो मुझसे खिसिया जाएंगे
-अगर आपके बाल नहीं टूट रहे तो शैंपू बदलने की जरूरत ही नहीं है..जो लगाती हैं वही लगाइये फिर तो
नहीं बेटा..एक ही शैंपू लगाते-लगाते ऊब गई हूं...बड़ा नाम सुना है पतंजलि का..सोच रही हूं खरीद ही लूं।
-जी आंटी..जरूर खरीद लीजिए फिर तो।

उस अनजान लड़के ने जब 'अबे' कहा....



अबे पैर जमीन पर सीधे रख अपना..ऐसे टेक लिया है तूने जैसे तेरा पैर सहजन का पेड़ हो और दबाते ही चरक जाएगा। मैंने पीछे पलट कर देखा..अगल-बगल देखा..कोई नहीं था। फिर वह यह बातें बोल किसको रहा था..शायद उसे पता चल गया था कि मैं कनफ्यूज हो रही हूं। वह मेरे पास आया और बोला..मैडम थोड़ा लटका करो आप। हाइट कम है आपकी इसलिए स्कूटी चलाने में दिक्कत आ रही है आपको। मैंने मन ही मन सोचा..हाय रे कितना फ्रैंक है ये लड़का..अजनबी लड़की से बात भी किया तो अबे..कहकर।
मैं सुबह-सुबह उस ग्राउंड में अपनी स्कूटी लेकर गयी थी और ठीक से चलाने की प्रैक्टिस कर रही थी। जैसे ही मैं ग्राउंड में पहुंची एक कोने में एक लड़की अपनी स्कूटी लेकर गिर गई थी। वह उसी लड़के की भांजी थी। मैंने जब लड़के से कहा- जाओ..उठाओ उसे...तो वह तुरंत बोला..कोई और होता तो उठा देता...वो भांजी है मेरी...गिरकर खुद नहीं उठेगी तो चलाना कैसे सीखेगी। डॉयलॉग तो दमदार था। मुझे एक साल पहले ऐसा गुरू मिला होता तो मैं भी अब तक अपनी स्कूटी उड़ा रही होती।
लड़का बात करने में काफी दिलचस्पी ले रहा था...बोला मैडम..मैं तो सबकी मदद करता हूं..आपको भी अच्छे से सीखा दूंगा। मैं कुछ नहीं बोली और खुद से ही सीखने की कोशिश करने लगी। वह गोल-गोल घूमकर मुझे देख रहा था जैसे कल से वह मेरा गुरू द्रोणाचार्य बनने वाला हो।
जब मैं वापस आने लगी तो वह बोला-कल भी आना...एक दिन में कोई चीज नहीं सीखी जाती। मुझे तो अगले दिन भी जाना ही था लेकिन मैं उसे बिना कुछ कहे वापस लौट आयी।
अगली सुबह जब मैं वहां पहुंची तो ग्राउंड में कोई भी नहीं था। मैं अपने काम में जुट गई। थोड़ी ही देर बाद तेज हॉर्न बजाते हुए अपनी भांजी को स्कूटी पर पीछे बिठाए वह लड़का आकर मेरे पास रूका और बोला-मैडम, आज तो देर हो गई अपन को..नींद नहीं खुली।
उसकी भांजी स्कूटी चलाते हुए कहीं दूर निकल गई थी...वह मेरे पास आया और बोला ऐसे नहीं ऐसे चलाइये। फिर कुछ सोचकर बोला-आप पंडित हैं ना। मतलब..आप कास्ट से पंडित हैं न। मैंने कहा-नहीं।
ओह---आपने हाथ में यह कड़ा पहन रखा है तो मैंने सोचा कि आप पंडित हैं।
उफ्फ अजीब लोग हैं...कुछ पहनने-ओढ़ने भर से जाति का भी पता लगा लेते हैं।
लड़का बोला-मैडम आप कार सीखना चाहेंगी?
- सोचा तो है..भविष्य में जरूर सीखूंगी।
अरे भविष्य में क्यों..मेरे पास कार है आप कहें तो कल से ही सीखाना शुरू कर दें आपको।
-नहीं सर जी...मुझे अभी जरूरत नहीं है।
मैडम आप बुरा न मानें तो एक बात बोलूं?
-जी बोलिए
आप ना मुझसे दोस्ती कर लीजिए..फायदे में रहेंगी।
-कैसा फायदा
वो आप नहीं समझेंगी।
उफ्फ लड़कों की एक ही कैटेगरी होती है...दुनियाभर के लड़कों में कोई विषमताएं नहीं होती हैं।
खैर, मैं हॉस्टल वापस चली आयी..अगली सुबह जब फिर से उस ग्राउंड में पहुंची तो उस लड़के की भांजी स्कूटी लेकर गिरी पड़ी थी और वह इयरफोन पर गाने सुन रहा था। अपनी भांजी को उठाने की बजाय वह मेरे पास आया और बोला- मैडम..मैडम..आप व्हाट्सएप पर हैं क्या?
-नहीं
नहीं..मैं इस बात को मान ही नहीं सकता।
-क्यों नहीं मान सकते..व्हाट्सएप पर होना जरूरी होता है
नहीं जरूरी तो नहीं होता है लेकिन.......
मैंने उसे गौर से देखा..दो दिन तक वह ट्राउजर और टीशर्ट पहनकर आया था...लेकिन आज जींस और शर्ट में था...परफ्यूम इतना हैवी था कि उसके पीछे चलने वाले लोग भी चार घंटे तक महकते रहें। चेहरे पर पावडर लगा था..जैसे घर से निकलते वक्त किसी ने जबरदस्ती लगा दिया हो। वह मेरा कॉनटैक्ट नंबर लेने की जिद कर रहा था।
-तो आप यह चाहते हैं कि मैं अपने लिए कोई और ग्राउंड तलाश करूं
अरे नहीं मैडम..आप बेफिक्र होकर आओ..मैं अब कुछ नहीं कहूंगा।
अगले दिन से वह लड़का बगल वाले ग्राउंड में अपनी भांजी को लेकर जाने लगा।

शनिवार, 25 मार्च 2017

'नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति' जनहित में जारी!



स्वस्थ मन और स्वस्थ तन जीवन की सबसे बड़ी जरूरत और सबसे बड़ी पूंजी है। किसी भी देश के संपूर्ण विकास के लिए यह आवश्यक है कि वहां की जनता स्वस्थ हो। स्वस्थ भारत का सपना साकार करने के लिए सरकार अथक प्रयास कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले योग को लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने की पहल की।

पंद्रह साल बाद नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति तैयार की गई है। पिछले सप्ताह इसे कैबिनेट से मंजूरी मिल गई। इसमें प्रयास किया गया है कि सभी को निश्चित और बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिले। दस-पंद्रह साल बाद सरकार ने लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी उठायी है इससे पहले सरकार हेल्थ केयर की जिम्मेदारी नहीं ले रही थी। नई स्वास्थ्य नीति में कुछ सुविधाएं बढ़ा दी गई हैं।
इससे पहले वर्ष 2002 में स्वास्थ्य नीति बनाई गई थी। इसमें सिक केयर पॉलिसी के जरिए बीमारी के उपचार पर जोर दिया गया था। लेकिन नई स्वास्थ्य नीति में सिक केयर से हटकर वेलनेस पर ध्यान दिया गया है। अर्थात् रोग से निरोग की ओर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। इस कड़ी में एक स्वस्थ नागरिक अभियान की परिकल्पना की गई है। जिसमें लोग ऐसी लाइफ स्टाइल जिएं की बीमार ना पड़ें।

जनवरी 2015 में स्वास्थ्य नीति का पहला ड्राफ्ट आया था। जिसमें स्वास्थ्य क्षेत्र में होने वाले खर्च का अनुमान लिया गया था और जनस्वास्थ्य की बात कही गई थी। खर्च का अनुमान करना बहुत जरूरी है क्योंकि जब तक सरकार इस पर खर्च नहीं करेगी तो ना ही ये इंस्टीट्यूशन बन के खड़े हो पाएंगे और ना ही गुणवत्तापूर्ण और कम कीमतों पर स्वास्थ्य सेवाएं संभव हो पाएंगी।

ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी अच्छे डॉक्टरों की कमी बनी हुई है। एक डॉक्टर को सोलह से इक्यासी मरीजों का इलाज करना पड़ता है। इसके लिए भी सरकार की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं। मेडिकल कॉलेजों में अब प्रतिवर्ष चालीस हजार की बजाय पैंसठ हजार चिकित्सकों का दाखिला हो रहा है। नीति में यह भी रखा गया है कि जिला अस्पतालों को मेडिकल कॉलेज में अपग्रेड किया जाएगा। इसका फायदा यह होगा कि जहां अभी तक मेडिकल कॉलेज नहीं थे वहां कालेज स्थापित होंगे और यह संभावना है कि वहां से जो चिकित्सक निकलेंगे वे ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी सेवाएं देंगे। 2025 तक की जो परिकल्पना है वह वास्तविक है कि सरकार सभी ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छे चिकित्सकों की सुविधा सुनिश्चित कर देगी।

आजकल की जो गंभीर बीमारियां हैं उनके इलाज के लिए प्राइवेट अस्पतालों का सहारा लेना पड़ता है। प्राइवेट अस्पतालों ने अपना एक मानक बना रखा है और प्राइवेट अस्पताल इलाज के लिए आपसे कोई भी खर्च मांग सकता है। प्राइवेट अस्पतालों में खर्च काफी ज्यादा आता है। उस खर्च के बोझ से दबकर लोग अपनी जमीन जायदाद बेच देते हैं। 

नई स्वास्थ्य नीति में नीजि क्षेत्र को जोड़ने की बात कही गई है। जिन क्षेत्रों में सरकारी तंत्र में कमियां हैं वहां पर प्राइवेट सेक्टर और एनजीओ सेक्टर की भागीदारी बढ़ायी जाएगी स्वास्थ्य नीति के तहत अगले पाँच वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 प्रतिशत जनस्वास्थ्य पर खर्च किया जाएगा जो मौजूदा 1 प्रतिशत के स्तर से अधिक है।  देखना यह है कि नई स्वास्थ्य नीति लोगों के लिए कितना कारगर साबित होती है।