रविवार, 25 मई 2014

क्योंकि हम सबकुछ नहीं बदल सकते!




मुहल्ले के अंतिम छोर पर रहने वाली एक आंटी आजकल बेहद परेशान चल रही हैं। पास-पड़ोस के लोगों एवं रिश्तेदारों ने उन्हें तंग कर रखा है। दरअसल आंटी का बेटा नितिन 27 साल का हो गया है और अभी तक उसकी नौकरी नहीं लग पाई। नितिन दूसरे शहर रहकर पढ़ाई करता है, घर वालों से पैसे लेता है।
 
एक वक्त घर वालों को लगा कि अब लड़के को कुछ करना चाहिए। लेकिन उन्हें नितिन की मेहनत और संघर्ष को देखकर पूरा भरोसा है कि एक दिन वह अच्छी नौकरी का हकदार होगा। तब तक बेटे को परेशान ना किया जाए नहीं तो उसपर गलत असर पड़ेगा।

आंटी जब भी दो-चार औऱतों के बीच उठती बैठती है तो कोई ना कोई यह पूछ ही लेता है कि अरे उम्र हो गई है बेटे की, कब नौकरी करेगा, कब शादी होगी। कहीं ऐसा तो नहीं किसी लड़की से शादी करले और तुम लोगों को पता भी ना चले। आंटी चाहते हुए भी इन औरतों की बातों को स्मार्टली हैंडल नहीं कर पाती हैं और घर आकर अंकल के आगे रोने लगती हैं कि उनके बेटे को लोग ऐसे-ऐसे कह रहे हैं जैसे नौकरी ना मिलना इज्जत गंवा देने के बराबर हो। निजी जीवन में इस तरह की ताकझांक आंटी को बिल्कुल नहीं पसंद है ना ही वो दूसरों के ऐसे मामलों पर कभी टिप्पणी करती हैं फिर भी अगर उन्हें कोई ऐसी बातें कहता है तो जल्दी ही परेशान हो जाती हैं।
देखा जाए तो यह एक छोटी सी बात है। हर घरों में होता है ऐसा। बच्चे को नौकरी नहीं मिलती। और मां-बाप परेशान रहते हैं। लेकिन आसपास के लोग एवं रिश्तेदार इस परेशानी को पर्वत की तरह बढ़ा देते हैं कि ना चाहते हुए भी इंसान बच्चे को कोसना शुरू कर दे।

पाओलो कोएलो ने अपनी किताब अल्केमिस्ट में लिखा है कि लोगों को अपने बारे में भले ही कुछ ना पता हो लेकिन उन्हें ये जरूर पता होता है कि दूसरों को अपनी जिंदगी कैसे जीना चाहिए।
 हमारे जीवन में समाज में मौजूद ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा है जिनकी ताकझांक की आदत से हमें दिक्कतों का सामना करना पड़ता है लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते। संसार ऐसे ही लोगों से भरा पड़ा है। हमें ऐसों के बीच ही उठना-बैठना, खाना-पीना, सुख-दुख मनाना, औऱ सांस लेना है। और लोगों को अपने ऊपर हावी होने दिए बिना ही उनके  बातों का उदाहरण सहित जवाब देना ढूढ़ना होगा। क्यों कि जीना तो हमें ऐसे ही लोगों और समाज के बीच है।                                    

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