शनिवार, 31 मई 2014

छोटी मगर बड़ी बात..




पिछले दिनों एक मित्र अपनी बीवी के साथ एक शादी समारोह में शरीक़ होने गए। वहां अलग-अलग स्टॉलों पर विभिन्न किस्म के व्यंजन सजाए गए थे। खाने वालों की जबरदस्त भीड़ थी। खाने-पीने के बाद वापस आते समय वे कार्यक्रम के होस्ट से मिले और उन्हें शुक्रिया अदा करते हुए घर वापसी की विदाई ली। होस्ट ने उनसे आइसक्रीम खाने का निवेदन किया तब मित्र ने बताया कि वे आइसक्रीम खा चुके हैं। विदा लेकर चलते हुए दोस्त की बीवी ने होस्ट से कहा- भाईसाहब सारे व्यंजन बहुत अच्छे थे औऱ आइसक्रीम भी अच्छी थी।

रास्ते में मित्र ने अपनी बीवी को समझाते हुए कहा कि तुमने कहा खाना बहुत अच्छा था अगर तुम कहती खाना अच्छा था तब भी खाने का महत्व उतना ही रहता। उसके बाद तुमने यह कहा कि आइसक्रीम भी अच्छी थी मतलब खाना तो अच्छा था लेकिन उसके आगे आइसक्रीम अच्छी नहीं थी।

मित्र की बीवी उनके इस बात से तुनक गयी। मित्र ने उन्हें समझाते हुए कहा- कम शब्दों में बात को अच्छे ढंग से कहना आना चाहिए। खाना बहुत अच्छा है कहने से बेहतर है अगर हम कहें खाना अच्छा है तब भी बात वही होती है। चीजें या तो अच्छी होती हैं या बुरी। फिर उसमें बहुत शब्द जोड़कर उन्हें बहुत अच्छा या बहुत खराब नहीं कहा जा सकता। यदि अच्छा है तो अच्छा और खराब है तो खराब।

कहा जाता है कि हिटलर लोगों से बातें करते वक्त कम से कम शब्दों के प्रयोग से ज्यादा से ज्यादा बातें समझा देता था। उसे लंबे और बड़े वाक्य बिल्कुल पसंद नहीं थे।

यूं तो नाहक ही बोलना लोगों की आदत होती है। किसी भी बात को कहने का सलीका या तो उन्हें पता नहीं होता या इसे कम लोग पसंद करते हैं। जो लोग शब्दों और बड़े या छोटे वाक्यों पर बारीकी से ध्यान देते हैं ऐसे लोगों को अक्सर चुप औऱ शांत ही देखा जाता है। वहीं कुछ लोग इतना बोलते हैं कि उनके शब्द और वाक्य तो गलत होते ही हैं साथ में उन्हें दस-पन्द्रह मिनट तक सुनते रहने के बाद समझ में आता है कि आखिर वे कहना क्या चाह रहे थे। छोटी सी बात को कहने के लिए लोग वाक्यों में ना जाने कितने विशेषण जोड़कर उसे प्रस्तुत करते हैं जबकि सीधे तौर पर कम शब्दों के इस्तेमाल से भी बात का सीधा और सटीक अर्थ वही होता है जो बात हम समझाना चाहते हैं।

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