विविध भारती पर प्रत्येक शुक्रवार को शाम चार बजे एक कार्यक्रम ‘विविधा’ आता है। इस कार्यक्रम को मनीषा जैन
और कमल शर्मा जी मिलकर प्रस्तुत करते हैं। मनीषा जैन जी विविध भारती की एनाउंसर
नहीं बल्कि प्रोड्यूसर हैं लेकिन जब वह विविधा प्रस्तुत करती हैं तो सुनते ही बनता
है। मनीषा जी उर्दू जुबान बोलती हैं जिन्हें सुनना सुखद लगता है। उनकी आवाज उनकी
जुबान महुए की भीनी खुशबू की तरह लगती है।
दरअसल मैं यह बताने जा रही हूं कि विविध भारती का विविधा प्रोग्राम मुझे बेहद
पसंद है। जब आप खुद सुनेंगे तो आपको भी प्यार हो जाएगा इस कार्यक्रम से। आज
शुक्रवार है और आज के कार्यक्रम में फारूख शेख साहब की एक रिकॉर्डिंग सुनायी जा
रही है। फारूख शेख साहब...नाम सुनते ही मेरा चेहरा खिल उठा। एक उम्दा शख्सियत...जिन्हें
अपना जिक्र तक सुनना पसंद नहीं और मैं यहां उनकी तारीफ में शब्द भूल जा रही।
रेडियो सुनना मुझे बचपन से ही पसंद है। मेण्डलिफ की आवर्त सारिणी रेडियो सुनने
सुनते ही याद किया था मैंने। धीमी आवाज में अगर मेरे कमरे में रेडियो न बजता तो
मैं गणित और भौतिक विज्ञान के सवाल मन से हल नहीं कर पाती थी। आज भी वही हाल है। अब
रेडियो सुनने का वैसे तो ज्यादा समय नहीं मिलता लेकिन विविधा सुनने के लिए मैं
सबकुछ छोड़ देती हूं। चाहे कहीं भी रहूं कम से कम यह कार्यक्रम सुनना मैं कभी नहीं
भूलती। जाने क्या है इस कार्यक्रम में...जिंदगी जीना सीखा जाता है या यूं कहें
मुझे ऊर्जा से भर देता है यह कार्यक्रम।
हां..तो मैं यह बता रही थी कि..आज के विविधा में फारूख शेख साहब आए थे। मेरे
लिए फारूख शेख को सुनने का मतलब अपने आप को सुनना होता है। मुझे लगता है ऐसा बहुत
सारे लोगों के साथ होता होगा। फारूख जी जमीन से जुड़े हुए इंसान है..वे कार्यक्रम
में आएं और नाटक, थिएटर, जिंदगी की बातें न हो यह संभव नहीं। उनके मुंह से दीप्ति
नवल का जिक्र सुनने को और बेकरारी बढ़ती जाती है।
वैसे तो प्रत्येक शुक्रवार को यह कार्यक्रम सुनते हुए मैं गणित के सवाल हल
किया करती हूं और वही काम आज भी करने वाली थी। लेकिन जैसे ही पता चला कि कार्यक्रम
की शुरूआत में फारूख शेख से एक बातचीत सुनवायी जाएगी..मैं सन्न रह गई..जब तक अपने
कानों पर यकीन करती तब तक फारूक शेख जी एनाउंसर को नमस्कार बोलकर कार्यक्रम की
शुरूआत भी कर चुके थे।
शाम के चार बजे धूप जाने को होती है और मैं अपने कमरे की खिड़की इसी समय खोलती
हूं। खिड़की से ठंडी हवा आ रही थी और मैं फारुख शेख को सुन रही थी। यह बताना
मुश्किल है उस वक्त मैं कहां थी...यह जताना मुश्किल है जिस आनंद की अनुभूति मैं कर
रही थी। आधे घंटे का उनका वह इंटरव्यू सुनकर जो लगा वो शायद कभी-कभी ही लगता है।
फारूख शेख को टीवी पर सुनना मुझे कभी रोमांचित नहीं किया जितना कि रेडियो पर।
विविध भारती नहीं होती तो बहुत कुछ नहीं होता..जैसे किताबें नहीं होतीं तो क्या
होता.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें