यह लेख मैं अपने बोरियत के
उन क्षणों में लिख रही हूं जिसे सिर्फ बुरी तरह से (घायल नहीं) बोर होने वाला
व्यक्ति ही समझ सकता है। मुझे लगता है कि कभी- कभी हम ऐसी बोरियत के जिम्मेदार खुद
ही होते हैं। लेकिन यह बात जब औरों को भी पता हो और आप उनसे दो-चार बातें करके
अपना जी बहलाने की कोशिश करना चाहें तो वे आपको ऐसी बातें याद दिलाएंगे मानों आपने
दुनिया का सबसे बड़ा पाप किया हो और कई तीर्थ स्थलों की यात्रा के बाद भी शायद आपका
यह पाप थोड़ा कम हो।
बहरहाल, इस परिस्थिति में
ऐसे लोगों से बात करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। वक्त कोई भी हो बुरा या फिर
बोरियत वाला, घरवालों की याद सबसे ज्यादा आती है। सुबह से चार बार हम मां को भले
ही फोन कर चुके हों लेकिन बोरियत के समय जब पांचवीं बार फोन करके यह पूछते हैं कि
बताओ न मां किस चीज का अचार बना रही हो तो उस समय मां भी हमारी एंटी हो जाती है और
यह कहते हुए कि तुम्हारी हड्डियों का अचार बना रही हूं, थोड़ा टाइम लगेगा गलने
में। छुट्टी मिले तो आकर ले जाना। नालायक कहीं की, सुबह से पांच बार फोन कर चुकी
है, अरे ज्यादा पैसा हो गया है क्या फोन में। नौकरी छोड़कर मजा आ रहा है ना। अब
बोर हो या फिर महफिल सजाओ, फोन पटक देती है जैसे उस समय फोन पटकना ही उनका सबसे सही
निर्णय हो।
जब हम घर से दूर किसी शहर
में अकेले रहते हैं और बोर होते हैं उस समय सिर्फ मन ही नहीं दिल-दिमाग, आंख-कान
सब कुछ बोर होने लगता है। सनी लियोनी की फिल्में देखना भी चुकंदर खाने के बराबर
लगता है (चुकंदर मैं आंख बंद करके खाती हूं, जैसे जहर खाते हैं)। हां उस वक्त संजीव
कपूर का खाना-खजाना देखना जरूर अच्छा लगता है। बोरियत के क्षणों में यह शो देखते
हुए कुछ इस कदर भूख लगती है जैसे इस वक्त कोई हड्डी भी परोस दे तो हम चबा जाएं यह
वक्त काटने की खातिर।
हम किचन में रखा एक-एक
डिब्बा टटोलते हैं कि किसमें सूजी, किसमें बेसन वगैरह वगैरह रखा है। लेकिन आपको
मालूम हो की ठीक उसी वक्त हम दुनिया के सबसे बड़े कंगाल भी होते हैं। डिब्बे में
बेसन एक चम्मच तो सूजी सिर्फ दो चम्मच बची होती है। जिससे कुछ भी तैयार किया जाए
तो घर के कुत्ते का भी पेट ना भर पाए।
हम एक प्याज औऱ टमाटर,
मिर्च काटते हैं और सूजी, बेसन को उसमें मिला कर पेस्ट बना लेते हैं। फिर भी यह
पेस्ट कटोरी में इतना कम दिखता है कि वह अपने को अपमानित महसूस करती है। हम पेस्ट
को और बढ़ाने के लिए उसमें थोड़ा आटा मिलाते हैं एक आलू भी काट लेते हैं, थोड़ा
मैदा भी मिला लेते हैं। कान खुजाते हुए किचन में घूमते हैं और जो भी खाने में ठीक
लगे मिलाकर एक कटोरी पेस्ट तैयार कर लेते हैं। इसके बाद उस पेस्ट को तवे पर ऑयल
लगाकर रोटी की तरह फैला लेते हैं। एक-दो बार इसे उलटते-पलटते हैं और प्लेट में
लेकर टीवी के सामने खाने बैठ जाते हैं। कुछ देर बाद अचानक ऐसा लगता है कि टीवी में
से संजीव कपूर अपन से पूछता है कि यह कौन सी रेसिपी खा रही हो बहन। मुझे भी बनाना
सीखा दो। हमें अपने पर गर्व महसूस होता है कि इन बोरियत के क्षणों में हमने नई
रेसिपी ईजाद कर ली। कभी-कभी घर में कुछ भी नहीं होता। हम सिर्फ डिब्बा खंगालते और
पटकते रह जाते हैं। अगर किचन की टोकरी में टमाटर और मटर भी दिख गई तो हम उसे छत पर
बैठकर नमक के साथ पैर हिलाते हुए खाते हैं, जैसे छोटे बच्चे खाते हैं, जो कभी बोर
भी नहीं होते हैं। बोरियत के क्षणों को काटने का एक तरीका यह भी तो है ना, कि नहीं?
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