कल त्रिपाठी जी के यहां उनके एक रिश्तदार आए। अपनी बाइक घर के बाहर गली में खड़ी कर जैसे ही वे अन्दर गए वैसे ही त्रिपाठी जी के दोनो बच्चे निकले और बाइक पर बंदरों की तरह झूलने लगे। बड़ा वाला बच्चा दोनो हाथों से बाइक की हैंडल पकड़ कर मुंह से गर्र..गर्र की आवाज निकाल रहा था मानों बाइक स्टार्ट करने की उसकी पुरजोर कोशिश नाकाम हो रही हो। दूसरा बच्चा हैंडिल के ऊपर लगे शीशे ऐंठ रहा था। उस शीशे में उसे अपना चेहरा फैला हुआ और बड़ा भद्दा दिख रहा था औऱ वह सोच में पड़ा था कि मैं इतना बदसूरत तो नहीं। उसने बाइक के पेट्रोल टैंक का ढक्कन खोला औऱ उसके अंदर झांकने लगा औऱ बड़े वाले से बोला भैया चलो तुम पीछे बैठो मैं बाइक चलाता हूं। बड़े वाले ने कहा नहीं मैं चलाउंगा। दोनों बाइक पर बैठे-बैठे ही लड़ने लगे, और एक दूसरे का गला पकड़ने लगे। नीचे से बाइक अपने स्टैंड से फिसल गयी और बड़ा लड़का बाइक के नीचे दब गया औऱ जोर-जोर से रोने लगा। उसे काफी चोटें लगी जबकि छोटे वाले को पैर छिल गया औऱ गाढ़ा खून बहने लगा।
मैने छोटे बच्चों को देखा है। उनमें सीखने की ललक बहुत ही
ज्यादा होती है। पापा की नजर बचाकर उनकी मोबाइल का सारा बटन इधर-उधर दबाकर देखते
रहते हैं कि किससे क्या होता है। ज्यादातर बच्चे कंप्यूटर औऱ मोबाइल पर गेम खेलना
खुद ही सीखते हैं। इन्हें अलग से सीखाने की जरूरत नहीं पड़ती। कुछ बच्चे ऐसे भी
होते हैं जो अपनी घड़ी औऱ विडियोगेम्स के सारे पार्ट्स अलग करके उसे जोड़ने की
कोशिश में लगे रहते हैं। बचपन में सीखने की ललक तो लड़कियों में भी होती है लेकिन
ज्यादातर बच्चियां ऐसे टेक्निकल औऱ इलेक्ट्रिकल चीजों में कम रुचि लेती हैं।
उन्हें गुड्डे-गुड़ियों के साथ खेलना अच्छा लगता है, मां या बड़ी बहन के बालों में कंघी करना या उनकी
उल्टी सीधी चोटियां बनाना अच्छा लगता है। जबकि छोटे लड़के गुड्डे-गुड़ियों से
खेलते हुए कम ही दिखाई देते हैं। उन्हें चश्मा, घड़ी, विडियोगेम इत्यादि की जरूरत
होती है।
लड़के और लड़कियों की पसंद बचपन से ही अलग होती है। लेकिन
यह सच है कि सीखने के मामले में लड़के बचपन से ही लड़कियों से आगे होते हैं।
इन्हें सीखाने की जरूरत नहीं पड़ती ये खुद ही घर की चीजों या अपने टेक्निकल
खिलौनों पर एक्सपेरिमेंट शुरू कर देते हैं। बड़े होने पर हो सकता है
लड़के-लड़कियों की पसंद एक जैसे हो जाती हो, भले ही वह सीखने के मामले में हो।
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