शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

परदेश में रहने वालों, मां बहुत रोती है...



पिछली दीवाली पर घर नहीं गई। एक परीक्षा अटका था। मां का वही हाल हो रहा था जो ऑपरेशन थिएटर में मरीज का होता है। हाल सबको पता होता है लेकिन उसे कोई देख नहीं पाता। जब खबर एकदम पक्की हो गई कि घर नहीं जा पाऊंगी तो मां पकवान बनाते-बनाते ही सिसक-सिसक को रोने लगी। दादी ने घर के एक कोने से फोन करके यह बात बतायी।

घर की बाकी औरतों को उतना फर्क नहीं पड़ता जितना मां को पड़ता है कि उसकी लाडली लाडला त्योहार में घर नहीं पहुंच पाया। मां फोन पर बताती है कि छोटे चाचा का बित्ते भर का लड़का एक घंटे के भीतर सात दही बड़े खा चुका है और फिर से रो देती है तो लगता है कि यहीं किराए के कमरे में मां से बात करते-करते ही दही बड़े छानने बैठ जाएं और ठूंस-ठूंस कर खाकर मां को दिखाएं ताकि उसके जितने आंसू गिरे सब वापस उसकी आंखों में चले जाएं।

सुबह-सुबह नहाकर पूजा-पाठ और मंत्र पढ़ने का कोई टाइम फिक्स नहीं है। लेकिन नौ बजकर पांच मिनट पर नियमित एक झूठ बोलने का टाइम फिक्स है। नौ बजकर पांच मिनट पर रोज सुबह मां का फोन आता है...हां मेरी मां का फोन आता है। सबसे पहला सवाल वो यही दागती हैं कि खाना खायी कि नहीं। शहर में तो इस टाइम कोई सो कर भी नहीं उठता और मैं नाश्ता छोड़ सीधे खाना कैसे ढकेल लूंगी। मां को भी यह बात पता है फिर भी नहीं पता है। उनके पूछते ही मैं शुरू हो जाती हूं..हां मां सेम की सब्जी, घी लगाकर तीन रोटी, उसके बाद दाल फ्राई के साथ चावल खायी हूं। तीन रोटी...मां बोलती है तीन रोटी क्यों खायी। तीन रोटी न तो खाया जाता है न किसी को दिया जाता है..चार रोटी खाया करो। 

मां जैसे बचपन में किसी डरावने आदमी के आ जाने का भय दिखाकर एक कटोरा दूध गटका देती थी आज भी वही भय दिखाती है खाना खिलाने के लिए। बस अंदाज थोड़े अलग होते हैं। देख तेरे बड़े पापा कि बेटी खा-पीकर कैसे सेठानी की तरह हट्ठी कट्ठी हो गई है। एक तुम्हारा शरीर है थुलथुल सा। जैसे कि पूरे शरीर में हवा भरी हो। अरे जवानी में यह हाल है तो बुढ़ापा भी तीस में ही दिखने लगेगा।

सिर का एक बाल सफेद हो गया है मेरे। मतलब सिर्फ एक ही बाल सफेद हुआ है। सिर्फ एक बाल आउट ऑफ अनगिनत बाल। मां को यह बात मैंने फोन पर बताया तो उस रात वह सो नहीं पायी इस चिंता में कि सफेद बालों वाली लड़की से बियाह कौन करेगा। मां सुबह फोन करके मुझे घर बुलाने लगी। मैंने बोला-अचानक क्यों बुला रही हो, ऐसी कौन सी आफत आ गई...मां बोली एक हफ्ते तक तुम्हारे बालों की जड़ों में तेल लगाएंगे तो बालों की सफेदी रूक जाएगी।

सिर्फ त्योहार पर ही घर न जाने पर मां नही रोती। जब भी वह बुलाती है दुलारने के लिए, लाइफबॉय साबुन लगाकर जाड़े भर का कान के ऊपर जमा मैल छुड़ाने के लिए, गर्म रोटियां और मट्ठा साग खिलाने के लिए...मना करने पर रो देती है..ना जाने पर रो देती है...मां रो देती है।

1 टिप्पणी:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "अंधा घोड़ा और हम - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !