गुरुवार, 11 सितंबर 2014

घर से दूर..दिमाग का दही...नमक कम



घर से दूर एक ऐसे शहर में किराए का कमरा लेकर अकेले रहना, जहां से अपन के सारे दोस्त पलायन कर गए हों, जिंदगी किराए के कमरे और ऑफिस में कैद हो कर रह गई हो, तब कभी-कभी बेवजह की झुंझलाहट होती है। हम नकारात्मकता की नदी में गिर जाते हैं। ना ही ऑफिस का काम पसंद आता है और ना ही अपना बनाया खाना। पागल कर देने की हद तक दिमाग में वो सारी बातें आती हैं जो कभी भी हमें आगरा, रांची या बनारस के पांडेयपुर भेज सकती हैं। 

तब हम अपनी जिंदगी से सारी आह निकालने के लिए अहा जिंदगी जैसी मैगजीन में सकारात्मक बातें पढ़ते हैं। मन कुछ ठीक होने पर सोचते हैं चलो...आज जिंदगी जीते हैं....बढ़िया खाना बनाते हैं..मन लगाकर....जब खाना और बनाना खुद ही है...तो आज कुछ ढंग का पकाते हैं....यही सोचते हुए हम जेब से पैसे निकालते हैं और दुकान से पनीर ले आते हैं....इसके बाद-

-दो-चार प्याज, लहसुन, अदरक छीलकर बारीक काटते हैं, फिर उसे गिलास में रखकर बेलन के कूचकर उसका पेस्ट बनाते हैं (बता दें कि फिलहाल घर में मिक्सर या सील-बट्टा जैसी कोई व्यवस्था नहीं है)
इस दरम्यान बिजली चली जाती है और प्याज-लहसुन का पेस्ट बनाते-बनाते हम पसीने से इतने तर-बतर हो जाते हैं मानो किसी ढाबे पर कोयले की आंच पर खाना पका रहे हों।
-कढाई में तेल डालते हैं....पनीर को हल्का भूरा होने तक फ्राई करते हैं...फिर पनीर को प्लेट में निकालकर प्याज-लहसुन आदि का पेस्ट धनिया पावडर हल्दी वगैरह कढाई में डालकर धीमी आंच पर पूरे मसाले को भूनते हैं।
- टमाटर या पालक का पेस्ट डालते हैं..सब अच्छे से पक जाने पर उसमें पनीर डाल देते हैं
इतना करने में गर्मी के मारे हम पसीने से भीग जाते हैं...मानो किसी ने नदी में धकेल कर मुझे बाहर निकाल दिया हो।
- हम आटा गूथकर दो-चार रोटियां सेंकते हैं.....
थोड़ी ही देर में खाना बनकर तैयार।

जब सब कुछ बनकर तैयार हो जाता है तो सोचती हूं क्यों न नहा कर ही खाना खाऊं......बाथरुम में बतौर बाथरूम सिंगर गाते हुए आधे घंटे बाद नहाकर निकलती हूं। और पालथी मारकर जमीन पर खाने बैठती हूं
उफ्फ....पनीर में नमक ही नहीं...एक ही बार में मुंह फीका सा हो गया।
हाय राम....सारी मेहनत बेकार....किसी और को खिलाती तो दस गालियां देता।
मैं लौटकर आधे घंटे पहले कि दुनिया में जाती हूं....तो पता लगता है कि पनीर बनाते वक्त तो मैं किसी से फोन पर भी बात नहीं कर रही थी...कुछ सोच भी नहीं रही थी...फिर नमक डालना कैसे भूल गई।
खैर...पनीर में नमक मिलाई और फिर खाने बैठ गई। लेकिन स्वाद खतम हो जाता है ना...जब हम खाने में ऊपर से नमक छिड़क कर खाते हैं।
 
*हमारे यहां जब खेतों में काम करने वाले मजदूरों को खाना खिलाया जाता, तब वे नमक मांगते..यह कहते हुए कि सब्जी में नमक या तो डाला नहीं गया या कम है। लेकिन उसमें से एक मजदूर कभी नमक नहीं लेता...कम रहने पर भी। वह कहता....हम खाने में ऊपर से नमक डालकर नहीं खाते....यह खाने का स्वाद बिगाड़ देता है। पकाते समय ही नमक ठीक से डाला करो।

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