अबे पैर जमीन पर सीधे रख अपना..ऐसे टेक लिया है
तूने जैसे तेरा पैर सहजन का पेड़ हो और दबाते ही चरक जाएगा। मैंने पीछे पलट कर
देखा..अगल-बगल देखा..कोई नहीं था। फिर वह यह बातें बोल किसको रहा था..शायद उसे पता
चल गया था कि मैं कनफ्यूज हो रही हूं। वह मेरे पास आया और बोला..मैडम थोड़ा लटका
करो आप। हाइट कम है आपकी इसलिए स्कूटी चलाने में दिक्कत आ रही है आपको। मैंने मन
ही मन सोचा..हाय रे कितना फ्रैंक है ये लड़का..अजनबी लड़की से बात भी किया तो
अबे..कहकर।
मैं सुबह-सुबह उस ग्राउंड में अपनी स्कूटी लेकर
गयी थी और ठीक से चलाने की प्रैक्टिस कर रही थी। जैसे ही मैं ग्राउंड में पहुंची
एक कोने में एक लड़की अपनी स्कूटी लेकर गिर गई थी। वह उसी लड़के की भांजी थी।
मैंने जब लड़के से कहा- जाओ..उठाओ उसे...तो वह तुरंत बोला..कोई और होता तो उठा
देता...वो भांजी है मेरी...गिरकर खुद नहीं उठेगी तो चलाना कैसे सीखेगी। डॉयलॉग तो
दमदार था। मुझे एक साल पहले ऐसा गुरू मिला होता तो मैं भी अब तक अपनी स्कूटी उड़ा
रही होती।
लड़का बात करने में काफी दिलचस्पी ले रहा
था...बोला मैडम..मैं तो सबकी मदद करता हूं..आपको भी अच्छे से सीखा दूंगा। मैं कुछ
नहीं बोली और खुद से ही सीखने की कोशिश करने लगी। वह गोल-गोल घूमकर मुझे देख रहा
था जैसे कल से वह मेरा गुरू द्रोणाचार्य बनने वाला हो।
जब मैं वापस आने लगी तो वह बोला-कल भी आना...एक
दिन में कोई चीज नहीं सीखी जाती। मुझे तो अगले दिन भी जाना ही था लेकिन मैं उसे
बिना कुछ कहे वापस लौट आयी।
अगली सुबह जब मैं वहां पहुंची तो ग्राउंड में
कोई भी नहीं था। मैं अपने काम में जुट गई। थोड़ी ही देर बाद तेज हॉर्न बजाते हुए
अपनी भांजी को स्कूटी पर पीछे बिठाए वह लड़का आकर मेरे पास रूका और बोला-मैडम, आज
तो देर हो गई अपन को..नींद नहीं खुली।
उसकी भांजी स्कूटी चलाते हुए कहीं दूर निकल गई
थी...वह मेरे पास आया और बोला ऐसे नहीं ऐसे चलाइये। फिर कुछ सोचकर बोला-आप पंडित
हैं ना। मतलब..आप कास्ट से पंडित हैं न। मैंने कहा-नहीं।
ओह---आपने हाथ में यह कड़ा पहन रखा है तो मैंने
सोचा कि आप पंडित हैं।
उफ्फ अजीब लोग हैं...कुछ पहनने-ओढ़ने भर से जाति
का भी पता लगा लेते हैं।
लड़का बोला-मैडम आप कार सीखना चाहेंगी?
- सोचा तो है..भविष्य में जरूर सीखूंगी।
अरे भविष्य में क्यों..मेरे पास कार है आप कहें
तो कल से ही सीखाना शुरू कर दें आपको।
-नहीं सर जी...मुझे अभी जरूरत नहीं है।
मैडम आप बुरा न मानें तो एक बात बोलूं?
-जी बोलिए
आप ना मुझसे दोस्ती कर लीजिए..फायदे में रहेंगी।
-कैसा फायदा
वो आप नहीं समझेंगी।
उफ्फ लड़कों की एक ही कैटेगरी होती है...दुनियाभर
के लड़कों में कोई विषमताएं नहीं होती हैं।
खैर, मैं हॉस्टल वापस चली आयी..अगली सुबह जब फिर
से उस ग्राउंड में पहुंची तो उस लड़के की भांजी स्कूटी लेकर गिरी पड़ी थी और वह
इयरफोन पर गाने सुन रहा था। अपनी भांजी को उठाने की बजाय वह मेरे पास आया और बोला-
मैडम..मैडम..आप व्हाट्सएप पर हैं क्या?
-नहीं
नहीं..मैं इस बात को मान ही नहीं सकता।
-क्यों नहीं मान सकते..व्हाट्सएप पर होना जरूरी
होता है
नहीं जरूरी तो नहीं होता है लेकिन.......
मैंने उसे गौर से देखा..दो दिन तक वह ट्राउजर और
टीशर्ट पहनकर आया था...लेकिन आज जींस और शर्ट में था...परफ्यूम इतना हैवी था कि
उसके पीछे चलने वाले लोग भी चार घंटे तक महकते रहें। चेहरे पर पावडर लगा था..जैसे
घर से निकलते वक्त किसी ने जबरदस्ती लगा दिया हो। वह मेरा कॉनटैक्ट नंबर लेने
की जिद कर रहा था।
-तो आप यह चाहते हैं कि मैं अपने लिए कोई और
ग्राउंड तलाश करूं
अरे नहीं मैडम..आप बेफिक्र होकर आओ..मैं अब कुछ
नहीं कहूंगा।
अगले दिन से वह लड़का बगल वाले ग्राउंड में अपनी
भांजी को लेकर जाने लगा।
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