आठ
मार्च यानि महिला दिवस, महिलाओं का अपना दिन, उनकी आजादी का दिन। इस दिन विश्वभर की महिलाओं को विभिन्न क्षेत्रों में उनके विशेष योगदान
के लिए सम्मानित कर उन्हें गौरव प्रदान किया जाता है। महिला हमेशा से निर्माण की जननी
रही है। उसने सिर्फ परिवार का ही निर्माण नहीं किया है बल्कि देश की आजादी में हिस्सा
लेकर अपनी काबिलियत को दिखाया है लेकिन अपनी खुद
की आजादी गंवा बैठी।
·ffरत में महिलाओं की स्थिति अन्य देशों की अपेक्षा बेहद दयनीय है। कहा जाता है कि अगर एक महिला शिक्षित हो जाए तो
एक शिक्षित परिवार एवं समाज का निर्माण करती है लेकिन देखा जाए तो यह बात उसके खुद
के लिए मिथक साबित हुई है, क्योंकि जिस परिवार को उसने आगे बढ़ाया, जिस समाज को शिक्षित
कर उसे विकसित किया, आज उसी समाज ने महिला को तुच्छ समझ उसके पैरों में बेड़ियां डाल
दी।
अगर लोगों की मानें तो महिलाओं के प्रति व्यवहार को लेकर समाज में दो प्रकार का
वर्ग है। एक वह जिसने महिला को रसोई में व्यंजन
पकाने व परिवार बढ़ाने की मशीन मान ली, जिससे महिला रसोई से आने वाली गंध में ही सिमट
कर रह गई। दूसरा वर्ग जिसने दुनिया देखी, सोच बदली, और महिला को घर से बाहर कदम बढ़ाने
की आजादी दी। इंदिरा गांधी, मदर टेरेसा, कल्पना चावला, सरोजिनी नायडू जैसी वीरांगनाएं एक ऐसे ही परिवार का उदाहरण हैं, जिन्हें घर से तो आजादी मिली
लेकिन इस समाज ने, देश ने इन्हें आसानी से स्वीकार नहीं किया।
आज
जिस तरह से महिला ही महिला की दुश्मन बन बैठी है, यह महिला सशक्तिकरण के लिए शुभ संकेत नहीं है। यह महिलाओं में फूट जैसी बात है।
जो इन्हें गर्त में ले जा रहा है। जरुरत है तो महिलाओं को अपने में एकता लाने की, एकजुट
होने की, और अपने प्रति पुरुषों और समाज की दृष्टि बदलने की। वरना महिला, महिला दिवस
का एक विषय बनकर रह जाएगी। पुरुष उनके लिए मंच सजाएंगे, ऊंचे ओहदे पर बैठे पुरुष महिलाओं
से महिला की दयनीय स्थिति पर ही भाषण दिलवाएंगे और अगली सुबह महिलाओं
की फिर से दुर्गति करेंगे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें