रूममेट से किसी बात की लेकर बड़ी वाली बहस हो गई और उसने मुंह फुला लिया।
थोड़ी ही देर में कमरे का तापमान बदल गया। अब कमरे में रहना ऐसे लगने लगा जैसे
भूसे के घर में बैठी हूं..दम घुट रहा था। पत्नी से लड़ाई करने के बाद जिस तरह पति
थोड़ी देर के लिए घर से बाहर रहना चाहता है वैसे ही मैं भी हॉस्टल के कमरे से बाहर
निकलना चाह रही थी।
दोपहर के तीन बज रहे थे। मैंने एक किताब उठायी साथ में एक बोतल पानी और एक
चादर और हॉस्टल की छत पर चली गई। छत पर खड़ी दीवार के पीछ धूप सिमट चुकी थी। बैठने
के अलावा पसरने भर की छाया भी वहां मौजूद थी। मैंने वहीं अपनी चादर बिछायी और
लेटकर अनुराधा बेनीवाल की किताब आजादी मेरा ब्रांड पढ़ने लगी।
इस दौरान अचानक ही मेरी आंखें बादलों पर पड़ी और मैं डर के मारे उठकर बैठ गई।
काले बादल चिमनी के धुएं की तरह उमड़-घुमड़ रहे थे। उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था
जैसे थोड़ी ही देर में ये मेरे ऊपर गिर पड़ेंगे। बादल चल रहे थे और पल-पल भर में
काले से सफेद और फिर नीले हो जा रहे थे।
बादलों को थोड़ी देर निहारने के बाद मेरा डर यह डर खत्म हो गया कि मैं इनके
नीचे दबने वाली नहीं हूं। मुझे इनसे डरने की बजाय क्षण भर में बन और बिगड़ रहे इन
बादलों के रंगों को लेटकर देखना चाहिए। मैं किताब किनारे रखी और चादर पर दोबारा
लेट गई। इस बार बादल मुझे सुंदर दिखने लगे। थोड़ी ही देर बाद जाने क्या हुआ कि फिर
से धूप निकल आयी और हवा चलने लगी। हवा तेज थी इसकी वजह से छत पर कोने में रखी बालू
बिखरकर मेरे बालों और चादर पर आ पड़ी। अब मुझे उठकर बैठना पड़ा।
मैंने किताब उठाई और फिर से पढ़ने लगी। आजादी मेरा ब्रांड पढ़ते हुए मैं भारत
में कहां थी, मैं तो लेखिका के साथ ही विदेशों का भ्रमण कर रही थी। उस वक्त में
किताब में लिखी विदेश के किसी शहर की कला और संगीत के बारे में पढ़ रही थी कि छत
पर किसी के आने की आहट सुनाई दी।
मैंने पलट कर देखा तो एक लड़की छत पर चादर बिछाकर तबला बजाने का रियाज करने जा
रही थी। इधर मैं छत पर लेटी हुई विदेश की कला और संस्कृति के बारे में पढ़ रही थी
कि किसी भीनी-भीनी खुशबू की तरह तबले की आवाज कानों में पड़ने लगी। वाह...पल भर
में ही सबकुछ अद्भुत सा हो गया। मैं तो कहीं खो ही गई। इतने सुख और शांति की आशा
करके तो मैं नहीं आयी थी न छत पर।
आसमान में काले-घुमड़ते बादल, बादलों के नीचे छत पर लेटी लड़की, लड़की की हाथ
में आजादी मेरा ब्रांड जैसी किताब, सिरहाने से आती तबले की आवाज, हवा में उड़ते
खुले बाल। वाकई..ये सुबह तो नहीं थी..लेकिन सबकुछ सुबह सा क्यों महसूस हो रहा था।
मन ऐसा ताजा हो गया मानों मैंने थोड़ी देर पहले मेडिटेशन किया हो। सबकुछ बहुत ही
सुहाना था। आज अपनी शाम बन गई।
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