बुधवार, 22 मार्च 2017

...ताकि भरोसा बना रहे!



मैं अपनी एक सहेली को ऑटो पकड़ाने के लिए सड़क किनारे खड़ी थी तभी एक छोटे कद की महिला हाथ में साइकिल पकड़े सड़क पार करते हुए दिखी। मैंने अपनी सहेली से कहा-देखो वह महिला साइकिल चला रही है..कितनी बड़ी बात है। मेरी सहेली बोली-इसमें बड़ी बात क्या है। मैंने कहा-साड़ी पहनकर साइकिल चलाना बड़ी बात है और औरत का अपने काम से कहीं साइकिल चलाकर जाना भी बड़ी बात है। इस औरत को देखकर मुझमें ऊर्जा का संचार हो रहा है।

खैर, मेरी सहेली ने फिर कोई जवाब नहीं दिया और ऑटो पकड़कर वह चली गयी। जब मैं वापस लौटने लगी तो वह महिला साइकिल हाथ में पकड़े पैदल चल रही थी। मैंने उससे पूछा कि क्या उसकी साइकिल खराब हो गई है..वह पैदल क्यों चल रही है। मेरी बात का जवाब दिए बिना ही वह बोली- गरीबों पर किसी को तरस नहीं आता और मैंने तो तरस दिखाने वाला कोई काम भी नहीं किया था। मैंने मेहनत की थी..दो महीने उनके घर में खाना बनाया था..मेरा सिर्फ खाना बनाने और बर्तन मांजने का काम था उनके घर में लेकिन उनके घर में कोई और महिला नहीं है तो मैंने होली पर उनके घर का सारा अतिरिक्त काम करवाया...उनके चिप्स-पापड़ बनवाए मैंने पूरे घर की सफाई की। फिर अचानक ना जाने क्या हुआ और एक दिन उन्होंने फोन करके मुझे आने के लिए मना कर दिया और दूसरी खाना बनाने वाली को रख लिया। आज जब मैं दो महीने के काम का पैसा लेने पहुंची तो पंद्रह दिन का पैसा पकड़ा दिया उन्होंने और बोली तुमने बस पंद्रह दिन ही काम किया है।

क्या करूं दीदी..मैं तो मर जाऊंगी अगर मेरे तीन हजार रुपए नहीं दिए उन्होंने तो। मेरा मरद गांव में रहता है..मैं यहां किराए का कमरा लेके अकेले रहती हूं..पैसा नहीं मिला तो खरचा कैसे चलेगा। मालकिन बोलती है कि दुबारा यहां दिखी तो पुलिस में शिकायत कर दूंगी। बताओ दीदी मैंने तो बस अपना पैसा मांगा था, अब मैं क्या करूं..किसको लेकर जाऊं उनके यहां कि मेरा पैसा मिल जाए..मैं यहां किसी को जानती ही नहीं। वह लगातार अपनी बात बोले जा रही थी...मेरे पास कोई शब्द नहीं था कहने को। बस इतना ही कह पायी मैं कि –बहुत गलत किया आपकी मालकिन ने।

अपनी जिस सहेली को थोड़ी देर पहले ऑटो पर बैठाया था मैंने मैं उससे यह शिकायत कर रही थी कि दो महीने हो जाते हैं और तुम मिलती नहीं हो। वह बोली क्या करें यार, मम्मी से ऑटो का किराया मांगना पड़ता है उनके पास पैसे नहीं रहते तो नहीं दे पाती हैं इसलिए मैं आ नहीं पाती। जब मैंने उससे पूछा कि उसकी मम्मी क्या करती हैं और क्या घर की हालत ठीक नहीं है तो वह बोली कि उसके पापा की डेथ हो चुकी है और घर चलाने के लिए उसकी मम्मी एक घर में खाना बनाती हैं। लेकिन वह उन लोगों की तारीफ भी कर रही थी जिनके घर में उसकी मम्मी खाना बनाती हैं। वह बता रही थी कि वो डॉक्टर अंकल औऱ आंटी बहुत अच्छे हैं। समय से मम्मी को पैसे भी दे देते हैं और कभी मम्मी को उधार की जरूरत पड़ती है तो बिना कुछ पूछे ही पैसे दे देती हैं और कपड़े तथा खाने-पीने की चीजें भी देती रहती हैं। हम लोग गरीब जरूर हैं लेकिन वे दोनों लोग इतने अच्छे इंसान हैं कि उन्हें अपना सहारा भी समझते हैं। एक विश्वास भी है, दुख-तकलीफ भी समझते हैं वे लोग और उम्मीद से कहीं बढ़कर कर देते हैं हम लोगों के लिए।

उसकी बात याद करके मैंने मन ही मन सोचा कि काश इस औरत की मालकिन कम से कम इतनी इंसानियत रखतीं कि उसे उसके मेहनत का हिसाब दे देतीं तो उस महिला का इंसानियत से भरोसा नहीं उठता।

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