थर्ड फ्लोर की उस लड़की के साथ रोज शाम सब्जी खरीदने जाती थी मैं। हॉस्टल वापस
लौटते समय वह रोजाना दो कच्चे अंडे खरीदती थी। फिर मैं अपनी सब्जी का थैला उसे
छूने नहीं देती थी। मैं रास्ते में उससे पूछा करती कि अंडे को हथेली पर रखने पर
कैसा महसूस होता है? क्या गिरने पर तुरंत टूट जाता है? खाने में कैसा लगता है? खाने के बाद क्या मुंह भी
महकता होगा? वह मेरी इन बचकानी बातों
से झुंझला जाती और बोलती कच्चा अंडा अगर गिरेगा तो टूटेगा ही। खाने में आलू जैसा
लगता है या उससे भी कहीं ज्यादा टेस्टी। और मुंह क्यों महकेगा भला। मैं कहती मुझे
क्या मालूम! जब अंडे का ऑमलेट
बनता है तो तेज गंध आती है तो मुझे लगा कि खाने के बाद मुंह भी महकता होगा। फिर वह
नाराज होते हुए कहती- मुझसे कुछ मत पूछा करो, किसी दिन खुद खाकर देख लो कैसा लगता
है।
मेरे परिवार का कोई भी सदस्य अंडा नहीं खाता। पूरा परिवार शुद्ध शाकाहारी है।
जाहिर है मैं भी कुछ दिन पहले तक शुद्ध शाकाहारी थी। मेरे पड़ोस में एक छोटा बच्चा
रोज शाम को उबला हुआ अंडा नमक लगाकर खाता था। मैं उसे यूं देखती थी जैसे वह कोई
कठिन काम कर रहा हो जो मेरे बस का न हो। जब वह अंडे में नमक लगाता तो मैं उससे पूछती
अंडा खाने में कैसा लगता है? वह मुझे अजीब सा मुंह बनाकर देखता और मुझसे पूछता तुम गरीब
हो? जब मैं कहती नहीं तो..वह
कहता रोज शाम को बंशी ठेले वाला बेचता तो है अंडा..खुद खाकर देख लो कैसा लगता है।
थर्ड फ्लोर की वह लड़की उस दिन दस कच्चे अंडे पैक करायी। यह देखना बहुत अच्छा
लगा। वापस आते वक्त उसके एक हाथ में सब्जी का थैला और दूसरे हाथ में दस अंडे का
लटका पैकेट देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी ऑफिस में काम करती हो, बैचलर हो (वो
तो है ही वह) और रोज ऑफिस से लौटते हुए अंडे पैक कराती हो और घर जाकर फ्रिज में
सारे अंडे भर देती हो। उसके हाथ में अंडे देखकर यह सब सोचना सुखद लगता था।
एक रात मुझे सपना आया कि मेरा अंडा खाने का मन कर रहा है लेकिन कोई खाने नहीं
दे रहा है। अगले दिन मैंने थर्ड फ्लोर की उस लड़की को सपने के बारे में बताया। वह
बोली-जब खाने का मन कर रहा है तो खा लो। इच्छा को मत दबाओ। शाम को वह मुझे अंडे की
एक दुकान पर लेकर गई। वहां पहुंचते ही मेरा मन इतना घबराने लगा कि मैंने उससे
कहा-नहीं खाना मुझे अंडा-वंडा..चलो यहां से।
मैं वापस तो आ गई लेकिन फिर भी इच्छा बनी रही। अगले दिन सारा काम छोड़कर मैं
खुद को मनाने में लगी रही कि मैं आज जरूर अंडा खाऊंगी और घर पर किसी को नहीं
बताऊंगी। अगर अंडा खाना बुरी बात है तो मैं यह बुरा काम करूंगी।
शाम को उस लड़की के साथ मैं अंडे की दूकान पर गई। एक उबले अंडे पर नमक प्याज
छिड़क कर दिया ठेले वाले ने। सिर्फ एक छोटा टुकड़ा काटकर खायी ही थी कि उबकाई आने
लगी। मेरे हाथ ठंडे पड़ने लगे। बाकी जो बचा था वह लड़की खा गई।
हॉस्टल वापस आने के बाद जाने कैसा मन होने लगा। खूब जोर-जोर से रोने का मन कर
रहा था। ऐसा लग रहा था मैंने किसी का सामान चुरा लिया हो, किसी को पत्थर मार के
सिर फोड़ दिया हो औऱ भी जाने कैसा-कैसा सा। किसी अपराध बोध सा मन भरा था। मैं
बिल्कुल शांत पड़ गई थी। किसी से कुछ बात नहीं कर पा रही थी। गम कुछ इस कदर था कि
रात का खाना भी नहीं खायी और ना ही पूरी रात सो पायी। रात को लेटे-लेटे जब नींद
नहीं आय़ी तो छत पर जाकर एक कोने में बैठकर रोने लगी। हाय रे मैंने क्या कर
दिया...मैं अंडा खा ली—मेरी मम्मी को पता चलेगा तो गला दबा देंगी मेरा..अब मैं
शाकाहारी नहीं थी.. अफसोस में सारी रात निकल गई।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें