शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

हाय रे नया साल!



नए साल को मनाने की प्लानिंग एक तीन पहले ही कर ली हम तीन दोस्तों ने। हमने मिलकर तय किया कि एक जनवरी को हम लोग रामनगर का किला देखने जाएंगे जहां रांझड़ा फिल्म की शूटिंग हुई थी या फिर सारनाथ जाएंगे जहां भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था।

घूमने जाने की खुशी के मारे मन में बुलबुले फूट रहे थे। पूरी रात मैं सपनों में नए साल पर पहनने के लिए डिजाइनर कपड़े छांटती रही। सपना टूटा तो सुबह हो गई थी और एक गिलहरी दरवाजे में बने होल से आकर अंदर कमरे में बैठी थी। मैंने मन ही मन उसे हैप्पी न्यू ईयर विश किया और कमरे का दरवाजा खोला। सूरज पूरब से ही निकला था, ठंड एक दिन पहले जैसी ही थी, आसमान का रंग भी नीला ही था, चिड़ियों की चहचहाअट भी पुरानी ही थी, सप्ताह कई दिन पहले से शुरू था, सब कुछ पुराना था लेकिन एहसास था तो सिर्फ नए साल का।
इसके बाद मैंने अपने दोनों दोस्तों को फोन किया और हमने मिलकर यह तय किया कि हम रामनगर का किला देखने जाएंगे। हमने एक निश्चित समय और स्थान पर मिलने का निर्णय लिया और जाने की तैयारी में जुट गए।

बाथरूम में नहाते समय मैं एक के बाद एक गाने गुनगुना रही थी उसमें आजकल पांव जमीं पर नहीं पड़ते मेरे भी शामिल था। गुनगुनाते हुए ही मैं बाथरूम से नहाकर बाहर निकली और नए कपड़े पहनकर बाल संवार रही थी कि पहली वाली सहेली का फोन आ गया...मैंने फोन उठाने से पहले यह सोचा कि वह उधर से बोलेगी कि अभी कितना समय लगेगा पहुंचने में। लेकिन हुआ ठीक उल्टा और उसकी बातें सुनकर मेरा मुंह सूज गया। उसने कहा कि उसे तेज बुखार आ गया है और वह हमारे साथ घूमने नहीं जा सकती। मेरी खुशी का सारा खुमार पल भर में ही फुर्र हो  गया। थोड़ी देर बाद दूसरे दोस्त का फोन आया और उसने कहा कि यदि हम तीनों घूमने जाते तो ज्यादा मजा आता। सहेली की बुखार के चलते उसने घूमने की प्लानिंग कैंसिल कर दी। 

दोपहर के एक बज गए थे। जाड़े की धूप में मेरा चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था तभी एक क्लासमेट का फोन आया। उसने कहा कि चलो नए साल पर बाजीराव मस्तानी ही देख आते हैं। दो मिनट में मेरा चेहरा पके टमाटर की तरह कोमल हो गया और मैं रामनगर का किला न देख पाने का मलाल भूल गई। वह बोला कि तीन बजे तक वह मुझे लेने आएगा। चार बजे से मूवी है।
मैं ढाई बजे से ही तैयार होने लगी। वह तीन बजे मेरे घर के बाहर आया और मुझे फोन करके बोला कि एक मिनट रूको जरा पता तो कर लूं कि सिनेमाघरों में बाजीराव मस्तानी का टिकट उपलब्ध है कि नहीं। थोड़ी देर बाद उसने बताया कि सारे टिकट सोल्ड आउट हो चुके हैं और अगला शो सात बजे से है।

मैंने मुंह लटकाकर नए कपड़े उतार दिए और गुस्से में अपने बालों को कुछ इस तरह से तितर-बितर किया जैसे काली मां किसी दुश्मन का वध करने के लिए पूरी तरह से तैयार हों।
इंतजार था तो शाम के छह बजने का ताकि एक अंतिम कोशिश की जाए और सात बजे वाले शो का टिकट मिल जाए और जैसे-तैसे यह नया साल मन जाए। साढ़े पांच बजे दोस्त ने टिकट काउंटर से फोन कर बताया कि सात बजे वाले शो के भी टिकट सोल्ड आउट हो चुके हैं। उस वक्त मेरा चेहरा देखने लायक था लेकिन वहां कोई देखने वाला नहीं था। मैंने जल्दी से इंटरनेट पर अन्य सिनेमाघरों के टिकट चेक किए। लेकिन सभी जगहों पर टिकट बिक चुके थे। सिगरा स्थित आईपी माल के टिकट काउंटर पर फोन किया तो पता चला कि वहां टिकट उपलब्ध है। यह सुनकर हमारी बांझे (जहां कहीं भी होती होगी) खिल गई। मैंने दोस्त को फौरन बताया कि आईपीमाल में टिकल उपलब्ध है। वह बोला कि इस समय तो सिर्फ हनुमान जी ही आईपी माल पहुंचा सकते हैं। शहर में जबरदस्त जाम लगा था और वह एक घंटे से जाम में फंसा था। मैंने सोचा कि तुरंत संकटमोचन जाऊं और ज्योतिषाचार्य लक्ष्मणदास से पुछूं कि महाराज कौन सा ग्रह लगा था आज कि नया साल इतना रूला दिया। लेकिन बनारस के जाम में फंसकर तो मुर्दे भी खड़े हो जाते हैं, मैं कहां जाती अपनी जान गंवाने। यहां तो नये साल का पहला दिन सिर्फ प्लानिंग करके खुश होने और कैंसिल होने पर गुस्सा करने में ही बीत गया।

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